आर.के.सिन्हा
अभी हाल के दौर में विदेशी पर्यटकों के साथ हमारे यहां मारपीट-छेडख़ानी, बदसलूकी आदि के कई मामले सामने आये हैं। आगरा में स्वीटजरलैंड से आए पर्यटकों के साथ बदसलूकी और मारपीट की घटना को लेकर पुलिस ने चार शोहदों के खिलाफ फतेहपुर सीकरी थाने में मामला भी दर्ज किया है। जरा सोचिए कि आज जबकि प्रधान मंत्री मोदी सहित सारा देश विदेशी पर्यटकों को देश के विभिन्न राज्यों में आकर्षित करने के लिए हर तरह के प्रयास कर रहा हो, तब विदेशी पर्यटकों से बदतमीजी करने का कितना नकारात्मक संदेश विश्व भर में जायेगा।संबंधित सरकारों और विभागों को पर्यटकों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता तो देनी ही होगी।
कमी कहां
यह सच है कि भारत को दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण पर्यटन केन्द्र होना चाहिए। यहां भांति-भांति के स्वादिष्ट व्यंजन उपलब्ध हैं, हमारे देश की सामाजिक , सॉंस्कृतिक, कला, संगीत , साहित्यिक विविधता अदभुत है। देश में ऐतिहासिक महत्व के पर्यटन स्थलों से लेकर धार्मिक, आध्यात्मिक, सॉंस्कृतिक, पौराणिक, वन्य- अभयारण्य, शौर्य-पराक्रम-संग्राम पर्यटन स्थलों की भरमार हैं। भारतवर्ष में एक ओर सागर तट है तो दूसरी ओर हिमालय और शिवालिक पर्वत ष्रिखला है।सैकडों वन-अभयारण्य हैं तो विकट रेगिस्तान भी हैं और सैकडों सुन्दर समुद्र तट भी आकर्षित करते हैं। असम,गुजरात,मध्य प्रदेश वगैरह में प्रसिद्ध वन्यजीव उद्यानों का कहना ही क्या है? यानी सबकुछ तो हमारे यहां है।दूसरे देश सौ- दो सौ साल के इतिहास और एकाध महायुद्ध का गुणगान करते अधाते नहीं।लेकिन, हमारे देश ने तो अमेरिका के नासा के शोध को ही मान लें तो सात हज़ार साल पहले रामेश्वरम से ष्री लंका तक समुद्र में तैरता हुआ द्वीप बनाया, जिसके प्रमाण मौजूद हैं।यहॉं राम रावण युद्ध भी हुआ और महाभारत भी। अलेक्ज़ेंडर दि ग्रेट( सिकन्दर) भी यहीं परास्त हुआ और हुमॉंयू की विशाल सेना भी बिहार के चौसा में परास्त होकर भाग खड़ी हुई। महाराणा प्रताप , छत्रपति शिवाजी और गुरु तेगबहादुर और गुरु गोविन्द सिंह ने भी मुग़लों के दॉंत खट्टे किए। झॉसी की रानी लक्ष्मी बाई, तॉंत्या टोपे और वीर कुँवर सिंह ने अंग्रेज़ों की जड़ें हिलाकर रख दीं। लेकिन, इतना सब कुछ होने के बाद भी हम एशिया का प्रमुख पर्यटन स्थल नहीं बन पाए।कारण मुख्यत: यह रहा कि हमने मुग़लों द्वारा स्थापित स्मारक दिखाये। अंग्रेज़ों की बनाई इमारतें दिखाईं। लेकिन, अपना इतिहास, अपनी शौर्य गाथा अपनी सॉस्कृतिक/ साहित्यिक – कलात्मक विरासत से पर्यटकों को अछूता रखा। फिर भला क्यों आयें पर्यटक हमारे देश में। आज भारत से अधिक पर्यटक आते हैं मलेशिया, सिंगापुर ,थाईलैंड, चीन, या खाड़ी देशों के रेगिस्तानों में या दक्षिण कोरिया तक में। क्या कभी हमने कभी यह भी कभी सोचा कि हम क्यों इस मोर्चे पर पिछड़ते चले गये?
