जैसा सुना जाता है कि राम, आदि भाई लोग शुरुआत में ही गुरु के आश्रम गए थे और उन्होंने वहां गुरु के आदेश से सब काम किये और शिक्षा दीक्षा पाई और योग्यतम बने। कृष्ण भी सांदीपनि आश्रम गए और वहां गुरु से शिक्षा ली। कौरव पांडव ने भी गुरुआश्रम जाकर ज्ञान प्राप्त किया। भारत में गुरुकुल प्रथा बहुत प्राचीनतम हैं जिसके उदाहरण नालंदा, तक्षशिला रहे । ऐसा सुना जाता हैं एक समय भारत वर्ष में लाखों गुरुकुल संचालित थे तथा सीता द्रोपदी आदि राजकुमारियों के अलावा अन्य लड़कियों के लिए भी गुरुकुल व्यवस्था थी जहाँ से निकलकर योग्यता, घर गृहस्थी, लोकाचार , नैतिकता की शिक्षा दीक्षा दी जाती थी ली । कोमल हृदय बालक बालिकाएं शीघ्रता से अच्छी संस्कारित होकर निकलती थी। वे आश्रम आदर्श शिक्षा के केंद्र रहे। वहां से निकले छात्र-छात्राएं गुरु दक्षिणा में कुछ विशेष नियम लेकर निकलते थे और गुरु उन्हें बहुत प्यार और सम्मान से दीक्षित करते थे और दोनों एक दूसरे के पूरक थे।
लार्ड मेकाले ने भारतीय शिक्षा को तहस-नहस करने के वास्ते प्रथम गुरुकुल व्यवस्था को ख़तम किया और स्कूलों का निर्माण या शुरुआत की। वहां उसने अंग्रेजी माध्यम के द्वारा शिक्षा दीक्षा दी। इस तरह भारतीय संस्कृति को नष्ट का प्रयास किया और वह सफल भी हुआ। हमारे देश में लगभग दो सौ सालों में बहुत खुद क्या पूरा सांस्कृतिक आचरण अंग्रेजी संस्कृति का पोषक हुआ और हमने बहुत कुछ सीखा और अधिक खोया। इसके बाद देश स्वतंत्र हुआ और देश के कर्णधारों ने भी उसी परंपरा को आगे बढ़ाया और उसको पुष्प पल्लवित किया।
भारत स्वतंत्र हुआ और स्वच्छंदता को बढ़ावा और सब जातियों, धर्मों ने अपने अपने ढंग से आश्रम ,मठ, मदरसा, चर्च पद्धत्ति के माध्यम से फिर से गुरुकुल प्रणाली की शुरुआत की और हमारा देश धरम भीरु भी हैं और ही हैं । धरम के नाम पर हमारा विभाजन हुआ और हममे इतनी दूरियां हो गयी की अपनी प्रतिष्ठा, अस्तित्व, कायम करने फिर से इतिहास की पुनर्वृत्ति करके इन संस्थाओं को स्थापित किया और शुरुआत में कुछ अच्छे परिणाम मिले। पर धरम की आड़ में बहुत कुछ सीखने गए और अधिकांशतया गरीबों को सुविधाओं के नाम पर आकर्षित किया । धरम एक ऐसा औजार हैं और अन्धविश्वास की ओट में कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं । इसी प्रकार कोई ज्योतिष के नाम में ,कोई सीधे भगवान के दर्शन कराने के बहाने और कोई शिक्षा दीक्षा के बहाने इन संस्थाओं में भर्ती कराते हैं ।इनका आश्रम ,मठ ,मदरसा चर्च स्वयं के प्रभाव से प्रतिष्ठित होते हैं फिर उसमे धनी व्यक्ति ,प्रतिष्ठित /गणमान्य /सरकारी /असरकारी /नेता /अभिनेता धर्मगुरुओं के चेला /शिष्य /पिछलग्गू बन जाते हैं और वहां के प्रमुख इतने बड़े बड़े कोठियां ,आश्रम ,मदरसा,चर्च आदि बना लेते हैं जो प्राचीन राजाओं के महल को मात देते हैं ।सुरक्षा और व्यवस्था की दृष्टि से ।
किलेनुमा आश्रम में प्रवेश अपनी मजऱ्ी से मिलता और निकलना मठाधीश की नजरेंकर्म से ।इस प्रकार महंत ,संत गुरु घंटालों के द्वारा अपने ऐसे एजेंट तैयार किये जाते हैं जिनके माध्यम से लड़के लड़कियों ,गरीब महिलाओं पुरुषों को आश्रय देकर पहले धरम के नाम पर विश्वास अर्जित कर सुविधाएँ देते हैं और एक प्रकार का धीमा जहर या आश्रय देने के बदले काम लेते और धरम के नाम पर भीरु बनाते ।इसके बाद इनकी प्रभाव चिकित्सा शुरू होती हैं ,धीरे धीरे धन ,जन, बलशाली होकर अपने आभामंडल से समाज ,राजनेताओं को प्रभाव में लेते हैं उनके संरक्षण में दोनों एक दूसरे के पूरक और उपकारी हो जाते हैं ।और जहाँ औरतें ,लड़कियां होगी वहां व्यभिचार बढऩे या होने की संभावनाएं सौ प्रतिशत होती हैं ।इसमें कोई शक नहीं हैं ।अभी अभी कितने संतों ,गुरुओं के नामलिये जाये ।कितने मुल्ला मौलवियों ,पादरियों के द्वारा शोषण किया जाता हैं या किया जा रहा हैं ।जो सामने आ गए वे भ्रष्ट और बाकी अभी सब ईमानदार ।जब तक पकडे नहीं गए। इस प्रकार मठ ,मंदिर मदरसा ,चर्च आदि जो भी नाम दो या लो इनके प्रमुख प्रथम हिंसक, ,बलात्कारी होते हैं और बाद में ये दलाल का काम करते हैं ।