प्रसंगवश
राजेश सिरोठिया
मध्यप्रदेश में आखिर क्या हो रहा है? एक के बाद एक बस हादसे हो रहे हैं और कागजी खानापूर्ति करके सारा काम फिर अपने ढर्रे पर चल पड़ता है। फिर चाहे वह मुसाफिरों की बसों के हादसे का मसला हो या फिर बच्चों की स्कूल बसों का। कहीं स्पीड गवर्नर लगाने वाली कंपनियां आपराधिक लापरवाही कर रही हैं, तो कहीं राजनीतिक रैलियों के लिए स्कूल बसों को गंतव्य तक जल्द पहुंचाने के लिए स्पीड गवर्नर हटवाने के काम चल रहे हैं। गवर्नेंस के दावे सिफर हैं और हर हादसे के बाद सरकार कास्मेटिक टाइप का काम करके मामले पर पाउडर और क्रीम का लेपन करके फारिग हो जाती है। सेंधवा में बस की आगजनी से लेकर बुंदेलखंड में हुए बस हादसों सबकी एक कहानी है। हादसा होता है, सरकार जागती है, आरटीओ को मुअत्तिल किया जाता है, मुख्यमंत्री जाकर पीडि़तों के परिजनों से मिलकर आंसू बह आते हैं, दो-चार घोषणाएं हो जाती हैं, दो-चार नए फरमान जारी हो जाते हैं, और कुछ दिनों के बाद गाड़ी फिर उसी ढर्रे पर लौट आती है, फिर सरकार तभी चेतती है जब कोई नया हादसा हो जाता है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर ऐसा हो ही क्यों रहा है कि बार-बार मुख्यमंत्री को मातमपुरसी के लिए जाना पड़ता है? आखिर ऐसी नौबत ही क्यों आती है? बात सिर्फ बस हादसे तक सीमित नहीं है। पेटलावद हो या फिर छिंदवाड़ा में हुए विस्फोटकों के फटने के हादसे या फिर मंदसौर में किसान गोलीचालन जैसी घटनाएं। सभी मामलों में कहीं न कहीं प्रशासनिक स्तर ही गफलतें अफसरों और सरकारी मुलाजिमों का लेतलाली भरा रवैया शिवराज और उनकी सरकार के लिए मुसीबतों का सबब बन जाता है। अगर इंदौर के ताजा बस हादसे की बात करें तो यह बात सरकार के अब जाकर ध्यान में आई कि बसों को जो फिटनेस जारी किए जाते हैं, वह उसकी भौतिक हालत देखकर दिए जाते हैं। वैसे भी पीएससी की परीक्षा पास परिवहन विभाग का दरोगा कोई मैकेनिक या आटोमोबाइल अथवा मैकेनिकल इंजीनियरिंग का स्नातक तो नहीं होता। फिर वह गाडिय़ों की फिटनेस कैसे तय कर सकता है। हर हादसे पर मुख्यमंत्री के मुख से एक ऐसा ऐलान कराया जाता है, जो सरकारी खजाने पर बेवजह के बोझे का नया सबब बन जाता है। हर जिले में आटोमैटिक फिटनेस सेंटरों पर करोड़ों खर्च करके क्या हासिल होगा? फिटनेस का सर्टिफिकेट तो आरटीओ का अमला देगा, या फिर टोल नाकों की तरह सरकारी प्रावधानों को ताक में रखकर प्रायवेट कंपनियों को यह काम थमा दिया जाएगा। शिवराज जी मप्र की जनता आपको टैक्स इसलिए देती है, ताकि आप उसका विवेक सम्मत तरीके से इस्तेमाल करें। आप इस बात को भी समझें कि आपदा को अवसर में बदलने की जो कला आपके पास थी, अब उसको आपके अफसरों ने हड़प डाला है, पहले वह आपदा पैदा करते हैं और फिर आपसे मनचाही घोषणाएं करवाकर अपना उल्लू सीधा करवाते हैं। प्याज को लेकर गोलीकांड से लेकर भावांतर तक सभी जगह ऐसा ही हो रहा है। अब फिटनेस सेंटरों के नाम पर भी ऐसा ही कुछ होगा। इसके बेहतर क्या यह नहीं हो सकता कि जिस कंपनी ने बस बेची है वही गाडिय़ों की मैकेनिकल फिटनेस का प्रमाण पत्र दे और इसे आरटीओ सत्यापित करे। यदि इसमें कोई गड़बड़ी निकले तो संबंधित बस डीलर और उसके सर्विसिंग सेंटर को जवाबदेह बनाया जाए…! जिसका जो काम है वही करे तो बेहतर होगा।