विजय कुमार दास
भोपाल, 14 जनवरी। भारतीय राजनीति में जब भी राज्यों में कानून और व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े किए जाते हैं तो इसका सीधा असर पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर पड़ता है। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ ऐसे राज्य हैं, जहां अपराधों की व्याख्या अलग-अलग है। उत्तर प्रदेश में संगठित अपराध जो कहीं पर रेत माफिया, तो कहीं पर भू-माफिया या फिर चिकित्सा माफिया के रूप में या फिर आए दिन बलात्कारों की खबर से सरकार को कटघरे में खड़ा करती है। छत्तीसगढ़ में नक्सलवादी गतिविधियों के अलावा भ्रष्टाचार को लेकर कई बार पुलिस को असमंजस की स्थिति से गुजरना पड़ता है। छत्तीसगढ़ जैसे नए राज्य में यदि चिटफंडियों का कारोबार फला-फूला है और अपराधी बच निकले हैं तो उसके पीछे पुलिस के हाथों में कानून का इस्तेमाल कमजोर सबसे बड़ा कारण बताया जाता है। रहा सवाल मध्यप्रदेश का तो महिला अपराधों के मामले में राष्ट्रीय स्तर का अपराध सर्वे (एनसीआरबी) इस राज्य को नंबर वन स्थान पर लाकर खड़ा करता है। कुल मिलाकर इन तीनों राज्यों में पुलिस उतनी स्वतंत्र नहीं है जितनी उन राज्यों में है, जहां पुलिस आयुक्त प्रणाली पूरी ताकत से काम कर रही है। मध्यप्रदेश में 4-5 साल पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पुलिस आयुक्त प्रणाली को जोर-शोर से लागू करने की घोषणा तक कर डाली थी, और तो और पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने का मसौदा भी तैयार कर लिया गया था। परंतु स्व. महेश नीलकंठ बुच और मुख्यमंत्री के तत्कालीन प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव ने पूरी ताकत लगा दी और मुख्यमंत्री को इस बात के लिए सहमत कर लिया कि मध्यप्रदेश में पुलिस आयुक्त प्रणाली की आवश्यकता नहीं है। यह लिखने में अतिशयोक्ति नहीं है कि शिवराज सरकार ने भोपाल और इंदौर में प्रायोगिक तौर पर पुलिस आयुक्त प्रणाली लगाने का फैसला भी कर लिया था। हो सकता है यदि यह फैसला हो जाता तो आज कानून और व्यवस्था को लेकर जितने सवाल विपक्ष द्वारा उठाए जाते हैं, उतने संभव ही नहीं थे। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने की नौबत जैसी आई, वे इस बात से सहमत हो गए कि मध्यप्रदेश में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने का कोई फायदा नहीं है। उधर उत्तरप्रदेश में योगी सरकार के आते ही पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने की योजना पर काम तेजी से चालू हो गया है। वह दिन दूर नहीं कि राजस्थान की तर्ज पर उत्तर प्रदेश पहला राज्य होगा, जहां पुलिस आयुक्त प्रणाली को हर कीमत पर लागू किया जाएगा, क्योंकि भाजपा की योगी सरकार बनने के बाद से लेकर अभी तक जितने भी सवाल सरकार के खिलाफ आए, सबके सब किसी न किसी रूप में उत्तरप्रदेश में बढ़ रहे अपराधों से जुड़े हुए हैं। मध्यप्रदेश की सरकार पुलिस आयुक्त प्रणाली को गंभीरता से नहीं ले रही है, जिसका नुकसान आने वाले 2018 के विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है। रहा सवाल छत्तीसगढ़ का तो इस राज्य में विकास की नई-नई परिभाषाएं डॉ. रमन सिंह ने जरूर गढ़ी हैं, लेकिन अपराधों के नियत्रंण में डॉ. रमन सिंह भी उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की तरह पिछड़ गए हैं। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से बातचीत करने के बाद राष्ट्रीय हिन्दी मेल इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि उपरोक्त तीनों राज्यों में यदि यहां की भाजपा सरकारें तय कर लें कि कानून और व्यवस्था को बेहतर से बेहतर बनाने के लिए पुलिस आयुक्त प्रणाली जरूरी है तो फिर एक ऐतिहासिक निर्णय पर तीनों राज्य पहुंच सकते हैं। सूत्रों के अनुसार छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक ए एन उपाध्याय (1985) मध्यप्रदेश के पुलिस महानिदेशक ऋषि कुमार शुक्ला तथा उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक सुखलाख सिंह (1980) एक साथ बैठकर तीनों राज्यों में क्या पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू की जा सकती है, इस दिशा में विचार-विमर्श कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जब राजस्थान में पुलिस आयुक्त प्रणाली को लागू किया था, तब भी वहां राज्य सरकार असमंजस में थी और पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने के नफा-नुकसान को लेकर कई दौर विचार-विमर्श चले और अंतत: राजस्थान में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू कर दिया गया। परिणाम स्वरूप राजस्थान में कानून और व्यवस्था की स्थिति उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों की तुलना में आज भी बेहतर है और भारतीय पुलिस सेवा से आए जितने भी पुलिस अधिकारी हैं, दम-खम से काम करते हैं। यही कारण है कि वहां की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कानून और व्यवस्था को लेकर हमेशा तनाव मुक्त रहती हैं। सवाल यह उठता है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने की घोषणा को लेकर पीछे क्यों हटे और उन्हें किस बात का डर है। सवाल यह भी उठता है कि छत्तीसगढ़ राज्य में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने के बारे में बहस करने का विचार भी नहीं करते। तो क्या आने वाला समय जब उत्तरप्रदेश में पुलिस आयुक्त प्रणाली का आगाज होगा, तब मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने की चर्चा की शुरूआत करेंगे या फिर अपने-अपने राज्य में कानून और व्यवस्था की बिगड़ती हुई स्थिति को नियंत्रित करने की दिशा में 1861 की पुलिस व्यवस्था पर ही कायम रहेंगे…?