राजनीतिक उथल- पुथल का दौर पूरे वर्ष चलता रहा जहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत सत्ता परिवर्तन के इस दौर में जो दल कभी पीछे चल रहे थे, आज सबसे आगे है , जो आगे रहे थे , सबसे पीछे खड़े हैं । जनता जर्नादन किसे तख्त ताज देगी, किसे पदच्यूत कर देगी, कोई नहीं जानता ? लोकतांत्रिक प्रक्रिया का इससे ज्यादा जीता जागता और क्या प्रमाण हो सकता है। इस तरह के हालात के पीछे राजनीतिक दांव पेंच एवं सत्ता पक्ष के प्रति उभरता आक्रोश मुख्य कारण रहा। इस वर्ष मुख्य रूप से पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा एवं मणिपुर पांच राज्यों में जो चुनाव हुए उसके प्रारम्भिक दौर में उतर प्रदेश, उत्तराखंड, एवं मणिपुर में भाजपा को एवं पंजाब तथा गोवा में कांग्रेस को बहुमत मिला पर राजनीतिक दांव पेच के चलते पंजाब को छोड शेष चार राज्यों में भाजपा की सरकारें गठित हुई। गोवा में कांग्रेस सबसे बडी पार्टी होने के वावयूद भी राजनीतिक कमजोरियों के कारण सरकार नहीं बना सकी। इस चुनाव के दौरान केन्द्र सरकार की नोटबंदी योजना राजनीतिक पृृष्ठिभूमि में ज्यादा महत्वपूर्ण रही। इस चुनाव के दौरान तीन तलाक का मसला भी जोर -शोर से उछला जिसने उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण को पलट दिया। जहां सत्त परिवर्तन के मुख्य कारक रहे मुस्लिम मतदाताओं में विशेष रूप से महिला मतदाताओं का रूझान पहली बार भाजपा की ओर गया जिससे उतर प्रदेश की राजनीति में भाजपा को पूर्ण लाभ मिला । उतर प्रदेश की राजनीति आजतक इन्हीं मुस्लिम मतदाताओं पर निर्भर करती रही जिससे वहां की सत्ता कभी मुलायम के पास रही तो कभी मायावती के पास जो इस बार दोनों से हटकर भाजपा के खाते में चली गई । इस परिवर्तन को जिस भी आकड़े से देखा जाय , जनाक्रोश के साथ – साथ राजनीतिक दांव – पेंच भी शामिल रहा । इस वर्ष के दौरान केन्द्र सरकार का एक और प्रमुख फैसला रहा जीएसटी का जिसे केन्द्र सरकार ने एक देश एक टैक्स का नाम देकर जोर – शोर से लागू किया। जिसका पूरे देश में व्यापारी वर्ग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा । इसी दौरान देश के दो प्रमुख राज्य गुजरात एवं हिमाचल में विधानसभा के चुनाव हुए जिसमें गुजरात चुनाव ने केन्द्र सरकार की प्रतिष्ठा एवं भाजपा के भावी भविष्य के साथ जोड़ दिया । जीएसटी का प्रतिकूल प्रभाव गुजरात को प्रभावित करेगा, इस बात का अंदेशा भाजपा शासित केन्द्र सरकार को पूर्व में हो गया जिससे केन्द्र सरकार ने तत्काल चुनाव से पूर्व जीएसटी की दरों में कमी कर गुजरात के व्यापारी वर्ग को संतुष्ट करने की पूरी कोशिश की और उसके इस प्रयास का लाभ चुनाव में मिला भी । कांग्रेस शासित हिमाचल में जनाक्रोश के चलते सत्ता परिवर्तन तो होना निश्चित था जिसमें भाजपा की जीत सुनिश्चित मानी जा रही थी पर भाजपा शासित गुजरात का चुनाव भाजपा के लिये चुनौती बना हुआ था जहां पूरे देश की नजर टिकी हुई थी।