सीमा अग्निहोत्री
भाषा मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। मनुष्य व संसार के मध्य संबंध स्थापित करने का मुख्य आधार भाषा है। संसार के अनेक देशों में विविध भाषाओं का प्रयोग किया जाता है तथा प्रत्येक राष्ट्र की एक राष्ट्रभाषा भी है जो उस देश की पहचान है। हमारे देश भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है। आजादी के बाद भले ही हमने सर्वसम्मति से हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया हो, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उसे एक सम्मानजनक स्थिति न देकर हमने अपनी गुलामी मानसिकता का परिचय दिया है। विडंबना है कि समय बीतने के साथ हम अपनी भाषा को भूलकर विदेशी भाषा के चुंबकीय प्रभाव में आ गए हैं, जबकि हिंदी चहुंओर बोले जाने वाली भाषा है। पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव इस कदर बढ़ा है कि सिर्फ अंग्रेजी को ही बढ़ावा दिया जा रहा है। हर व्यक्ति अंग्रेज़ी सीखने व बोलने को आतुर दिखता है।
आंग्ल भाषा का प्रयोग करने वाले को स्टेटस से जोड़कर देखा जाता है। यह जरूरी-सा हो गया है कि कुछ तथाकथित शिक्षित लोगों के बीच बात रखनी है तो आपको अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करना आवश्यक होगा अन्यथा हिंदी बोलने पर आपको हेय दृष्टि से देखा जाएगा। वर्तमान में हम अंग्रेजी को एक भाषा की दृष्टि से नहीं फैशन की तरह अपनाए हुए हैं। बोलना, पढऩा, पढ़ाना, संगीत, नृत्य, कला, खान-पान, रहन-सहन, पहनावा सब अंग्रेजों की सभ्यता से प्रभावित है। अंग्रेजी के इस प्रभाव से एक आम विचार बन गया है कि हम अंग्रेजी भाषा व संस्कृति को अपनाकर आधुनिक बन गए हैं और लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने का तथा अपनी विशेष छवि अंकित करने का यह सशक्त माध्यम है।
ऐसा मानना नितांत एक भ्रम है। आज अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में पढ़ाकर गौरवान्वित महसूस करते हैं। अंग्रेज़ी माध्यम वाले विषयों को विशेष रूचि के साथ पढऩे को प्रोत्साहित करते हैं। बच्चे हिन्दी में बात करना नहीं चाहते हैं और हिंदी बोलना या बोलने वाले को हेय दृष्टि से देखते हैं। हिंदी भाषा जो विद्यालय स्तर पर एक अनिवार्य विषय है, उसे अछूता छोड़ देते हैं। अत: बच्चों में हिंदी के प्रति बेरुखी स्वाभाविक है। सारांश यह है कि हिंदी की स्थिति अत्यंत विचारणीय है। प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाना महज एक औपचारिकता को पूरा करना है यही हाल रहा तो आने वाले समय में हमारी राष्ट्रभाषा केवल किताबों में रह जाएगी। हिंदी की वर्तमान स्थिति के प्रति गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा। सुधार का श्री गणेश हमें स्वयं करना होगा। पुरानी पीढ़ी को नई पीढ़ी के जेहन में यह बात डालनी होगी कि हिंदी कितनी विशुद्ध और वैज्ञानिक भाषा है।
हिंदी के हर शब्द में उसका अर्थ छिपा है। उससे जितना जानते जाओगे हिंदी से उतना ही प्रेम होता जाएगा। जितना सम्मान और महत्व हम अंग्रेजी को देते है उतना ही हमें हिंदी को देना होगा। समय की माँग को ध्यान में रखते हुए अंग्रेज़ी को व्यवहार में लाना अनुचित नहीं है। निसंदेह अंग्रेज़ी एक सशक्त प्रभावी भाषा है लेकिन किसी भी दृष्टि से हिंदी के अस्तित्व पर आंच नहीं आनी चाहिए। हिंदी हमारी अपनी भाषा है और हम इसके विकास समृद्धि के बारे में प्रयास करना चाहिए। हिंदी में जो वैज्ञानिक गहनता और शब्द सौंदर्य समाया हुआ है, वह किसी अन्य भाषा में नहीं है। इस सुंदर भाषा की मान-मर्यादा को पुन: प्रतिष्ठापित करने की पहल हमें करनी होगी।