आरती शर्मा
भोपाल, 1 जनवरी। जनजाति समाज को कमतर मानने वालों के लिए 19 दिसंबर से भोपाल हाट में चल रहा जनजातीय मेला काफी कुछ सिखा गया। जनजातीय कार्य मंत्रालय भारत सरकार और ट्राइफेड द्वारा आयोजित इस आयोजन का रविवार शाम रंगारंग समापन हुआ। महत्वपूर्ण बात यह है कि देष भर से आई करीब दो दर्जन से अधिक राज्यों के जनजातीय कलाकारों और कारीगरों के हुनर को प्रदेश की जनता ने हाथों-हाथ लिया। मात्र 13 दिन में करीब 80 लाख से अधिक की खरीदारी की। इस दौरान भोपाल हॉट में जो भी आया, उनकी आकर्षक कलाकृतियों को खरीदे बिना नहीं रह पाया। देश के सुदूर अंचलों से राजधानी पहुंचे ये वनवासी मेले में ही अपनी कला को निखारते, मांझते नजर आए। खरीदारी करने पहुंचे लोगों के लिए यह कम कौतूहल का विषय नहीं था। अपने अद्भुत हुनर और कारीगरी से इन वनवासियों को लाखों के ऑर्डर भी यही मिल गए। इस पूरे आयोजन के सूत्रधार रहे ट्राइफेड के मैनेजिंग डायरेक्टर और अपने प्रदेश के आईएएस प्रवीर कृष्ण। आदि महोत्सव नाम से 13 दिन के इस आयोजन में लोगों ने वनवासी कलाकृतियों को जमकर सराहा तो वहीं खाने की खुशबू और स्वाद का भी पूरा लुत्फ उठाया। पेश है प्रवीर कृष्ण से इस संबंध में की गई बातचीत के कुछ अंश:
आदि महोत्सव कांसेप्ट क्या है!: यह एक पहल है, जिसमें आदिवासियों को उनके हुनर को प्रस्तुत करने और उन्हें वैश्विक आर्थिक मंच प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। भोपाल में यह पहला आयोजन था, जिसमें उनके कल्चर, क्राफ्ट, कुजिन और कॉमर्स को प्रमोट किया गया। पहली बार उन्हें सीधे बड़े बाजारों से जोड़ा गया। डिजीटल कॉमर्स की बारीकियां सिखाई गई। इंटरनेट की व्यवस्था समझ में आई। इससे वह बेहद प्रोत्साहित हुए हैं, जिससे हम भविष्य में भी ऐसे आयोजन करने के लिए प्रेरित हुए हैं।
यानी भविष्य में ऐसे आयोजन होते रहेंगे!: जी हां, भोपाल से पहले हमने दिल्ली और जयपुर जैसे बड़े शहरों में आदि महोत्सव का आयोजन किया था। तीसरा आयोजन भोपाल में था और मुझे बड़ी खुशी हो रही है कि इस आयोजन को भोपाल के लोगों ने बहुत सराहा। यहां प्रतिदिन विभिन्न जनजातियों के द्वारा रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए जा रहे हैं। उन्हीं के बनाए खाने की खुशबू और स्वाद इस मेले में फूड स्टॉल के माध्यम से लगाए गए हैं। हम अगला आदि महोत्सव रांची में करने जा रहे हैं। फिर गुवाहाटी, भुवनेश्वर सहित पूरे 30 राज्यों की राजधानियों में इन आदिवासियों की कला को प्रस्तुत कर उन्हें आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की पूर्ण योजना है।
इन आयोजनों से आदिवासी कलाकारों का हौसला तो खूब बढ़ा है: जी, बिल्कुल। जनजातियों की कला श्रेष्ठतम कलाओं में से होती है, इन आयोजनों के माध्यम से यह दुनिया खासकर बड़े बाजारों को पता चला। समाज के समक्ष इनकी जो छवि है, इन आयोजनों के माध्यम से जनजातीय कलाकारों ने यह साबित कर दिया कि हम भी किसी से कम नहीं हैं। इनका हुनर इनकी आवाज है। इन आयोजनों के माध्यम से यह स्वावलंबी बने हैं। भविष्य में इनके हुनर को ऐसे ही मंच देने के लिए प्रयास किए जाते रहेंगे।