धर्म
अब जैसे कई मुसलमानों पर इसलिए हमले हुए कि वे गाय लेकर जा रहे थे। उन पर यह आरोप लगाया गया कि वे गाय काटने ले जा रहे हैं। न सिर्फ मुसलमानों पर बल्कि दलित समुदायों पर भी इस कारण हमले हुए। इन हिंदूवादियों का कहना है कि देश और समाज हिंदू परंपराओं के अनुसार चले। उन्हें मंजूर नहीं कि एक जाति के लोग दूसरी जाति में शादी करें। किसी हिंदू लड़की की किसी मुस्लिम लड़के से शादी उन्हें बिल्कुल बर्दाश्त नहीं। वे इसमें साजिश देखते हैं और लड़के के परिवार के पीछे पड़ जाते हैं। ये सारी बातें इस देश के एक साधारण हिंदू नागरिक को कचोटती हैं। उसने हिंदू धर्म की ऐसी परिभाषा कभी सुनी नहीं, एक हिंदू को ऐसा करते कभी देखा नहीं। उसके मन में तो हिंदू धर्म की कोई और ही छवि है। आज जिस हिंदुत्व की बात की जा रही है, वह हिंदुत्व की उस परंपरा से बिल्कुल अलग है, जिसने भारत को एक अलग पहचान दी है। भारत में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे विद्वान और दार्शनिक ने हिंदू धर्म की जो परिभाषा दी है, उसके मुताबिक हमारा धर्म हमें सहनशील बनने को कहता है। राधाकृष्णन के मुताबिक, हिंदू धर्म किसी भी धर्म में कभी बुराई नहीं ढूंढता। उन्होंने गीता में कहे गए श्रीकृष्ण के इस कथन का हवाला दिया कि पूजा के अनेक तरीके हैं। अनेक मार्ग हैं। हर मार्ग एक ही लक्ष्य पर पहुंचाता है। यह तो व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह अपनी आस्था किस में मानता है। इस तरह सभी धर्म बराबर हैं। एक सच्चा धार्मिक व्यक्ति वह है, जो सभी धर्मों का सम्मान करे और उनकी अच्छी बातें ग्रहण करे। राधाकृष्णन मानते थे कि हिंदू धर्म वैज्ञानिकता और विवेकवाद से संचालित रहा है। मतलब यह कि उसमें किसी तरह के अंधविश्वास, रूढि़ और पोंगापंथ की जगह ही नहीं है। हिंदू धर्म समावेशी है। उसने दुनिया भर की मान्यताओं और विश्वासों को स्वीकार किया और उनके तात्विक महत्व के आधार पर उन्हें जगह दी। अब जबकि समाज में एक-दूसरे के प्रति नफरत का भाव है, हमें हिंदू धर्म के इसी स्वरूप की जरूरत है।