पाक-अफगान : चीन की पटकनी?

सियासत
(डॉ. वेदप्रताप वैदिक)
चीनी ने भारत को पहले रोहिंग्या-मामले में मात दे दी। वह बर्मा व बांग्लादेश के बीच मध्यस्थ बन बैठा। अब वह भारत को पाक-अफगान मामले में पटकनी मारने की तैयारी कर रहा है। बड़ी खबर यह है कि पेइचिंग में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और चीन के विदेश मंत्री मिले और उन्होंने एक संयुक्त वक्तव्य जारी कर दिया। हमारी सरकार से कोई पूछे कि बताइए कि ये दोनों किसके ज्यादा पड़ौसी हैं ? भारत के या चीन के ? ये दोनों राष्ट्र दक्षेस के सदस्य भी हैं लेकिन इनमें कौन सुलह करवा रहा है ? भारत नहीं, चीन ! चीन क्यों करवा रहा है ? क्योंकि उसे अपनी 57 बिलियन डॉलर की रेशम महापथ की योजना को कारगर करवाना है। पाकिस्तान तो उसका सक्रिय भागीदार है ही लेकिन यदि अफगानिस्तान उससे दूर रहता है तो चीन को काफी नुकसान भुगतना होगा। दूसरा, भारत की चाबहार पहल की काट कैसे होगी ? चीन चाहता है कि अफगानिस्तान यदि चाबहार बंदरगाह का इस्तेमाल करके भारत से घनिष्टता बढ़ाए तो वह ग्वादर का बंदरगाह भी इस्तेमाल करे ताकि उसकी चीन और पाकिस्तान से भी घनिष्टता बढ़े। इसके अलावा यदि पाक-अफगान आतंकवाद खत्म हो तो चीन के सिंक्यांग में फैल रहे उइगर मुस्लिम आतंकवाद पर भी नियंत्रण में मदद मिलेगी। दूसरे शब्दों में उसने गीदड़भभकियां मारनेवाले डोनाल्ड ट्रंप और भारत के लिए दक्षिण एशिया में प्रबल चुनौती खड़ी कर दी है। इसका एक अदृश्य अर्थ यह भी है कि दक्षिण एशिया के बड़े भाईजान भारत की जगह अब चीन का दादा ले रहा है। यदि अफगानिस्तान रेशम महापथ (ओबोर) अपने यहां से गुजरने देता है तो वह प्रकारांतर से ‘आजादÓ कश्मीर पर पाकिस्तानी कब्जे को मान्यता दे रहा है। इस पहेली को भारत और अफगानिस्तान कैसे सुलझाएंगे, वे ही जानें। वैसे मेरी राय यह है कि पाक-अफगान सद्भाव कायम होना आसान नहीं है। उसमें कई अंदरुनी पेंच हैं, जिनकी समझ चीनियों को नहीं है। लेकिन चीनियों को अपने राष्ट्रीय स्वार्थों की समझ सबसे ज्यादा है। यदि चीन का वर्चस्व दक्षिण एशिया में बढ़ेगा तो किसका घटेगा, यह बताने की जरुरत नहीं है।