डॉक्टर अरविंद जैन
बात एकसमय की हैं ,एक शेर झरना के ऊपर तरफ से पानी पी रहा था और एक बकरी उसके नीचे पानी पी रही थी शेर बकरी से बोला तुमने मेरा पानी झूठा कर दिया ! बकरी बोली आप ऊपर हैं तो आपका पानी कैसे झूठा हुआ? तो शेर बोला एक दिन तुम्हारे पिता जी ने मेरे ऊपर से पानी पिया था । इसीलिए मेरा पानी झूठा हो गया था और शेर ने बकरी को खा लिया/ कुछ न कुछ बहाना चाहिए।
अभी कोलकोता में ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी मुख्यालय में यह कह दिया की कोई बन्दे मातरम् नहीं गाएंगे और विवाद हो गया ,कुर्सी टेबल तोड़ दिए गए।ऐसा ही मुद्दा हमेशा मुसलंमान की तरफ से आता हैं की हम राष्ट्रगीत नहीं बोलेंगे ।अभी अभी सुना व्यास गादी पर महिलाएं नहीं बैठेंगी । या कावेरी विवाद या दलित या ऊपरी जाति का विवाद ।
जैसे शांत तालाब में एक कंकड़ फेंक दो और फिर तरंगे देखो। राजनीतिक पार्टियों में और राजनेताओं में यह एक आम बात हैं ।कारण अपने अस्तित्व को जिन्दा रखना हैं तो कोई न कोई विवाद रखो ।हर राजनैतिक पार्टी में कुछमुँहफट और विवाद पैदा करने वाले रखे जाते हैं जिससे पार्टी का या व्यक्ति का जिन्दा बना रहता हैं।
गुजरात चुनाव ने तो अपने हदें तोड़ डाली थीऐसे ही विवाद हमारे पडोसी से होते रहते हैं। ये विवाद एक प्रकार से राजनीती का अंग होता हैं ।सत्तर वर्षों से ऊपर का समय हो गया हैं की एक कौम राष्ट्रगीत ,राष्ट्र की परम्पराओं को नहीं मानती ।वे जानभूझकर इस विषय को प्रतिष्ठा का बनाये हैं ।क्या उनके यहाँ कोई भी किसी को आपस में इज़्ज़त नहीं देते ।कोई किसी का पैर नहीं पड़ता या हाथ नहीं जोड़ता ।क्या कोई विनती या इबादत नहीं करता पर सार्वजनिक तौर पर ऐसा मानते हैं की वे सिर्फ अपने निराकार ईश्वर को मानते हैं ।जब कोई देश का त्यौहार मनाएंगे उसमे राष्ट्रगान नहीं गाएंगे,भारत माता की जय नहीं बोलेंगे।पता इतनी तंगदिली क्यों रहती हैं ,यह सब मानसिकता कब ख़तम होंगी।अभी तीन तलाक़ का मामला चल रहा हैं इस पर दो फिरके बने हुए हैं एक उस कानून में कुछ न कुछ गलतियां निकाल कर विवाद पैदा करना चाहती हैं । वाद विवाद होना अनिवार्य हैं वह भी स्वस्थ्य हो पर आज कल फिज़़ूल विवाद कर समय बर्बाद करना या आपसी रंजिशें इतनी अधिक बढ़ा लेती हैं की उसमे हंगामा खड़ा हो जाता हैं ।आजकल सोशल मीडिया ने विवाद पैदा करने में बहुत अहम भूमिका निभायी हैं और निभा रही हैं ।यह वहम रामायण और महाभारत काल में भी अपनाई गयी थी ।वर्तमान में वाद विवाद गला काट प्रतिस्पर्धा का अंग होता जा रहा हैं और पूरी बहस ऐसी हो रही हैं जैसे हम पानी में मथानी डालकर मख्खन निकालना चाहते हैं जो तीन काल में नहीं होनी वाली हैं ।
टी वी में वाद विवाद या बहस ऐसे लोग करते हैं जिनके पास कोई अधिकार नहीं होता और चैनल वाले ऐसा अपने आपको महसूस करते हैं जैसे उनके चैनल से कोई वाद विवाद का अर्थ निकलेगा।दूसरा मर्यादाविहीन चर्चा होती हैं या करते हैं या जानभूझकर आयोजित किये जाते हैं ।या दूसरे शब्दों में कहे तो ये सब नूरा कुश्ती होती हैं ।इस बहाने जनता आत्म मुग्ध होकर कुछ ज्ञानार्जन करती हैं ऐसी कोई बात तो निकाल कर नहीं आती मात्र समय की बर्बादी ।
वाद विवाद से हल निकलते हैं और सब पक्षों को आदर भी मिलना चाहिए ,एकांगी बहस नुकसानदायी होती हैं ।वाद विवाद में हमेशा भी शब्द का उपयोग करेंगे तो हल निकलने की संभावना होती हैं और यदि ही शब्द का उपयोग किया तो हल निकलना संभव नहीं।इसमें हमको सब पक्षों के भावों का आदर करना चाहिए ।यदि आपने आदर नहीं दिया तो मात्र कडुवाहट के अलावा कुछ नहीं होगा यही परम्परा संसद में भी होती हैं ।
आपस में बैठों और सुनों सबकी धीरज से
उतलाहट से कुछ नहीं होता
सुनने की क्षमता पहले बढ़ाना होंगी
फिर जबाब भी प्रिय हो
तभी बात आगे बढ़ती हैं
अन्यथा जहाँ से चली थी वहीँ खड़ी रही
विषय अनछुआ रहा और कटुता बढ़ गयी