बैर के कारण उत्पन्न होने वाली आग एक पक्ष को स्वाहा किए बिना कभी शांत नहीं होती।
वेदव्यास
राजनीति
वर्ष 2017 में तीन घटनाओं का सबसे अधिक प्रचार किया गया- नोटबंदी, जीएसटी और सर्जिकल स्ट्राइक लेकिन, इन तीनों मामलों में सावधानी से काम किया गया होता और लोगों के दुख-दर्दों का ख्याल रखा होता तो नरेंद्र मोदी की सरकार की लोकप्रियता 2014 के मुकाबले काफी बढ़ जाती। वैसा नहीं होता, जैसा कि गुजरात में हुआ है। मोदी सरकार को बने साढ़े तीन साल हो गए। सारा काला धन सफेद हो गया। जीएसटी में दर्जनों संशोधनों के बावजूद आम उपभोक्ता को कहीं भी सीधा और ठोस लाभ नहीं मिल पा रहा है। लाखों लोग बेरोजगार हुए हैं और मंहगाई भी बढ़ी है, इनके बावजूद आज देश में बगावत का माहौल बिल्कुल नहीं है। क्योंकि लोगों को पुख्ता विश्वास है कि मोदी ने जो भी कदम उठाए हैं, वे जनता के भले के लिए उठाए हैं। नोटबंदी में हजारों करोड़ का नुकसान हुआ है। उसके मुकाबले बोफोर्स कांड में सिर्फ 60 करोड़ रुपए खाए गए थे। अदालतों द्वारा बरी किए जाने के बावजूद बोफर्स ने कांग्रेस का कचूमर निकाल दिया लेकिन, लोग मोदी को बर्दाश्त कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि मोदी का दामन पाक-साफ है।
2017 में भाजपा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जीती। पंजाब, गोवा और मणिपुर में हार गई लेकिन गोआ और मणिपुर में उसने जोड़-तोड़ करके सरकार बना ली। उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि नीतीश कुमार को अपने खेमे में शामिल करना रहा। वे अकेले ऐसे नेता उभरकर सामने आ रहे थे, जो 2019 में मोदी को काफी तगड़ी चुनौती दे सकते थे। वे सही समय पर सही निर्णय लेने के लिए जाने जाते हैं। उनका फैसला चौंका सकता है।
गुजरात में जादू की छड़ी सिर्फ एक थी और उसका नाम था, ‘हूं गुजरात नो डीकरो छूंÓÓ (मैं गुजरात का बेटा हूं)। क्या जादू की यह छड़ी दूसरे प्रांतों में भी काम करेगी? गुजरात के चुनाव में कांग्रेस हारी, यह उसके लिए अच्छा हुआ। वरना राहुल का दिमाग भी फूलकर कुप्पा हो जाता। उन्हें कोई भी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मानने को तैयार नहीं होगा। यदि वे अपनी मां के चरण-चिह्नों पर चलें और अभी से घोषणा कर दें कि वे प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नहीं हैं तो सारे विरोधी उनके आस-पास जुट सकते हैं।
मोदी ने सिर्फ 31 प्रतिशत वोटों से सरकार बनाई थी। 2019 का यह मोर्चा 50-60 प्रतिशत वोटों से सरकार बना सकता है लेकिन, ऐसा होने की उम्मीद बहुत कम है। 2017 के साल में भारत और अमेरिका एक-दूसरे के बहुत नज़दीक आते दिखे। संतोष का विषय है कि भारत ने रूस और चीन को भी साधे रखा है। डोकलाम में हमारी फौजें भिड़ी नहीं, यह इसी का परिणाम है। भारत की दुखती रग पर ट्रम्प ने हाथ रख दिया है।वह है, पाकिस्तान! ट्रम्प खुद तथा उनके विदेश और रक्षा मंत्री पाकिस्तान को इतना धमका रहे हैं, जितना आज तक किसी अमेरिकी सरकार ने नहीं धमकाया। भारत बहुत खुश है लेकिन, हमारे विदेश मंत्रालय के अफसर इस बात को भली-भांति समझते हैं कि यह धमकाना अफगानिस्तान के कारण है, जहां अमेरिकी फौजें तालिबान के साथ जूझ रही है।
2017 का साल हमारे पड़ोसी देशों के हिसाब से बहुत संतोषजनक नहीं रहा। भारत-पाक संबंध पर बर्फ जमी हुई है, हालांकि मानवीय स्तर पर हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज कभी-कभी अच्छी खबर दे देती हैं। नेपाल, श्रीलंका, बर्मा, मालदीव और बांग्लादेश में भी चीनी कूटनीति को अपूर्व सफलता मिल रही है। रोहिंग्या संकट को हल करने में चीन बाजी मार ले गया। अफगानिस्तान में भारत के लिए अभी भी काफी जगह हैं। 2017 का साल ईरान के चाबहार बंदरगाह के खुलने के लिए याद किया जाएगा। अब मध्य एशिया, अफगानिस्तान और रूस तक पहुंचने के लिए भारत को न तो स्वेज नहर पर निर्भर रहना होगा और न ही पाकिस्तान पर! रूस से फारस की खाड़ी तक महापथ बनाने की भी खबर है। भारत ने यरुशलम पर अमेरिका के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र में वोट देकर मुस्लिम राष्ट्रों का दिल जीत लिया है। 2018 के साल में कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावों पर मोदी के किए-कराए का कितना असर पड़ेगा, कहना मुश्किल है। प्रांतीय सरकारों के काम को ही मतदाता पहले देखेंगे। राजस्थान के अलावा कहीं सशक्त विरोधी नेता दिखते ही नहीं हैं। यदि इन प्रांतों में भी किसी वजह से भाजपा हार गई तो 2019 में दिल्ली दूर हो जाएगी। भाजपा के पास तुरुप के कुछ पत्ते जरूर हैं। जैसे राम मंदिर, गोरक्षा, लव-जिहाद, इस्लामी आतंकवाद और पाकिस्तान! यदि केंद्र को अपनी कुर्सी खिसकती नजर आई और ये पत्ते भी नकारा सिद्ध हुए तो कोई आश्चर्य नहीं कि चीन या पाकिस्तान के साथ कोई सीधी लेकिन, सीमित मुठभेड़ हो जाए। यह भी असंभव नहीं कि अगले डेढ़ साल में भाजपा के नेता मन की बात के साथ-साथ काम की बात कुछ ऐसी कर दें कि और कुछ नहीं तो वे गठबंधन सरकार ही बना डालें।
(भारतीय विदेश नीति, परिषद के अध्यक्ष)