पाक की मदद रोकने का कारण आतंकवाद या कुछ और…!

ओमप्रकाश मेहता
यद्यपि उत्तरी कोरिया और अमेरिका के बीच दिनों-दिन बढ़ रहे विवाद को लेकर विश्वयुद्ध की आशंका से तो पूरा विश्व चिंतित है ही, किंतु अमेरिका द्वारा पाक की आर्थिक मद्द रोकने के पीछे भी विश्व के देशों की आशंका है कि पाक की आर्थिक मद्द रोकने के पीछे पाक द्वारा आतंकवाद को दिया जा रहा आश्रय नहीं बल्कि उस पर चीन की सरपरस्ती है और इस आशंका को इसलिए भी मजबूती मिल गई, क्योंकि अमेरिका के इस कदम के बाद तत्काल चीन ने पाक को भरपूर मद्द का आश्वासन दे दिया। यहां यह भी चिंतनीय है कि उत्तरी कोरिया की पीठ पर भी चीन का हाथ है और वह अंदरूनी रूप से उत्तर कोरिया के पगलाए राष्ट्रपति किमजोंग को अमेरिका के खिलाफ भड़काता रहता है, और स्वयं उसे हर तरह की मद्द के लिए आश्वस्त करता रहता है।
वैसे यह किसी से भी छुपा नहीं है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने महज एक साल के कार्यकाल में ही अमेरिका में काफी अलोकप्रिय हो गए है, एक साल में 59 फीसदी अमेरिकीयों ने ट्रम्प के प्रति नापसंदगी जाहिर की है। अमेरिका निवासियों की एक दलील का ट्रम्प उत्तर नहीं दे पा रहे है कि आखिर एक साल में विश्व के आधा दर्जन देश अमेरिका के दुश्मन कैसे हो गए? पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा का इतनी लम्बें कार्यकाल अविवादित कैसे रहा? ट्रम्प के आसपास के पूर्ववर्ती लोग ही अब ट्रम्प की पोल खोलने को मजबूर क्यों है? अमेरिकी चुनाव प्रचार के दौरान डोनाल्ड ट्रम्प के सलाहकार रहे जार्ज पापाडोपलस ने खुले आम स्वीकार किया कि ट्रम्प की जीत रूस की अंदरूनी दखल के बलबूते पर हुई थी, और अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी एफ.बी.आई. ने इसकी जांच भी की है।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि चूंकि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के व्यक्तिगत व कूटनीतिक रिश्ते अच्छे है, इसलिए भी भारत से सीमा विवाद में उलझे पाक व चीन दोनों ही देश भारत-अमेरिका को अपना दुश्मन मानते है; और इसीलिए हमारे भारत की सीमाऐं आतंकवाद घुसपैठ तथा अतिक्रमण की दृष्टि से सुरक्षित नहीं है।
अब यह तो एक खोज और विवाद का विषय है कि अमेरिकी आर्थिक मद्द बंद होने का असर पाकिस्तान पर कितना पड़ेगा और चीन उसकी कितनी आर्थिक मद्द कर पाएगा, किंतु पाक के लिए 1624 करोड़ डॉलर की रकम का आना बंद होना कोई छोटी बात नहीं है, इससे पाक की आर्थिक स्थिति काफी डावांडोल हो सकती है, इसीलिए पाक के हुक्मरानों में घबराहट भी है, और वे सिर्फ दिखावे के लिए अपने आपकों चिंतारहित दिखाने का प्रयास कर रहे है, अमेरिका द्वारा अब तक पाक को दी गई आर्थिक मद्द का मूल मकसद यह था कि अमेरिका पाक की मद्द के जरिए एशिया में अपना दखन बढ़ाना चाहता था, और मद्द को रोकना अमेरिका द्वारा पाक पर दबाव बढ़ाना भी माना जाए तो गलत नहीं होगा, वास्तविक रूप से आतंकवाद का इससे कोई लेना-देना नहीं है, किंतु पाक की सरकार भी चीन के साथ बढ़ रही दोस्ती और चीन की पाक में दखलंदाजी ने अमेरिका को काफी निराश किया और अपने मकसद में सफलता नहीं मिलने के कारण ही अमेरिका की बोखलाहट बढ़ी और आर्थिक मद्द रोकने का यह नाटक किया गया। और कोई आश्चर्य नहीं कि पाक यदि थोड़ा भी अमेरिका के प्रति सकारात्मक रूख अपनाता है तो अमेरिका अपने फैसले को किसी भी समय रद्द भी कर सकता है। क्योंकि ट्रम्प का यह फैसला पूर्णत: राजनीतिक माना जा रहा है।
यद्यपि पाक व चीन यह आरोप खुलआम लगा रहे है कि अमेरिका ने पाक की आर्थिक मद्द रोकने का फैसला भारत के अनुरोधपूर्ण दबाव के कारण लिया है, क्योंकि भारत के दोनों ही पड़ौसी देशों से रिश्ते तनावपूर्ण है और पाक-चीन दोनों ने ही भारत की सेना को सीमा पर केन्द्रीत करके रखा है, पाक प्रतिदिन आतंकियों की खेप भारत में घुसपैठ हेतु भेज रहा है तो चीन भारत की सीमा में अतिक्रमण कर आए दिन मुसीबतें खड़ी कर रहा है। अर्थात्् भारत को दोनों देश अपने में उलझाए रखना चाहते है, जिससे कि भारत विश्व के अन्य देशों के साथ अपने सम्बंधों को मजबूती प्रदान न कर सके। कुल मिलाकर अमेरिका द्वारा पाक की आर्थिक मद्द रोकना उसके लिए फायदेमंद इसलिए भी रहा कि इससे जहां भारत से उसे सहानुभूति प्राप्त हुई वहीं, वह अपने मूल मक्सद के लिए पाक पर दबाव डालने में भी सफल रहा, जहां तक चीन का सवाल है, वह तो अमेरिका का स्थाई दुश्मन है ही। यह भी कितना अजीब है कि कभी अमेरिका व रूस एक दूसरे के कट्टर विरोधी ताकतें मानी जाती थी और आज दोनों गलबहिया डाले हुए है।