सारे तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार

मकर संक्रान्ति पर विशेष

रमेश सर्राफ
गंगा सागर भारत के तीर्थों में एक महातीर्थ हैं। गंगाजी इसी स्थान पर आकर सागर में मिलती है। इसी स्थान पर राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ था। यहां मकर संक्रान्ति पर बहुत बड़ा मेला लगता है जहां लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए आते हैं। कहते हैं यहीं संक्रान्ति पर स्नान करने पर सौ अश्वमेघ यज्ञ और एक हजार गाऐं दान करने का फल मिलता है।
भारत की नदियों में सबसे पवित्र गंगा नदी है जो गंगोत्री से निकलकर पश्चिम बंगाल में आकर सागर सक मिलती है। गंगा का जहां सागर से मिलन होता है उस स्थान को गंगासागर कहते है। इसे सागरद्वीप भी कहा जाता है। यह स्थान देश में आयोजित होने वाले तमाम बड़े मेलों में से एक गंगासागर मेला के लिए सदियों से विश्व विख्यात है। हिन्दू धर्मग्रन्थों में इसकी चर्चा मोक्षधाम के तौर पर की गई है, जहां मकर संक्रान्ति के मौके पर दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु मोक्ष की कामना लेकर आते हैं और सागर-संगम में पुण्य की डुबकी लगाते है। 2018 के मकर संक्रान्ति स्नान के अवसर पर यहां 20 लाख लोगों के आने की उम्मीद है।
पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना जिले में स्थित इस तीर्थस्थल पर कपिल मुनि का मंदिर है, जिन्होंने भगवान राम के पूर्वज और इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार किया था। मान्यता है कि यहां मकर संक्रान्ति पर पुण्य-स्नान करने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। मान्यता है कि गंगासागर की तीर्थयात्रा सैकड़ों तीर्थयात्राओं के समान है। हर किसी को यहां आना नसीब नहीं होता है। इसकी पुष्टि एक प्रसिद्ध लोकोक्ति से होती है, जिसमें कहा गया है, सब तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार। हालांकि यह उस जमाने की बात है जब यहां पहुंचना बहुत कठिन था। आधुनिक परिवहन और संचार साधनों से अब यहां आना सुगम हो गया है।
गंगासागर में मकर संक्रान्ति यानी 14 जनवरी से एक हफ्ता पहले ही मेला शुरू हो जाता है, जिसमें दुनिया के विभिन्न भागों से तीर्थयात्री, साधु-संत आते हैं और संगम में स्नान कर सूर्यदेव को अर्ध्य देते हैं। मेले की विशालता के कारण लोग इसे मिनी कुंभ मेला भी कहते हैं। मकर संक्रान्ति के दिन यहा सूर्यपूजा के साथ विशेष तौर कपिल मुनि की पूजा की जाती है। लोग तिल, चावल और तेल का दान देते हैं। अनेक श्रद्धालु सागर देवता को नारियल अर्पित करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि ऋषि-मुनियों के लिए गृहस्थ आश्रम या पारिवारिक जीवन वर्जित होता है। पर विष्णु जी के कहने पर कपिलमुनी के पिता कर्दम ऋषि ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया। पर उन्होने विष्णु भगवान से शर्त रखी कि ऐसे में भगवान विष्णु को उनके पुत्र रूप में जन्म लेंना होगा। भगवान विष्णु ने शर्त मान लिया और कपिलमुनी का जन्म हुआ। फलत: उन्हें विष्णु का अवतार माना गया। आगे चल कर गंगा और सागर के मिलन स्थल पर कपिल मुनि आश्रम बना कर तप करने लगे। इस दौरान राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ आयोजित किया। इसके बाद यज्ञ के अश्वों को स्वतंत्र छोड़ा गया। ऐसी परिपाटी है कि ये जहां से गुजरते हैं वे राज्य अधीनता स्वीकार करते है। अश्व को रोकने वाले राजा को युद्ध करना पड़ता है। राजा सगर ने यज्ञ अश्वों के रक्षा के लिए उनके साथ अपने 60,000 हजार पुत्रों को भेजा।
अचानक यज्ञ अश्व गायब हो गया। खोजने पर यज्ञ अश्व कपिल मुनि के आश्रम में मिले। फलत: सगर पुत्र साधनरत ऋषि से नाराज हो उन्हे अपशब्द कहने लगे। ऋषि ने नाराज हो कर उन्हे शापित किया और उन सभी को अपने नेत्रों के तेज से भस्म कर दिया। मुनि के श्राप के कारण उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकी। काफी वर्षों के बाद राजा सगर के पौत्र राजा भागीरथ कपिल मुनि से माफी मांगने पहुंचे। कपिल मुनि राजा भागीरथ के व्यवहार से प्रसन्न हुए। उन्होने कहा कि गंगा जल से ही राजा सगर के 60,000 मृत पुत्रों का मोक्ष संभव है। राजा भागीरथ ने अपने अथक प्रयास और तप से गंगा को धरती पर उतारा। अपने पुरखों के भस्म स्थान पर गंगा को मकर संक्रान्ति के दिन लाकर उनकी आत्मा को मुक्ति और शांति दिलाई। यही स्थान गंगासागर कहलाया। इसलिए यहां स्नान का इतना महत्व है।