वह करें तो लीला हम करें तो पाप?

निर्मल रानी

मुस्लिम समाज के प्रति हमदर्दी दिखाने का ही एक जीता-जागता उदाहरण पिछले दिनों संसद में उस समय देखने को मिला जब लोकसभा में तीन तलाक संबंधी विधेयक पारित कर दिया गया। नि:संदेह मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग में प्रचलित तीन बार तलाक बोलकर तलाक दे देने की यह प्रथा अत्यंत अमानवीय तथा भौंडी प्रथा है। हालांकि तलाक की इस प्रथा को दुनिया के अनेक मुस्लिम देशों में भी स्वीकार नहीं किया जाता। भारत में भी मुसलमानों का एक सीमित वर्ग ही इस व्यवस्था को मानता तो ज़रूर है परंतु तीन तलाक देने के उचित तरीकों पर अमल करने के बजाए इसका इस्तेमाल भौंडे, अनुचित तथा गलत तरीकों से करता है। जिससे तीन तलाक देने का यह तरीक़ा आलोचना का शिकार भी रहा है और हास्यास्पद भी बन चुका है।

देश के हिंदूवादी संगठनों द्वारा खासतौर पर वर्तमान सत्तारूढ़ भाजपा जनता पार्टी एवं उसके संरक्षकों द्वारा महात्मा गांधी से लेकर पूरी कांग्रेस पार्टी तथा नेहरू-गांधी परिवार पर निशाना साधने के लिए सबसे बड़ा आरोप यही लगाया जाता रहा है कि यह भारतवर्ष में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाला वर्ग है। यही कहकर गत् 70 वर्षों में इन्होंने देश के बहुसंख्य हिंदू समाज को धर्म के आधार पर अपने पक्ष में लामबंद करने की कोशिश की है।
इसमें इन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली है। परंतु सत्ता में आने के बाद मुस्लिम तुष्टिकरण का ढोल पीटने वाली यही भाजपा भले ही कांग्रेस पार्टी को मुस्लिम तुष्टिकरण का दोषी ठहराती रही हो परंतु लगता है कि अब इस तथाकथित हिंदुत्ववादी विचारधारा रखने वाले संगठन को भी हिंदू हितों की रक्षा करने के बजाए मुस्लिम हितों की कुछ ज़्यादा ही चिंता सताने लगी है। अगस्त 2015 में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने ‘सशक्तीकरण समागमÓ के नाम से दिल्ली में बुलाए गए मुस्लिम समाज के एक सम्मेलन में यह घोषणा की थी कि आगामी 6 से 7 वर्षों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले देश के सभी मुस्लिम परिवारों को बीपीएल श्रेणी से ऊपर उठा दिया जाएगा। इस सम्मेलन में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी शिरकत की थी। भाजपा सरकार ने मुस्लिम समाज के लिए शिक्षण संस्थान खोलने तथा उनके आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक विकास के लिए और भी कई योजनाएं शुरु करने की घोषणा की थी। मुस्लिम समाज के प्रति हमदर्दी दिखाने का ही एक जीता-जागता उदाहरण पिछले दिनों संसद में उस समय देखने को मिला जब लोकसभा में तीन तलाक संबंधी विधेयक पारित कर दिया गया। नि:संदेह मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग में प्रचलित तीन बार तलाक बोलकर तलाक दे देने की यह प्रथा अत्यंत अमानवीय तथा भौंडी प्रथा है। हालांकि तलाक की इस प्रथा को दुनिया के अनेक मुस्लिम देशों में भी स्वीकार नहीं किया जाता। भारत में भी मुसलमानों का एक सीमित वर्ग ही इस व्यवस्था को मानता तो ज़रूर है परंतु तीन तलाक देने के उचित तरीकों पर अमल करने के बजाए इसका इस्तेमाल भौंडे, अनुचित तथा गलत तरीकों से करता है।
जिससे तीन तलाक देने का यह तरीक़ा आलोचना का शिकार भी रहा है और हास्यास्पद भी बन चुका है। भारत में मुस्लिम समाज के विद्वानों और बुद्धिजीवियों में भी तीन बार तलाक-तलाक-तलाक कहकर तलाक दिए जाने के मुस्लिम मर्दों के एकाधिकार को लेकर दशकों से चिंतन होता आ रहा है। अधिकांश मुस्लिम समाज के उलेमा व बुद्धिजीवी भी इस व्यवस्था को पसंद नहीं करते और वे भी समय-समय पर इस विषय पर चिंतन करते रहे हैं तथा मुस्लिम समाज के लोगों को इस प्रथा से दूर रहने की हिदायत देते रहे हैं। परंतु लगता है कि दूसरों पर मुस्लिम तुष्टिकरण का इल्ज़ाम लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी को बहुसंख्य हिंदू समाज की महिलाओं की दुर्दशा से अधिक चिंता उन मु_ीभर मुस्लिम महिलाओं की हो गई जिन्हें मुसलमानों का एक वर्ग तलाक-तलाक-तलाक कहकर छोड़ दिया करता है।
इन दिनों लोकसभा से लेकर मीडिया तक तथा सार्वजनिक मंचों पर तीन तलाक से संबंधित चर्चा होती देखी जा रही है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस समय देश का सबसे ज्वलंत मुद्दा केवल यही रह गया है। और मोदी सरकार के इन प्रयासों से ऐसा भी मालूम हो रहा है गोया भारतवर्ष में केवल तीन तलाक की शिकार तलाकशुदा महिलाएं ही सबसे अधिक ज़ुल्म, अत्याचार व बेबसी का शिकार हैं। शेष भारतीय समाज की महिलाएं पूरी तरह से प्रसन्नचित्त व सुखी हैं। हालांकि तीन तलाक विषय को लेकर कानून व शरिया संबंधी तरह-तरह की बातें की जा रही हैं।