गुमनामी के अंधेरे में दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त…!

सत्य नारायण पाठक
12 दिसंबर, 1990 से 11 दिसंबर, 1996 तक मुख्य चुनाव आयुक्त रहे तिरुनेलै नारायण अइयर शेषन ने अपने इस कार्यकाल में दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र की तस्वीर बदल कर रख दी। लेकिन आज वही 85 वर्षीय टीएन शेषन ओल्ड ऐज होम में रह रहे हैं। देश के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त पिछले कुछ समय से शेषन गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं, एक अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक वह चेन्नई में अपने ही घर से 50 किलोमीटर दूर ही ओल्ड ऐज होम में रुके थे, हालांकि, वह अभी अपने घर में रह रहे हैं, लेकिन बार-बार कुछ समय के लिए ओल्ड एज होम चले जाते हैं। शेषन पिछले काफी समय से शांति का जीवन गुजार रहे हैं, वह सत्य साईं बाबा के भक्त रहे हैं, 2011 में उनके देह त्याग के बाद शेषन सदमे में चले गए थे, रिपोर्ट के मुताबिक, शेषन को भूलने की बीमारी हो गई थी।
शेषन ने अपने कार्यकाल में स्वच्छ एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए नियमों का कड़ाई से पालन किया गया। आपको बता दें कि शेषन ने ही चुनावों में चरणों के आधार पर वोटिंग की शुरुआत की थी, उनका ये फैसला मील का पत्थर साबित हुआ था, शेषन ने चुनाव सुधार की शुरुआत 1995 में बिहार चुनाव से की थी, बिहार में उन दिनों बूथ कैप्चरिंग का मुद्दा काफी बड़ा था, शेषन ने बिहार में कई चरणों में चुनाव कराए थे, यहां तक कि चुनाव तैयारियों को लेकर वहां कई बार चुनाव की तारीखों में बदलाव भी किया था, उन्होंने बिहार में बूथ कैप्चरिंग रोकने के लिए सेंट्रल पुलिस फोर्स का इस्तेमाल किया था, इस फैसले की उस दौरान लालू यादव ने आलोचना की थी।
टी एन शेषन (पूरा नाम, तिरुनेलै नारायण अइयर शेषन), भारत के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त थे। इनका कार्यकाल 12 दिसम्बर 1990 से लेकर 11 दिसम्बर 1996 तक था। इनके कार्यकाल में स्वच्छ एवं निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न कराने के लिये नियमों का कड़ाई से पालन किया गया जिसके साथ तत्कालीन केन्द्रीय सरकार एवं ढीठ नेताओं के साथ कई विवाद हुए। भारतीय प्रशासनिक सेवा के रास्ते सरकारी सेवा में आए टीएन शेषन ने दिसम्बर 1990 को देश के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त का पद सम्भाला था और वह इस पद पर 1996 तक बने रहे थे। इस दौरान शेषन ने चुनाव प्रक्रिया में बहुत सुधार किए और ऐसे नियम लागू किए जिनसे स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न हो सकें। इस काम में उन्हें उस समय के राजनैतिक नेताओं और नौकरशाही द्वारा बहुत विरोध झेलना पड़ा लेकिन वह डिगे नहीं और निर्भीकतापूर्वक अपने निर्णयों को लागू कराने की कोशिश करते रहे। उनके इस जुझारू प्रयास से लोकतन्त्र मजबूत हुआ और मतदाता का चुनाव के प्रति विश्वास बड़ा। शेषन की इस लगन और जिम्मेदारी भरी राजकीय सेवा के लिए उन्हें 1996 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया।
