स्वच्छ भारत अभियान ज़ोरों पर है। होना भी चाहिए! देशभर में युद्धस्तर पर शौचालय बन रहे हैं। सरकारी कर्मचारियों की ड्यूटी लगी है और वे गॉव- गॉंव घूम- घूमकर खुले में शौच करने वालों को खदेड़ते नजऱ आ रहे हैं! और, दूसरी ओर देश के छोटे-बड़े शहरों में सीवरों और सेप्टिक टैंकों की सफाई करने वाले सफाई योद्धाओं की मौत के मामले बंद होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। असलियत तो यह है कि अब ये हादसे पहले से कहीं अधिक होने लगे हैं। हाल के दौर में इन अभागों के कुछ चित्र मीडिया में भी आने लगे हैं कि किन कठोर हालातों में सफाईकर्मी गंदे-कीचड़ से सने सीवर के भीतर से निकल रहे हैं या इनके शव निकाले जा रहे हैं। ये सारे नजारे भयावह लगते हैं। निराश कर जाते हैं और सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि हमारे इस महान देश में आज़ादी के 70 साल बाद भी हमारे देश का कोई इंसान अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए कितने समझौते करने के लिए मजबूर होता रहता है। सफाई कर्मियों के मारे जाने की घटनाओं के बढऩे का सीधा अर्थ यह है कि हालात अन्य शहरों और सभी राज्यों में भी बदतर हो रहे हैं। राजधानी दिल्ली के पॉश घिटोरनी क्षेत्र में सीवर की सफाई के दौरान दो कर्मियों की मौत की घटना को अभी माह भर भी नहीं हुआ था कि यह खबर आ गई कि गुरुग्राम में सीवर की सफाई के दौरान दम घुटने के कारण 3 सफाई कर्मचारियों की मौत हो गई है। हो यह रहा है कि चूंकि ये किस्मत के मारे अधिकतर सफाईकर्मी देशभर में निजी ठेकेदारों के माध्यम से ही उन्हीं के लिए काम करते हैं , जो सामान्यत: किसी श्रम क़ानून का पालन ही नहीं करते और इनके मुआवजे वगैरह को लेकर को कभी गंभीर ही नहीं होते। कुछेक मामलों में इनके सगे-संबंधियों के बारे में भी किसी को कोई पुख्ता जानकारी तक नहीं होती या होती भी है तो छुपा ली जाती है।