हेमंत शिशिर ऋतु आहार, विहार बचाव

सेहत
डॉ.अरविन्द जैन
मानव शरीर व प्रकृति दोनों में साम्यता हैं। प्रकृति असंतुलित होती हैं तो उसका प्रभाव मानव ,जीव जंतुओं ,आहार ,विहार ,विचार पर पड़ता हैं । इसी प्रकार ऋतुओं का प्रभाव मानव जाति पर पड़ता हैं । हम भारतीय लोगों पर ऋतुओं का प्रभाव तीव्र और प्रभावकारी होता हैं । भारतवर्ष में प्रमुखत: तीन ऋतुओं का प्रमुखता से वर्णन मिलता हैं ,शीत ,उष्ण और वर्षा ।पर संवत्सर के छह अंग होने पर छह ऋतुएँ बताई गयी हैं ।इसमें शिशिर, बसंत और ग्रीष्म इन तीन ऋतुओं में सूर्य उत्तर दिशा में गमन करता हैं अत: इन्हे उत्तरायण अथवा आदान काल तथा वर्षा ,शरद और हेमंत ऋतुओं में सूर्य दक्षिण दिशा में गमन करता हैं अत: इन्हें दक्षिणायन अथवा विसर्गकाल कहते हैं । यहाँ इस बात का भी उल्लेख किया जाता हैं की जो मनुष्य यह जानता हैं की किस ऋतू में कैसा आहार -विहार करना चाहिए उसे ही आहार का फल प्राप्त होता हैं ।यदि वह नहीं जानता हैं की किस ऋतू में कौन सा अन्न खाना चाहिए ,तो मात्रा पूर्वक आहार करने पर भी उसे आहार का फल प्राप्त नहीं हो सकता। यहाँ पर शीत ऋतू के सन्दर्भ में बात करना चाहूंगा । वर्षा समाप्त होने पर ही हेमंत ऋतू आती हैं ।जिससे थोड़ी सर्दी और थोड़ी गर्मी का वातावरण बना रहता हैं ,शीत ऋतू में शीतलता अधिक रहती हैं अत: शीतल वायु के स्पर्श से आभ्यान्तर अग्नि के रुक जाने के कारण बलवान (स्वस्थ्य )पुरुषों के शरीर में जठराग्नि बलवान होकर मात्रा और द्रव्य में गुरु आहार को पचने में समर्थ रहती हैं । इसी लकारन इन दिनों में शाली,इक्षु क्षीर ,उड़द ,भैंस का दूध आदिस्वभाव से गुरु द्रव्यों का पाचन उचित रूप से हो जाता हैं । इस ऋतू में अग्नि के प्रबल होने पर जब उसके बल के अनुरूप गुरु आहार नहीं मिलता तब अग्नि शरीर में उतपन्न प्रथम धातु यानि रस को जला डालती हैं।अत: वायु का प्रकोप हो जाता हैं ।उचित आहार न मिलने पर वह अन्य धातुओं का पाक करने से रक्तादि का पाक होने से धातुक्षय के कारण शरीर में रुक्षता आने लगती हैं ।क्योंकि बाह्य वातावरण भी शीतल होता हैं अत: स्वभावत: रुक्ष और शीतल वायु प्रकुपित हो जाती हैं । आहार -चर्या हेमंत ऋतू में अग्नि की प्रबलता रहती हैं अत: स्निग्ध पदार्थ, अम्ल रस, दूध, गन्ना, गरम बचावल का भात, गरम जल का सेवन करना चाहिए,इनदिनों पालक मेथी ,गाजर ,टमाटर का सूप ,अदरक लहसुन ,गुड़और राजगीर तिली के लड्डू ,खजूर ,ड्राई फ्रूट्स,,गेहूं और चना के मिश्रण के रोटी खाना फायदेमंद होता हैं, विहार -चर्या इन दिनों तेल मालिश ,उबटन ,शिर पर तेल लगाना ,धूपसेवन करना उष्ण गर्भ गृह में रहना , वाहन शयन और आसनके कपडे ढँक कर रखना ,ऊनी और रुई के बने कपड़ों का प्रयोग करना शरीर पर भरी और गरम कपडे धारण करना ,हेमंत ऋतू में वाट का कोप रहता हैं तथा वातावरण शीतल होने से ,बचने का प्रयास करना चाहिए । इस ऋतू में हमें पूरे साल की शक्ति संचित करने का अवसर मिलता हैं और इन दिनों हृदय ,श्वास ,कफ प्रवत्ति के लोगों को वचाव करना चाहिए ।जैसे सुबह सात ता आठ के बाद या अपनी सुगमता से बाहर घूमने जाना चाहिए। गरम पानी से स्न्नान करना चाहिए ,नहाने के पहले तेल मालिश लाभप्रद होता हैं ।इस दौरान मौसमी फल ,साग सब्जी के साथ खजूर ,ररत में गर्म दूध में हल्दी का पाउडर डाल कर दूध पीना चाहिए। इसके अलावा अपनी शारीरिक क्षमता को दृष्टिगत रखकर बचाव के साथ शीत ऋतू का आनंद लेना चाहिए यह एक ऐसी ऋतू हैं जिसमे मंगल ही मंगल हैं इस ऋतू में इतनी शक्ति संचित करके वर्ष भर स्वस्थ्य रहे गरम पानी, ठण्ड से बचाव पौष्टिक आहार ही इस ऋतू का धेय्य हैं रोगी हृदय ,श्वाश , हड्डी और जोड़ों के दर्द वाले रहो सावधान ।