शर्म आती है कि भारत में आखिरकार , हर साल एक करोड़ भी विदेशी पर्यटक क्यों नहीं आ रहे? पिछले हफ़्ते मैं युनाइटेड अरब अमीरात की यात्रा पर अपने पोते- पोतियों को लेकर दुबई, अबू धाबी और कुछ अन्य स्थानों पर गया। हर तरफ विदेशी सैलानियों को देखकर सच में ईष्या का भाव पैदा हो रहा था। जब मैं अस्सी के दशक में पहली बार दुबई आया था, तब यहॉं एक छोटा सा एयरपोर्ट था। पतली- पतली टेढ़ी- मेढ़ी सड़कें थीं और चारों ओर रेगिस्तान था। कहीं – कहीं कबीलों की झोपड़पट्टी नुमा बस्तियों और आसपास बैठे ऊँट मिल जाया करते थे। उनदिनों वीज़ा नहीं था, एयरपोर्ट पर ही पगडीधारी सफ़ेद गाउन पहने शेख़ बैठे रहते थे और कुछ उल्टे- सीधे सवाल पूछकर वीज़ा का मुहर लगाते रहते थे।
चटख धूप और भयंकर गर्मी ! जोंगा जीपों से रेगिस्तान घूमते रहते थे।कहीं- कहीं सड़कों के चौराहों पर गोलम्बर बनाकर हरी घास लगाये गये थे और कुछ खजूर के पेड़ों के झुंड! वे ही पर्यटकों के लिए दर्शनीय स्थल बने हुए थे। लोगबाग उसकी फोटो खींचकर कहते रहते थे कि , देखो..; देखो , रेगिस्तान में घास? क्या कमाल है? बाजारों के नामपर सड़कों के किनारे टाउनहाउस टाइप दुमंजिली इमारतें थीं- नीचे दूकान- ऊपर मकान के सिद्धांत पर। उसी में कहीं कहीं ऊपरी मंजि़ल पर होटल या यूँ कहें कि गेस्ट हाउस भी थे।
आज पूरा युनाइटेड अरब अमीरात समृद्धि से परिपूर्ण हैं। चारों तरफ़ हरियाली है। चौड़ी चिकनी सड़कें। विश्व की चुनिंदा कारें।पूरा यू.ए.ई. दूधिया बिजली में जगमगा रहा है। दुबई एयरपोर्ट से अबू धाबी तक की पूरी सड़क जगमग, हॉंलॉकि सड़क के दोनों ओर घुप्प कुहरा।
दरअसल जो भारतीय विदेश यात्राएं करते हैं, उन्हें मालूम है कि हम कहां पिछड़ते हैं। आप यूरोप और अमेरिका की बात ही मत कीजिए, आशियान और खाड़ी के देशों में हाईवे पर जगह-जगह साफ-सुथरे रेस्तरां और शौचालय मिल जाएंगे। इनमें लघु शंका और दीर्घ शंका की, यहॉं तर कि थकान दूर करने के लिए मालिश तक की उत्तम व्यवस्था रहती है। हर प्रकार के स्वाद का गर्मागर्म भोजन और नाश्ता तो मिलता ही है। खूब सफाई रहती है।कहीं कुछ गिरा नहीं कि किसी ने उठाया नहीं।पोंछा तो चौबीसों घंटे लगता ही रहता है। कहना पड़ेगा कि हमारे देश में इतनी सी भी सामान्य सुविधाएं आसानी से नहीं मिल पाती।काम करने वालों की ट्रेनिंग का भी सख़्त अभाव है। काम करते जरूर हैं, लेकिन , ऐसा करते हैं जैसे कि उन्हें यातना दी जा रही हो। साफ सुथरे कपड़े और एक मुस्कराहट , विनम्रतापूर्वक धीमी आवाज़ में बातें करना तो सीखना ही होगा। अभी तो कुछ पूछा नहीं कि ऐसा जवाब देंगें , जैसेकि लाठी चला रहे हों।
धीमी रफ्तार
