राहुल गांधी को ‘स्थापित कर गया गुजरात चुनाव

गुजरात व हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने अपना विजय अभियान जारी रखते हुए जहां हिमाचल प्रदेश की सत्ता कांग्रेस से छीनकर अपनी झोली में डाली है वहीं गुजरात की सत्ता पर एक बार फिर अपनी विजय पताका भी लहराई। परंतु गुजरात विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की विजय होने के बावजूद यहां के चुनाव परिणाम पर राजनैतिक विश्लेषकों द्वारा तरह-तरह की अलग-अलग समीक्षाएं व विश्लेषण किए जा रहे हैं। ज़ाहिर है प्रथम दृष्ट्या तो भाजपा की यह एक जीत ही नजऱ आती है। परंतु जिस प्रकार भारतीय जनता पार्टी 160 सीटों पर जीत हासिल करने का दावा करने के बावजूद सौ सीटों के आंकड़े को भी पार नहीं कर सकी और दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी 80 सीटों पर जीत हासिल कर बहुमत के आंकड़े से मात्र 12 सीटें पीछे तक पहुंच गई उससे यह साफ ज़ाहिर है कि भाजपा को अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए किस तरह भरपूर सत्ता शक्ति, कठोर परिश्रम तथा ‘युक्ति-मुक्ति का सहारा लेना पड़ा। गुजरात के चुनाव प्रचार के आखिरी दस दिन राज्य में मतदाताओं से इस प्रकार की बातें की गईं जिनका राज्य के विकास से कोई लेना-देना नहीं था। परंतु भारतीय राजनीति के गिरते स्तर पर नजऱ रखने वाले विश्लेषक ऐसे भ्रमित करने वाले तथा गलत बयानी कर राजनैतिक लाभ उठाने वाले चुनाव प्रचार को यही कहकर स्वीकार कर लेते हैं कि-‘युद्ध और इश्क की ही तरह चुनाव में भी सबकुछ जायज़ है।
बहरहाल, यहां चुनाव प्रचार में की गई निरर्थक बातों को दोहराने की कोई आवश्यकता नहीं परंतु इन चुनाव परिणामों को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के राजनैतिक भविष्य से जोड़कर देखना बहुत ज़रूरी है। गौरतलब है कि इसी गुजरात में पूर्व में हुए एक चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी के लिए यह फरमाया था कि इसे तो कोई अपनी कार का ड्राईवर भी रखना पसंद नहीं करेगा। परंतु आज उसी राहुल गांधी ने 56 ईंच की छाती पर ऐसा ज़ोरदार प्रहार किया है कि यदि अहमदाबाद, सूरत, बड़ोदरा तथा राजकोट जैसे चंद शहरों ने भाजपा को विजय न दिलाई होती तो शेष अधिकांश राज्य की जनता ने तो कांग्रेस पार्टी को स्वीकार कर यह साबित कर दिया था कि राहुल के हाथों में कोई दूसरा राज्य ‘स्टेयरिंग दे न दे परंतु गुजरात राज्य की जनता उन्हें अपना ड्राईवर बनाने को ज़रूर तैयार है। निश्चित रूप से कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस पार्टी को राहुल गांधी की ओर से दिया गया यह इतना महत्वपूर्ण तोहफा है जिसका प्रभाव 2018 में राजस्थान व कर्नाट्क जैसे राज्यों में भी देखने को मिल सकता है। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने गुजरात में शानदार प्रदर्शन कर यह साबित कर दिया कि भारतीय जनता पार्टी अथवा नरेंद्र मोदी व अमित शाह की जोड़ी अजेय नहीं है। भाजपा नेताओं द्वारा मीडिया खासतौर पर टेलीविजऩ चैनल्स के माध्यम से यह भी प्रचारित किया गया कि राहुल गांधी व उनकी कांग्रेस पार्टी गुजरात में हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी व अल्पेश ठाकोर के कंधों पर सवार होकर अपना संगठनात्मक विस्तार कर रही है। नि:संदेह इन तीनों नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी की दलित व किसान विरोधी नीतियों से दुखी होकर कांग्रेस का साथ देने का निर्णय किया था। भाजपा की इन्हीं नीतियों का विरोध करते हुए ठीक गुजरात चुनाव के दौरान ही भारतीय जनता पार्टी के महाराष्ट्र के एक लोकसभा सांसद नाना पटोले ने भी लोकसभा तथा पार्टी की सदस्यत्ता से भी त्याग पत्र दे दिया था। जहां तक हार्दिक, जिग्नेश व अल्पेश के कंधों पर सवार होकर राहुल के गुजरात में संजीवनी हासिल करने का प्रश्न है तो यह कोई अटपटी या नई बात नहीं है।