महिषी पर सवार परिजात योग में-मकर संक्रांति पर्व

महापर्व 15 जनवरी को, स्नान-दान एवं सूर्य अघ्र्य का विशेष महत्व रहेगा
भोपाल। मां चामुंडा दरबार के पुजारी गुरूजी पंडित रामजीवन दुबे एवं ज्योतिषाचार्य विनोद रावत ने बताया कि माघ मासे कृष्ण पक्षे तिथि 13 रविवार मूल नक्षत्र 14 जनवरी रात्रि 8 बजे सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करेगे। महापर्व 15 जनवरी को दोपहर तक रहेगा। सूर्य उत्तरायणे मकर के सूर्य श्रेष्ठ माने है। खरमास का समापन होगा। शुक्र अस्त के कारण मांगलिक कार्यों का शुभारंभ नहीं होगा। समस्त पंचांग में उपरोक्त बातों का प्रमाण है।
मकर संक्रांति महिषी वाहनं (भैस), ऊंट उपवाहन, दक्षिण दिशा में गमन। लौह पात्रं, दधि भक्षणं, महावरलेपन, मणि भूषणम-श्वेत कंचुकी, तोमर आयुध श्याम वस्त्रं प्रगल्भ अवस्था। 14 जनवरी मध्यरात्रि 2.31 बजे से 15 जनवरी दिन में दोपहर 3 बजकर 35 मिनट तक भद्रा रहेगी। इस दिन दान पुण्य का अधिक महत्व है। तिल, लड्डू, खिचड़ी, वस्त्र, कंबल, मच्छरदानी, मुद्रा दान करें। मकर संक्रांति के दिन लोग पवित्र नदियां गंगा, नर्मदा, गोदावरी में जाकर स्नान कर सूर्य को अघ्र्य देगे। मकर संक्रांति के दिन पंतगबाजी भी होगी। तुला राशि में मंगल के साथ गुरु होने के कारण परिजात योग बन रहा है।
राशियों पर प्रभाव
मेष-लाभ, वृष-कष्ट, मिथुन-सम्मान, कर्क-हानि, सिंह-तरक्की, कन्या-अशांति यात्रा, तुला-पदोन्नति, वृश्चिक-प्रतिष्ठा, धनु-सफलता, मकर-हानि, कुंभ-लाभ, मीन-स्थानांतरण, कष्ट।
मकर संक्रांति से जुड़ी गाथाएं
कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाया करते हैं। शनिदेव चूंकि मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा उनसे मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है। महाभारत काल के महान योद्धा भीष्म पितामह ने भी अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। भगवान विष्णु ने इस दिन असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी व सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है। यशोदा जी ने जब कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था तब सूर्य देवता उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। कहा जाता है तभी से मकर संक्रांति व्रत का प्रचलन हुआ।
राजनीति पर असर : मकर संक्रांति मध्यप्रदेश की राजनीति के लिए ठीक नहीं रहेगी। जिसका असर चुनाव में भी दिखाई देगा। मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य के प्रति ठीक नहीं है। मुख्यमंत्री को अनेक भीतरघातियों का सामना करना पड़ेगा। बेरोजगारों के लिए सरकार रोजगार के नए अवसर प्रदाय करेगी परंतु बेरोजगारों की संख्या के सामने प्रयास बौने साबित होंगे। प्रदेश में इस वर्ष सरकार में अधिकारी वर्ग का शासन पर प्रभाव घटता हुआ दिखाई देगा परंतु प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लग सकेगा। आय से अधिक सम्पत्ति एवं घूसखोरी के मामले बहुतायत रहेंगे।
बिजली की समस्या एवं मूल्य वृद्धि से जनता परेशान रहेगी। व्यापम घोटाले को आधार बनाकर कांग्रेस अपना प्रभाव बढ़ाने में सफल रहेगी। मंत्री मंडल में जगह पाने भारी खींचतान रहेगी। इस वर्ष सड़क हादसे प्रदेश में बहुतायत होंगे एवं अग्नि प्रकोप सेे जन हानि की संभावना है।