डॉ.हिदायत अहमद खान
आतंकी हमलों और जवानों के शहीद होने के नाम पर केंद्र में सरकार भले बदल गईं हों, लेकिन आतंकवादियों के नापाक इरादों पर कोई असर नहीं पड़ा है। हालात यहां तक पहुंच गए कि मोदी सरकार ने जिसे आतंकियों की घुसपैठ पर रोक लगाने वाला कदम बताया उसके बाद ही सीमापार से घुसपैठ और आतंकी हमलों की खबरें भी बहुतायत में आती दिखीं। इसके बाद हमारे जवानों के शहीद होने का सिलसिला भी बढ़ता चला गया। वर्ष 2017 के अंतिम दिन भी घुसपैठिए आतंकी हमले करने से बाज नहीं आए। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले के लेथपोरा क्षेत्र में आतंकियों ने बड़े हमले को अंजाम तब दिया जबकि संपूर्ण देश और दुनिया 2017 को विदाई देते हुए 2018 के स्वागत की तैयारी में थे।
आतंकियों से मुठभेड़ करते हुए हमारे 5 जवान शहीद हो गए। इसके जवाब में सभी हमलावर आतंकियों को सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में ही ढेर कर दिया। गौरतलब है कि पठानकोट एयरबेस हमले की तर्ज पर सीआरपीएफ कैंप में यह फिदायीन हमला हुआ। इस हमले से एक बात तो तय है कि सरकार के दावे झूठे साबित हुए हैं क्योंकि आतंकियों की घुसपैठ बहुतायत में हो रही है और हम उन्हें मुंहतोड़ जवाब भी नहीं दे पाए हैं, जिसके आधार पर देश की आवाम को बताया जा सके कि हमने अपने जवानों के शहीद होने का माकूल जवाब आतंकियों और उनके कथित आकाओं को दे दिया है। ऐसा जवाब जिसके बाद दुश्मन भारत की तरफ रुख करने के नाम से भी कांप जाएं। आतंकी हमलों से आक्राशित आमजन का गुस्सा तो अब सातवें आसमान पर है और ऐसा होना लाजमी भी है। आक्रोशित आमजन का कहना है कि आतंकियों के ठिकाने पर हमला किया जाना चाहिए, बचाव की मुद्रा से कोई हल निकलने वाला नहीं है। केंद्र की मोदी सरकार यदि इस दिशा में आगे बढ़ती है तो पूरा देश उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा दिखेगा। बहरहाल आतंकी हमले के बाद केन्?द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का बयान जरुर आया जिसमें उन्होंने कहा कि आतंकियों ने कायरतापूर्ण काम किया है और हमें अपने बहादुर जवानों पर गर्व है।
यहां राजनाथ देश की ओर से शहीदों के परिवारों को ढांढस बंधाते हुए दिखाई दिए, यथा- उनका बलिदान खाली नहीं जाएगा और पूरा देश जवानों के परिवार के साथ है। इस प्रकार यहां पर भी सधे हुए बयान ही सरकार की ओर से आते दिख रहे हैं, जबकि आंकड़े बताते हैं कि सीजफायर वॉयलेशन और क्रॉस बॉर्डर फायरिंग में यूपीए सरकार की अपेक्षा मोदी सरकार के समय में चार गुना ज्यादा जवान शहीद हुए हैं। यह खुलासा सूचना के अधिकार के तहत होता है इसलिए इस पर शक भी नहीं किया जा सकता। इसके अलावा आतंकी हमलों की हकीकत भी देश के सामने है। आरटीआई के जवाब में गृह मंत्रालय ने बताया है कि वर्ष 2011 से 2013 तक 10 जवान तो 2014 से सितंबर 2017 तक 42 जवान शहीद हुए हैं। गौरतलब है कि आरटीआई कार्यकर्ता जगदीश सैनी ने सूचना के अधिकार के तहत सवाल पूछा था कि आतंकवाद और सीमा पर घुसपैठ को रोकने में जम्मू कश्मीर एवं देश के अन्य हिस्सों में 1 जनवरी 2011 से लेकर आज तक कितने जवान शहीद हुए? इस मामले के दूसरे पक्ष पर नजर डालें तो पाएंगे कि मोदी सरकार ने तो नोटबंदी को भी आतंकियों की घुसपैठ को रोकने जैसा कदम घोषित कर दिया था और वकायदा इसके लिए आंकड़े भी जारी किए गए, लेकिन साल के आखिरी में हुए आतंकी हमले ने सरकार के दावे की पोल ही खोलकर रख दी। खासतौर पर तब जबकि हमले के महज 15 दिन पहले ही मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड और आतंकी संगठन जमात-उद-दावा के चीफ हाफिज सईद ने भारत के खिलाफ जहर उगलते हुए कहा था कि पूर्वी पाकिस्तान का बदला कश्मीर के जरिए लिया जाएगा। यह देखते हुए कहा जा सकता है कि हाफिज जो कह रहा है उसके आधार पर आतंकी हमले भी हो रहे हैं। बावजूद इसके मोदी सरकार ऐसी किसी नीति पर काम करती हुई दिखाई नहीं दे रही है जिसके जरिए हम आतंकियों को उनके अपने घर पर जवाब देते हुए दिखें। दरअसल अब वह समय आ गया है जबकि आतंक रुपी वृक्ष की शाखें काटने से काम नहीं चलेगा, बल्कि उसकी जड़ पर प्रहार करना होगा। यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका भी यह मान चुका है कि हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में आतंकियों का सुरक्षित अड्डा मौजूद है, जहां उन्हें प्रशिक्षण के साथ ही साथ प्रश्रय देने का काम भी बदस्तूर जारी है। ऐसे विपरीत समय में आमजन को भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की याद भी आती है, जिन्होंने ईंट का जवाब पत्थर से देते हुए 1971 में पाकिस्तान पर निर्णायक जीत दर्ज की और उसके बाद ही बांग्लादेश की स्थापना भी उनके महान होने के सबूत दे गई।
कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी भी कह चुकी हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भारत की महान बेटी थीं, जिन्होंने देश को एकजुट किया तथा भारत की जनता को धर्म एवं जाति के नाम पर बांटने का प्रयास करने वाली ताकतों के खिलाफ लगातार लड़ती रहीं। बकौल सोनिया, बांग्लादेश की स्थापना इंदिरा गांधी के इसी रुख का प्रतीक है, वह भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई ऊंचाइयों पर ले गईं। आज जबकि देश पर आतंकी हमले हो रहे हैं तो ऐसे ही गंभीर नेतृत्व की आवश्यकता महसूस की जा रही है, ताकि आतंकियों को माकूल जवाब दिया जा सके।