चीफ सेक्रेटरी मटेरियल के लिए शिवराज ने खोजे चार नाम लेकिन
विशेष रिपोर्ट
विजय कुमार दास
मध्यप्रदेश में जब से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गद्दी संभाली है, तब से लेकर अभी तक जितने भी मुख्य सचिव बनाए गए हैं, उनका मापदंड उन्होंने स्वयं ही तय किया है। मुख्यमंत्री के तयशुदा मापदंड के अनुसार जो नौकरशाह राज्य सरकार की सकारात्मक छबि बनाने में काफी लंबे से काम किया हो या फिर प्रशासन के जनहितैषी छबि को सत्तारूढ़ दल के पक्ष में कायम करने में काबिल हो, ऐसे ही अफसर मुख्य सचिव बन पाएंगे। राज्य सरकार के मुख्य सचिव नेतृत्व में 51 जिलों के कलेक्टर तथा समूची निचले स्तर की नौकरशाही आम जनता से जूझती रहती है, लेकिन डिलेवरी सिस्टम को पुख्ता बनाने वाला मुख्य सचिव चुनावी वर्ष में काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। इसी के चलते वर्ष 2018 चुनावी वर्ष होने के कारण सियासी स्तर पर भी मुख्य सचिव की भूमिका को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। वर्तमान में सरकार और प्रशासन के आपसी सामंजस्य और मेलजोल से प्रदेश में विकास की बयार पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुंची है, ऐसा मुख्यमंत्री का दावा हो सकता है, लेकिन जहां 14 वर्षों से पार्टी सत्ता में हो वहां एंटी इनकमबैंसी फैक्टर काम न करे, यह संभव ही नहीं है। इसलिए 2018 मार्च में रिटायर होने वाले वर्तमान मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह के बाद मध्यप्रदेश का नया मुख्य सचिव कौन होगा, कैसा होगा इस बात को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के प्रमुख, संगठन महामंत्री एवं अपने प्रशासनिक सलाहकारों से मंथन का दौर प्रारंभ कर दिया है। आने वाले नए मुख्य सचिव के लिए जिन नामों पर बहस शुरू हो गई है, उनमें सबसे आगे फिलहाल राधेश्याम जुलानिया (1985) चल रहे हैं। जुलानिया के बारे में बताया जाता है कि मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार जिन तीन मुद्दों पर तत्कालीन कांग्रेस के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को टारगेट करके 2003 में सत्ता में आई थी, उसमें एक सबसे बड़ा मुद्दा पानी था जिसे कारगर बनाने में जुलानिया ने अहम भूमिका निभाई। मतलब किसानों के लिए सिंचाई और आम लोगों के लिए स्वच्छ पीने का पानी उपलब्ध कराने में जुलानिया की योजनाएं बेहद काम आई और मुख्यमंत्री को सार्वजनिक मंचों में यह कहने का मौका दिया कि दिग्विजय के जमाने में सिंचाई इतनी थी और आज हमारी सरकार में इतनी है। उल्लेखनीय है कि दिग्विजय सिंह की सरकार के जाने के बाद 2003 में मध्यप्रदेश का सिंचाई रकबा मात्र 7 लाख हैक्टेयर था, जो बढ़ते-बढ़ते पहले 5 साल में 18 लाख हैक्टेयर हुआ तो दूसरे 5 साल में 32 हुआ और अब चौथे-पांचवें साल में करीब 50 लाख हैक्टेयर सिंचाई के रकबे बढ़ाने का लक्ष्य शिवराज सरकार ने बना लिया है। इसलिए जिन 7 वर्षों में सिंचाई के रकबा बढ़ाने के लिए राधेश्याम जुलानिया ने युद्धस्तर पर कार्य किया, वह मुख्य सचिव बनने के लिए उन्हें सबसे पहले काबिल नौकरशाह बनाता है। दूसरे नौकरशाह हैं 1985 बैच के ही दीपक खांडेकर, जो फिलहाल केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जा रहे हैं, परंतु इनकी ईमानदारी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के प्रति वफादारी इन्हें मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव बनाने में सहायक हो सकती है। तीसरे अधिकारी हैं जिन्हें कहा जाता है मुख्य सचिव की दौड़ में वे नंबर वन पर हैं। उनका नाम है इकबाल सिंह बैंस, जो 1985 बैच के दमदार नौकरशाह हैं। इकबाल सिंह बैंस के साथ खूबियां बहुत हैं, लेकिन अपने ही सहपाठियों को नीचा दिखाने में उन्हें महारथ हासिल है। और यही कारण है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इकबाल सिंह बैंस को ऊर्जा विभाग से हटाकर पंचायत एवं ग्रामीण विकास थमा दिया है। वैसे भी चार महीने पहले जब किसी को मुख्य सचिव बनाने के लिए तैयार किया जाता है तो दो बातों का ख्याल रखा जाता है। पहला तो यह कि सरकार की सकारात्मक छबि निखारने में उक्त नौकरशाह की भूमिका कैसी रही। और दूसरा जब चुनाव सिर पर हो तब वह डिलेवरी सिस्टम को ठीक कर पाएगा अथवा नहीं। यदि यह दोनों बात आवश्यक है तो फिर इकबाल सिंह बैंस नंबर वन होते हुए भी पीछे हो सकते हैं। चौथे नौकरशाह हैं सुधिरंजन मोहंती। यह कहने में संकोच नहीं है कि विवादों में रहते हुए भी सुधिरंजन मोहंती उपरोक्त सभी नौकरशाहों से वरिष्ठ हैं और इनके पास मुख्य सचिव के रूप में काम करने के लिए पर्याप्त समय उपलब्ध है। इनके बारे में कहा जाता है कि शिवराज सिंह चौहान की सरकार में सुधिरंजन मोहंती ट्रबल शूटर हैं। जब-जब बेहतर से बेहतर योजनाओं को लागू करने के बात आती है तो मुख्यमंत्री सुधिरंजन मोहंती पर निर्भर हो जाते हैं। इनकी खासियत यह भी है कि डिलेवरी सिस्टम को तेजी से लागू करने में इनका कोई मुकाबला नहीं है। 1982 बैच के सुधिरंजन मोहंती के बारे में कहा जाता है कि इन्हें विवादों में घसीटा गया और नौकरशाही की आपसी मारकाट ने बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसलिए कहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चुनाव के ऐनवक्त के 8 महीने पहले यदि सुधिरंजन मोहंती को चीफ सेक्रेटरी मटेरियल के रूप में स्वीकार कर लें तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा, क्योंकि मोहंती के साथ सबसे बड़ा पक्ष यह है कि वे सबसे सीनियर हैं। दूसरा सरकार की सकारात्मक छबि निखारने में मोहंती के पास सैकड़ों योजनाएं उपलब्ध हैं। यह भी कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि दिग्विजय सिंह की दूसरी पारी में जीत का सेहरा सुधिरंजन मोहंती ने ही पहना था, क्योंकि मोहंती के पास डिलेवरी सिस्टम को ठीक करने का माद्दा तब भी था और आज भी है। इसलिए शिवराज सिंह के तयशुदा मापदंड और नए मुख्य सचिव की खोज भले ही मीडिया में अभी उजागर नहीं हुई हो, परंतु 2018 का प्रथम सप्ताह नए मुख्य सचिव की तलाश और उनके चयन को लेकर मंथन में जुटेगा ऐसा मान लेने में कोई हर्ज नहीं है। फिलहाल 2018 के नए मुख्य सचिव पद के लिए राष्ट्रीय हिन्दी मेल की ताजी रिपोर्ट का ऑकलन है कि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो राधेश्याम जुलानिया ही मध्यप्रदेश के नए प्रशासनिक मुखिया बनेंगे।