टीएन शेषन का जन्म 15 मई 1933 को केरल के पालघाट जिले में, तिरुनेल्लई गांव में हुआ था । शेषन के पिता एक वकील थे। अपने छह भाई-बहनों में टीएन शेषन सबसे छोटे थे। उनका परिवार निम्न मध्यवर्ग जैसा था जिसमें सबका निर्वाह हो रहा था। शेषन की पढ़ाई पालघाट के बेसेल इवांजिकल मिशन स्कूल में शुरू हुई। यह स्कूल एक स्विस मिशनरी द्वारा चलाया जा रहा था । 40 के दशक में यहाँ से शेषन ने हाई स्कूल की परीक्षा पास की । अपनी प?ाई के दौरान शेषन एक ‘किताबी कीड़ाÓ किस्म के छात्र रहे। वह शतरंज खेलते थे लेकिन दौड़ भाग के खेलों में उनकी रुचि नहीं थी। इसी स्कूल से उन्होंने इण्टरमीडियट परीक्षा भी पास की । उनकी रुचि विज्ञान तथा इंजीनियरिंग विषयों में थी। इसीलिए उन्होंने साइंस ली थी और फिजिक्स (भौतिक शास्त्र) पढ़ा था। इण्टर के बाद बी.एस.सी ऑनर्स उन्होंने चेन्नई के क्रिश्चियन कॉलेज से किया । वह वहाँ ‘सेलायुर हॉलÓ नाम के हॉस्टल में रहते थे। यहीं से इन्होंने चार साल का पाठ्यक्रम तीन साल में पूरा करके मास्टर्स की डिग्री ली।
इस बीच वह दिन-रात बस हॉस्टल में ही रहे। 1950 के दशक में शेषन ने कुछ समय बतौर वैज्ञानिक काम किया । करीब तीन साल अपने कॉलेज में पढ़ाया भी लेकिन फिर कम वेतन की वजह से वह काम छोड़ दिया । 1954 में टी.एन. शेषन ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की प्रतियोगी परीक्षा दी और सफल हुए, इस तरह 1955 से उनकी राजकीय सेवा की शुरुआत हुई। मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के पहले, शुरुआत से ही शेषन की छवि एक ईमानदार, तेज-तर्रार अधिकारी की रही । शुरुआती पोस्टिंग में ही, जब वह डिंडी गुल मदुराई में सब कलेक्टर थे तब उनकी कट्टरता का प्रमाण सामने आया। एक हरिजन व्यक्ति के ऊपर गबन का आरोप लगा हुआ था। उस व्यक्ति का विवाह स्थानीय कांग्रेस पार्टी की प्रेसिडेंट से हुआ था। इस नाते शेषन पर एक मंत्री का दबाव बन रहा था कि उस गिरफ्तार किए गए आरोपी को छोड़ दिया जाए। यहां शेषन ने गहरी सूझबूझ से काम लिया। चतुराईपूर्वक अपनी नौकरी भी बचाई और अपने निर्णय से कोई समझौता भी नहीं किया। इसी तरह 1958 में वह ग्राम विकास के सेक्रेटरी के रूप में चेन्नई आए थे और पंचायत का काम सम्भाल रहे थे। इस व्यवस्था पर स्थानीय राजनैतिक नेताओं का अनुचित हस्तक्षेप बहुत रहता था। शेषन ने वहीं सबका विरोध सहते हुए ऐसे नए कानून बनाए, जिससे प्रशासन का सशक्तीकरण हुआ।
इस तरह कई विभागों में तबादला होते हुए वे
1969 में विदेश से लौटकर शेषन को भारत सरकार की उच्चत्तर सेवाओं अनुभव मिलना शुरू हुआ आते ही वह एटामिक एनर्जी विभाग के सचिव बनाए गए। यह विभाग सीधे प्रधानमन्त्री के अधीन था। वह इस पद पर 1976 तक रहे और वह स्वयं मानते हैं कि यहीं पर उन्होंने सीखा कि टकराव के माध्यम से भी बेहतर परिणाम पाए जा सकते हैं। उसके बाद मुख्य चुनाव आयुक्त बनने तक का समय शेषन के लिए बहुत अनुभव तथा संघर्ष देने वाला रहा। नागरिक प्रशासन में राजनैतिक नेताओं का जबरदस्त हस्तक्षेप सबसे बड़ी कठिनाई थी। शेषन ने इस सम्बन्ध में बार-बार यह कहा कि राजनैतिक नेता राज्यों को लूट रहे हैं जहाँ-जहाँ स्पष्ट नियम नहीं थे वहाँ शेषन ने नियम बनवा कर इस हस्तक्षेप पर लगाम लगाई। 1980 से 1985 के बीच वह अन्तरिक्ष मंत्रालय में एडिशनल सेक्रेटरी रहे और विज्ञान तथा इजीनियरिंग की रुचि तथा ज्ञान के बल पर अनुसंधान में भी भागीदारी की। उसी दौरान शेषन राजीव गाँधी (प्रधानमन्त्री) के आमन्त्रण पर वन तथा पर्यावरण मंत्रालय में लाए गए।