अनिल बिहारी श्रीवास्तव
एक बार में ही तीन तलाक कह कर पत्नी से पिण्ड छुड़ाने की प्रवृति पर लगाम लगाने पर सरकार कटिबद्ध है। ऐसे पति के लिए तीन साल की सजा के प्रावधान को वह सही ठहरा रही है। दूसरी ओर कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दल इसे अनुचित मानते हुए विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजे जाने की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। तीन तलाक विधेयक पर समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और राजग के एक घटक तेलुगू देशम पार्टी की आपत्तियों का समझा जा सकता हे। इन राजनीतिक दलों को मुस्लिम महिलाओं से अधिक अपने वोट बैंक की चिन्ता है। आश्चर्य तो कांग्रेस का रुख पर हो रहा है।
इस महत्वपूर्ण विधेयक के भविष्य को लेकर अभी कुछ कहना असंभव सा है। इस बारे में संसद के बजट सत्र में ही कुछ हो पाने की आशा कर सकते हैं। राज्यसभा में विधेयक के अटकने या उसे अटकाये जाने से कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का अपना पक्ष है। दूसरी ओर सरकार इस बात को लेकर हैरान है कि लोकसभा में विधेयक के पक्ष में मत दे चुकी कांग्रेस ने राज्यसभा में प्रतिष्ठा का प्रश्र क्यों बना लिया।
आखिर, मुस्लिम महिला(विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक को लेकर कांग्रेस ने अपना असली रंग दिखा दिया। लोकसभा में उसने विधेयक को समर्थन दिया था लेकिन राज्यसभा में कांग्रेस विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजे जाने पर अड़ गई। नतीजा यह रहा कि एक बार में तीन तलाक यानी तलाक ए विद्दत को अपराध घोषित करने के प्रावधान वाला यह विधेयक लटक गया। इस महत्वपूर्ण विधेयक के भविष्य को लेकर अभी कुछ कहना असंभव सा है। इस बारे में संसद के बजट सत्र में ही कुछ हो पाने की आशा कर सकते हैं। राज्यसभा में विधेयक के अटकने या उसे अटकाये जाने से कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का अपना पक्ष है। दूसरी ओर सरकार इस बात को लेकर हैरान है कि लोकसभा में विधेयक के पक्ष में मत दे चुकी कांग्रेस ने राज्यसभा में प्रतिष्ठा का प्रश्र क्यों बना लिया। राज्यसभा में विधेयक की राह में रोड़ा अटकाये जाने पर सरकार और भाजपा ने अप्रसन्नता तो व्यक्त की लेकिन वे परेशान नहीं दिख रहीं। इससे उलट उन्हें असहयोग करने वालों के विरूद्ध प्रचार का एक मुद्दा सा मिल गया। सरकार और भाजपा दोनों ही विपक्ष की मान-मनौवल के मूड में नजर नहीं आ रहे। हां, विधेयक के समर्थन में खड़ा मुस्लिम महिलाओं का एक बहुत बड़ा हिस्सा कांग्रेस से अवश्य नाराज हो सकता है।
विधेयक के प्रावधानों किसी प्रकार का बदलाव नहीं करने को लेकर सरकार ने जो दृढ़ता दिखाई, उससे कांग्रेस को निराश हुई होगी। सच यह है कि इस समय सरकार के समक्ष राजनीतिक रूप से खोने को कुछ नहीं है। विधेयक पारित होने की स्थिति में उसे एक बड़ा सुधारवादी कदम उठाने के लिए श्रेय ही मिलेगा। लेकिन, फिलहाल गतिरोध टूटता नजर नहीं आ रहा। एक बार में ही तीन तलाक कह कर पत्नी से पिण्ड छुड़ाने की प्रवृति पर लगाम लगाने पर सरकार कटिबद्ध है। ऐसे पति के लिए तीन साल की सजा के प्रावधान को वह सही ठहरा रही है। दूसरी ओर कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दल इसे अनुचित मानते हुए विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजे जाने की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। तीन तलाक विधेयक पर समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और राजग के एक घटक तेलुगू देशम पार्टी की आपत्तियों का समझा जा सकता हे। इन राजनीतिक दलों को मुस्लिम महिलाओं से अधिक अपने वोट बैंक की चिन्ता है। आश्चर्य तो कांग्रेस का रुख पर हो रहा है। कांग्रेस से यह शिकायत उचित है कि यदि उसे विधेयक के किन्हीं प्रावधानों को लेकर इतनी आपत्तियां थीं तो उसने लोकसभा में विधेयक को समर्थन क्यों दिया? दो-तीन दिन में ही कांग्रेस ने कट्टरपंथियों के समक्ष घुटने टेक दिए। एक दूसरा कारण कांग्रेस पर तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और वामपंथियों का दबाव बढ़ जाना भी माना जा रहा है। उपर्युक्त दो बातों के अलावा एक तीसरा कारण स्थूल बुद्धि हो सकता है।