मुंबई,3 जनवरी। मोदी सरकार की ओर से हाल में लाए गए फाइनेंशियल रेजॉलुशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल (एफआरडीआई) में बेल-इन को लेकर बैंक डिपॉजिटर्स में जो डर का माहौल बना था वह हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स (एचएनआई) में भी फैल गया है और ये रईस निवेशक सुरक्षित कानूनी विकल्प ढूंढने में जुट गए हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार बॉलिवुड सेलिब्रिटीज से लेकर कॉर्पोरेट सीईओ और एनआरआई तक पूछ रहे हैं कि क्या उनको अपने फिक्स्ड डिपॉजिट बंद कर देना चाहिए? बैंकों का कहना है कि पब्लिक में डर फैलाया जा रहा है लेकिन एफडी इंस्ट्रूमेंट्स से बड़े पैमाने पर निकासी नहीं हो रही है। ऐसे ही मामले देख रहे एक वकील ने कहा यह जानने के लिए हमारे पास कई बॉलीवुड सेलिब्रिटीज से लेकर क्रिकेटर और हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स (एचएनआईज) की तरफ से कॉल्स आई थीं कि बैंकों के मामले में बेल-इन क्लॉज कहां लागू हो सकता है और इसका क्या असर हो सकता है? लोगों के दिमाग में यह बात बैठ गई है कि बैंकों के बेल-इन में छोटे डिपॉजिटर्स को तो छोड़ दिया जाएगा लेकिन हाई वैल्यू डिपॉजिट्स का इस्तेमाल किया जा सकता है।
पिछले महीने बैंक डिपॉजिट्स की सेफ्टी को लेकर पब्लिक में बड़ा हंगामा मचा था। उनकी चर्चा में एक बात यह उठी कि बैंकों के बेल-इन में डिपॉजिटर्स का पैसा यूज हो सकता है। इससे डिपॉजिटर्स के दिलों में बड़ा डर बैठ गया। एफआरडीआई को लेकर पब्लिक में इतनी गलतफहमी पैदा हुई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली तक को इस मामले में बोलना पड़ गया। उन्होंने कहा कि सरकार डिपॉजिटर्स के पैसों को पूरी तरह से सुरक्षित रखने को लेकर प्रतिबद्ध है।
एक पीएसयू बैंकर ने पहचान जाहिर नहीं किए जाने की शर्त पर कहा डर की बड़ी वजह सोशल मीडिया में फैल रही अफवाह है, लेकिन हमारे यहां से डिपॉजिट निकल नहीं रहा है। दस बैंकों को प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्शन के दायरे में लाया गया है, ऐसे में जिन लोगों को मामले की पूरी जानकारी नहीं थी, उन्होंने यह अफवाह फैला दी कि ये बैंक बंद कर दिए जाएंगे। ऐसे में बैंक डिपॉजिटर्स का डरना स्वाभाविक ही था। लेकिन इतिहास गवाह है कि आरबीआई और सरकार दोनों ने कभी किसी बैंक को बर्बाद होने नहीं दिया।
एफआरडीआई बिल का मकसद वित्तीय संस्थानों को बंद करने की व्यवस्थित प्रक्रिया स्थापित करना है। इसमें रेजॉलुशन कॉर्पोरेशन (आरसी) बनाने का प्रस्ताव है जो बैंक, एनबीएफसी, इंश्योरेंस कंपनियों, स्टॉक एक्सचेंजों सहित फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस में वित्तीय दिक्कतों के शुरुआती संकेतों को पकड़ सकेगा। इसमें इस बात का भी जिक्र है कि फाइनेंशियल टर्म्स में हमेशा जीरो लॉस की स्थिति बनना मुमकिन नहीं, लेकिन सरकार और रेग्युलेटर को यह सुनिश्चित करना होगा कि फाइनेशल इंस्टीट्यूशंस के दिवालिया होने पर नुकसान को सीमित रखा जा सकेगा और उनको टैक्सपेयर्स के पैसे से बेलआउट नहीं किया जाएगा।