भारत के पर्यटन क्षेत्र को कम से कम सालाना 14-15 फीसद की गति से तो बढऩा ही होगा। माहौल अनुकूल है अत: यह 25 फ़ीसद भी करना कोई मुश्किल का काम नहीं है। यह इसलिए भी आवशयक है कि पर्यटन क्षेत्र में रोजगार के अवसर भरपूर हैं।वैसे अब भी यह क्षेत्र सर्वाधिक रोजगार के अवसर पैदा कर ही रहा है। पर हमारी कमियां और कमज़ोरियॉं भी कम नहीं हैं।टुरिज्म सेक्टर के जानकारों से बात करने पर मालूम चलता है कि हमारे मेट्रो और प्रमुख शहरों में फाइव स्टार और सेवन स्टार होटल तो खूब खुल रहे हैं, पर बजट होटल अब भी कम हैं। आप दिल्ली को ही ले लें। हाल के कुछ वर्षों में करीब 25-30 सुपर लक्जरी होटल एयरपोर्ट के आसपास खुल चुके हैं। लेकिन, उस पयर्टक के लिए होटल नहीं बन रहे, जिसका बजट कम है। उसे पहाडग़ंज और दक्षिण दिल्ली के खराब से होटलों में ही रहना पड़ता है। उनमें उसका जमकर दोहन और शोषण होता है। जाहिर है, फिर वह दुबारा भारत आने के बारे में सपने में भी नहीं सोचता। बड़ी होटल चेन भी बजट होटल बनाने से कतराती हैं। उन्हें शायद लगता है कि इसमें उन्हें अपेक्षित लाभ नहीं मिलेगा।
खींचे बौद्ध/राम/कृष्ण भक्त पर्यटक
भारत को सबसे पहले दुनियाभर के बौद्ध पर्यटकों को यहां लाने के लिए अपना ध्यान देना होगा। सारे संसार में 50 करोड़ों बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। ये जापान, थाईलैंड,दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, श्रीलंका, वियतनाम वगैरहदेशों में हैं। बौद्ध अनुयायियों का गौतम बौद्ध की जन्मस्थली भारत को लेकर आकर्षण स्वाभाविक है। इसी के चलते बौद्ध भारत के प्रति बेहद आदर का भाव रखते हैं। बोधगया-राजगीर-नालंदा सर्किट देश के सबसे खासमखास पर्यटन स्थलों में माने जाते हैं पर्यटकों की आमद के लिहाज से। इधर दक्षिण-पूर्व एशिया, श्रीलंका,जापान वगैरह सेपर्यटक पहुंचते हैं। हर साल बिहार आने वाले विदेशी सैलानियों का सबसे बड़ा हिस्सा बोधगया पहुंचता है। यहॉं ही वह बोधिवृक्ष खड़ा है जिसके नीचे बैठकर सिद्धार्थ को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई और वे बुद्ध बने। बोधगया आने वाले पर्यटक सारनाथ अवश्य जाते हैं। सारनाथ में बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद अपना पहला उपदेश दिया था; और उसके बाद राजगीर चले जाते हैं, जहां से बुद्ध ने आगे की यात्रा की। यूं तो ये साल भर आते रहते हैं, पर अक्तूबर से मार्च तक उनकी आमद सबसे अधिक रहती है। जाहिर तौर पर इन बौद्धों को हम बौद्ध से जुड़े स्थानों पर ला सकते हैं।इसी प्रकार हम विदेशों में बसे करोड़ों भारतवंशियों को राम, कृष्ण, शिव, और सती के स्थानों और चारों धामों के यात्राओं की ओर आकर्षित करना होगा।
वे आयेंगे भी और अपने बूढ़े माता- पिता को भेजेंगें भी। लेकिन, उनकी चिन्ता मात्र दो हैं:- पहली भोजन – आवास- यात्रा व्यवस्था की मूलभूत ज़रूरी सुविधाये और सुरक्षा ।