सादगी और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे शास्त्री जी

मनोहर पुरी
क्या आपने कभी ऐसे राजनेता को कल्पना में भी देखा है जो वर्षों किसी नगर निगम का पार्षद रहा हो,किसी अखिल भारतीय राजनीतिक दल का महत्वपूर्ण पदाधिकारी रहा हो, प्रान्तीय और केन्द्रीय सरकार में मंत्री रहा हो और अन्त में प्रधान मंत्री के पद पर भी आसीन रहा हो और अपने छोटे से व्यक्तिगत कार्य के लिए उसे बैंक से कर्जा लेना पड़ा हो जिसे वह चुकता न कर पाया हो। जी हां ऐसे ही राजनेता थे लाला बहादुर शास्त्री जो सादगी और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे। भारतीय स्वाधीनता के प्रखर प्रहरी श्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 ई. को मुगल सराय में श्री शारदा प्रसाद व श्रीमती राम दुलारी देवी के घर में हुआ।
शास्त्री जी का बाल्यकाल निर्धनता के वातावरण में गुजरा। जब वह डेढ़ वर्ष के थे तो उनके पिता का देहान्त हो गया। श्रीमती रामदुलारी लाल बहादुर जी और उनकी दोनों बहिनों के साथ अपने मायके राम नगर चलीं आईं। यहां पर अनेक आर्थिक कठिनाईयों का सामना करते हुए उन्होंने अपने तीनों बच्चों का लालन पालन किया। परिस्थितियों की भयावता के कारण निर्धनता की भयंकरता का बोध इन्हें बचपन में ही हो गया था। इनके स्कूल जाने के मार्ग में एक नदी पड़ती थी। पैसों के अभाव में वह नदी को तैर कर ही पार करते थे।
इनकी शिक्षा भारतेन्दु हरिशचन्द्र द्वारा स्थापित बनारस के हरिशचन्द्र स्कूलक्व में हुई। इन्होंने एक दूर के रिश्तेदार के यहां रह कर शिक्षा प्राप्त की। एक प्रकार से यह वहां एक नौकर की भान्ति रहते थे। अपने विद्यार्थी जीवन में भी उन्हें अपने लिए स्वयं अर्जन करना होता था। 1920 ई. में शास्त्री जी स्कूल छोड़ कर गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े और जेल गए। ढाई वर्ष पश्चात जेल से छूटने के बाद इन्होंने काशी विद्यापीठ से पुन: अध्यापन कर शास्त्री की उपाधि प्राप्त की और लाल बहादुर शास्त्री बन गए।
शास्त्री जी का विवाह 1927 ई. में ललिता देवी के साथ हुआ। शास्त्री जी के आदर्शों को व्यवहारिक रुप देने का श्रेय इन्हें ही जाता है। स्वधीनता आन्दोलन में भाग लेने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही नाजुक हो गई। तब के विषय में उन्होंने स्वयं लिखा है कि कई महीनें तक उन्हें एक वक्त भोजन करके गुजारा करना पड़ा। उनके एक बच्चे का देहान्त इसलिए हो गया क्योंकि उनके पास डाक्टर को देने के लिए पैसे नहीं थे। जब वह भारत सरकार में गृह मंत्री थे और महीने का अन्तिम सप्ताह था जब उनके पोते ने एक नई स्लेट लाने का अनुरोध किया। दो दिन और किसी तरह काम चलाओ,पहली को वेतन मिलते ही नई स्लेट ला दूंगा।क्वक्व शास्त्री जी का उत्तर था। भारत का प्रधान मंत्री बनने के बाद भी उन्होंने अत्यन्त आवश्यक सुविधाओंको छोड़ कर सरकारी सुविधाओं का प्रयोग नहीं किया।
इस सन्दर्भ में एक मार्मिक प्रसंग उनकी पुत्रवधु श्रीमती नीरा शास्त्री ने सुनाया। उन्होंने बताया कि जब शास्त्री जी देश के प्रधानमंत्री थे तब भी उनके बच्चे साइकिल पर ही आते जाते थे। एक बार सबने मिल कर उनसे कहा कि हमारे मित्र हमें इस बात के लिए चिढ़ाते हैं कि प्रधानमंत्री के बच्चे हो कर भी तुम लोग साइकिल का प्रयोग करते हो। सभी लोग शास्त्री जी को बैंक से कर्ज लेने के लिए मनाने में किसी तरह से सफल हो गए। बैंक से 6000रुपए का कर्ज ले कर एक मोटर खरीदी गई। शास्त्री जी अपने वेतन से यह कर्ज नहीं चुका पाए।
एक बार शास्त्री जी ने अपने छोटे बेटे को अपने कपड़ों की अलमारी ठीक से लगाने के लिए कहा। रात में देखा तो अलमारी में तीन कुर्ते नहीं थे। उनके पूछने पर बताया गया कि कुर्ते आस्तीन और बगल से इतने अधिक फट गए थे कि उन्हें पहनना संभव नहीं रहा था। फलत: वे कुर्ते अम्मा को तकियों के गिलाफ अथवा थैले बनाने के लिए दे दिए गए हैं ताकि उनका कुछ प्रयोग हो सके। शास्त्री जी ने तुरन्त उनको कुर्तों को वापिस मंगवा लिया। उनका कहना था कि अभी जाड़ों का मौसम आ रहा है फलत: मैं उन्हें स्वेटर और मिरजई के नीचे कुछ समय तक और पहन कर उनका प्रयोग कर सकता हूं।
सन् 1017 में चम्पारन सत्याग्रह,1918 के कर न देने के अभियान और 1919 में जलियांवाला बाग कांड ने शास्त्रीजी की मानसिक सोच पर गहरा प्रभाव डाला। जब सन् 1920 में महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा तथा असहयोग आन्दोलन के लिए देशवासियों का आह्वान किया तो शास्त्री जी 16 वर्ष की अल्पायु में ही आन्दोलन में कूद पड़े। यहीं से शास्त्री जी राजनीतिक यात्रा का प्रारम्भ हुआ। सन् 1926 में जब वह लोकसेवक संघ के सदस्य बने तो उन्होंने इलाहाबाद को अपनी कर्मभूमि बनाया। वह इलाहाबाद म्युनिसिपल बोर्ड के सात वर्षों तक सदस्य रहे। 1930 से 1936 ई. तक जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद पर रहे। उन्होंने सात बार की जेल यात्राओं में नौ वर्ष की अवधि व्यतीत कीं। प्रान्तों को स्वायतता देने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा जब 1937 ई. में विधान सभाओं के गठन का अधिनियम पारित किया गया तो वह उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। देश के स्वतंत्र होने पर जब राज्य सरकारों का गठन हुआ तो उन्होंने उत्तर प्रदेश के गृह और यातायात मंत्री का कार्य भार संभाला।