डॉ. हिदायत अहमद खान
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एक दिवसीय दौरे पर खाड़ी देश बहरीन पहुंचे तो सभी की नजरें अनायास ही उन पर टिक गईं। सूट-बूट में दिखे राहुल ने जहां सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा तो वहीं उन्होंने करीब 50 देशों के भारतीय मूल के कारोबारियों और उद्योग जगत की मानी हुई हस्तियों से मुलाकात कर राजनीतिक विश्लेषकों तक को चौंका दिया। दरअसल समझा जा रहा था कि राहुल विदेश यात्रा करने की बजाय उन प्रदेशों में ज्यादा ध्यान और समय देंगे जिनमें कि इसी वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं।
इस दृष्टि से राहुल का बहरीन जाना किसी के गले नहीं उतरा, लेकिन मानना ही होगा कि इस यात्रा के जरिये भी राहुल राजनीतिक समीकरण बैठा रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे कि उन्होंने गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले अमेरिका की यात्रा करके राजनीतिक गोटियां बैठाने में सफलता हासिल की थी। यही वजह थी कि गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार के बावजूद वो सफलता हासिल हुई जिसकी कि लंबे समय से पार्टी को दरकार थी।
यहां भाजपा 150 सीटें हासिल करने का दम भरते-भरते 100 की सीमा पर बंध गई। इसके बाद भाजपा को हमेशा इस बात का डर सताता रहेगा कि कहीं पाटीदार समाज से आने वाले जनप्रतिनिधि नाराज होकर पार्टी न छोड़ दें, क्योंकि महज 10 या 12 सदस्यों के पार्टी छोडऩे से सरकार अल्पमत में आ जाएगी। बहरहाल यहां बात अब राहुल के बहरीन दौरे की हो रही है तो बता दें कि एक दिवसीय दौरे पर बहरीन पहुंचे राहुल का ग्लोबल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ पीपल ऑफ इंडियन ऑरिजन के सदस्यों ने एयरपोर्ट पर भव्य स्वागत किया।
इससे यह संदेश जाता है कि राहुल के प्रति भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेका-अनेक देशों में फैले भारतीय मूल के लोगों में भी विश्वास जागा है। यही वजह है कि करीब 50 देशों के भारतीय मूल के बिजनेस लीडरों ने राहुल से न सिर्फ मुलाकात की बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था व आर्थिक मंदी पर चर्चा भी की। कहने को तो कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान अपने हाथों में थामने के बाद राहुल गांधी का यह पहला विदेश दौरा रहा, लेकिन जिस तरह से उन्होंने यहां प्रमुख लोगों से मुलाकात कर चर्चा की, उससे उनके अनुभवशाली राजनेता होने के सबूत मिलते हैं। अगर यकीन नहीं होता तो गौर करें बहरीन जाने से पहले राहुल गांधी के उस ट्वीट पर जिसमें वो कहते हैं कि ‘एनआरआई हमारी सॉफ्ट पावर के वास्तविक प्रतिनिधि और दुनिया भर में हमारे देश के ब्रांड एंबेसडर हैं।
इससे समझ आता है कि देश की राजनीति में इस ‘सॉफ्ट पावर का विशेष स्थान है और इनके जरिए बहुत से हितों को साधा जा सकता है। वैसे ‘सॉफ्ट पॉवर शब्द का प्रयोग पूर्व से ही अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में किया जाता रहा है। इसके तहत कोई देश परोक्ष रूप से सांस्कृतिक अथवा वैचारिक संसाधनों के माध्यम से किसी अन्य देश के व्यवहार अथवा हितों को प्रभावित करता है। इसमें आक्रामक नीतियों या मौद्रिक प्रभाव का उपयोग किए बिना अन्य देशों को प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है। इस अर्थ में ‘सॉफ्ट पॉवर की अवधारणा का सर्वप्रथम प्रयोग हार्वर्ड विश्वविद्यालय के जोसेफ न्ये द्वारा किया गया और उसी आधार पर ‘सॉफ्ट पॉवर कूटनीति अब राजनीतिक क्षेत्र में काम करती है। इसलिए राहुल का यह दौरा कर्नाटक की राजनीति में समीकरण बैठाने वाला है।
अब इसमें यदि भाजपा प्रवक्ता जेवीएल नरसिम्हा राव को राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नकल करते प्रतीत हों तो उसमें भी कोई बुराई नहीं है, क्योंकि राजनीति में तो सब जायज जैसा सूत्र भी तो कार्य करता ही है। इसलिए राहुल युवाओं से मिलने कॉलेज और यूनिवर्सिटी जाते हैं, मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं, दरगाहों में चादर चढ़ाते हैं और सभी धर्मों के प्रमुखों से भी सौहार्दृपूर्ण मुलाकात करते हैं। दु:ख-सुख बांटने वो गरीबों के बीच पहुंचते हैं।
इन सब में भी किसी न किसी नेता की नकल करते राहुल विरोधियों को नजर आ ही जाएंगे। इसमें हैरानी होना भी नहीं चाहिए, क्योंकि राहुल अब राजनीति के आलराउंडर खिलाड़ी हो चुके हैं और उनका हर कदम किसी न किसी रुप में राजनीतिक समीकरण को साधता ही है। राहुल का बहरीन दौरा भी यदि कर्नाटक समेत चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर हुआ है तो उसमें हर्ज ही क्या है।