यदि सरकार इतना भर सुनिश्चित कर दे तो पर्यटक भागे चले आयेंगें। हमें हर हालात में पर्यटकों की सुरक्षा का ध्यान तो देना ही होगा। सखा दें कि यदि कोई पर्यटक दिख जाये तो हाथ जोड़कर ” नमस्कार” और स्वागतम् भर कह दें। इतने से ही भारी फ़कऱ् आ जायेगा । याद होगा कि कुछसाल पहले महाबोधि मंदिर में कई विस्फोट हुए थे। उस दुखद घटना से यहां आने का कार्यक्रम बनाने वाले पर्यटक हतोत्साहित तो हुए ही होंगे। अगर हम महाबोधि मंदिर को भी इंसानियत के दुश्मनों से सुरक्षित नहीं रख पायेंगें तो फिर क्या बचा। अब घटना के बाद आप जो चाहें करने के लिए स्वतंत्र हैं। इन स्थानों की पहले ही सुरक्षा इतनी मजबूत होनी चाहिए कि कोई किसी तरह की अप्रिय घटना को अंजाम देने के बारे में सोचे भी नहीं । बोधगया और उससे सटे बुद्ध सर्किट के शहरों-राजगीर और नालंदा का दौरा करने वाले सभी पर्यटक साल भर में मोटा खर्च करते है। पिछले कुछ सालों से पर्यटकों की बढ़ती संख्या की वजह से थाई एयरवेज, विमान लंका, भूटान की ड्रक एयर, म्यांमार एयरवेज इंटरनेशनल और म्यांमार एयरवेज बोधगया के लिए उड़ानें भर रही हैं। विदेशी पर्यटकों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर सड़क मार्ग को भी सुधारा गया है लेकिन , अभी भी उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाने में बहुत कुछ करना बाक़ी है। जब से बौद्ध सर्किट से जुड़े स्थानों को बेहतर बनाने का सिलसिला शुरू हुआ है,तब से बौद्ध देशों से आने वाले पर्यटकों की तादाद में इजाफा भी हुआ है। लेकिन, इनकी संख्या अब भी थाईलैंड और श्रीलंका में आने वाले बौद्ध पर्यटकों से बहुत कम है। इसी प्रकार से राम जन्म भूमि, कृष्ण जन्मभूमि, काशी विश्वनाथ, सीता माता की जन्मस्थली पुनौरा धाम , बद्रीनाथ , केदारनाथ , पुरी, रामेश्वरम , गंगोत्री , यमुनोत्री, अमरकण्टक , उज्जैन, गया. बैद्यनाथ धाम , कामाख्या आदि में भी सुविधाये बढ़ाकर उन्हें भारत के पर्यटक मानचित्र पर लाना होगा।
घर वन्यजीवों का
दक्षिण अप्रीका, केन्या , तंजानिया , दक्षिण अफ्रीकी जैसे देशों में हरेक साल लाखों विदेशी पर्यटक वहां के वन्य जीवन को देखने के लिए पहुंचते हैं। जबकि भारत भी एशियाई हाथी, बंगाल टाइगर, एशियाई शेर, तेंदुआ और भारतीय गैंडा सहित कई तरह के विख्यात बड़े स्तनधारी जानवरों का घर है। भारत में संरक्षित वन्य जीवों की बड़ी विविधता है। देश के संरक्षित जंगलों में भारत के 75 राष्ट्रीय उद्यान और 421 अभयारण्य शामिल हैं, जिनमें से बाघ परियोजना के दायरे में 19 आते हैं। इसकी जलवायु और भौगोलिक विविधता इसे 350 से अधिक स्तनपायी और 1200 पक्षी प्रजातियों का घर बनाती है, जिनमें से कई उपमहाद्वीप में शानदार हैं। भारत में प्रमुख वन्य-जीव अभयारण्यों में भरतपुर, कॉर्बेट, कान्हा, काज़ीरंगा, पेरियार, रणथंभौर और सरिस्का शामिल हैं। दुनिया का सबसे बड़ा सदाबहार जंगल सुंदरवन, दक्षिणी पश्चिम बंगाल में स्थित है। इनमें भी पर्यटकों की आमद बढ़ाई जाए।यानी भारत में पर्यटकों को लाने की तमाम संभावनाएं हैं। दुर्भाग्यवश इधर पर्यटन सथ्लों की बात हुई तो वो आगरा तक ही सिमट गई। अगर प्रयास ठोस और ईमानदार हों तो भारत में पर्यटकों की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी संभव है।
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)