रायसेन, 16 जनवरी। आदि गुरू शंकराचार्य के आध्यात्मिक,सांस्कृतिक तथा भारत की एकता अखण्डता में किए गए योगदान को जन-जन तक पहुंचाने तथा ओंकारेश्वर में आदि गुरू शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापना हेतु धातु संग्रहण के लिए आयोजित की जा रही एकात्म यात्रा मण्डीदीप से औबेदुल्लागंज पहुंची। एकात्म यात्रा के स्वागत अभिनंदन हेतु जगह-जगह स्वागत द्वार, रंगोलियां बनाई गई हैं।
एकात्म यात्रा के मार्ग में पडऩे वाले गांवों के लोगों द्वारा दोनों ओर खड़े होकर ढोल-नगाड़ों के साथ पुष्प वर्षा कर यात्रा का स्वागत किया जा रहा है। साथ ही मूर्ति स्थापना के लिए एकत्रित की गई अष्ट धातु तथा मिट्टी भी भेंट की जा रही है। औबेदुल्लागंज में आयोजित जनसंवाद कार्यक्रम में पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री सुरेन्द्र पटवा ने जनसामान्य से इस यात्रा में शामिल होने की अपील करते हुए कहा कि आदि गुरू शंकराचार्य ने सांस्कृतिक रूप से पूरे देश जोडऩे का काम किया था। यह एकात्म यात्रा प्रदेश में समाज को जोडने का काम कर रही है।
प्रदेश के विभिन्न स्थानों से जा रही यह यात्रा ओंकारेश्वर पहुंचेगी जहां गांव-गांव से एकत्रित की गई धातु से बनी हुई 108 फीट आदि गुरु शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। इस विशाल प्रतिमा के निर्माण में प्रदेश के सभी लोगो का धातु के रुप में योगदान रहेगा और वे भावनात्मक रुप से जुडे रहेंगे। इस अवसर पर एकात्म यात्रा के प्रभारी शिव चौबे ने कहा कि आदि गुरू शंकराचार्य ने भले ही दक्षिण भारत में जन्म लिया हो लेकिन उन्हें ज्ञान मॉ नर्मदा के किनारे ही प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि प्रदेश के भौतिक विकास का आधार मॉ नर्मदा ही हैं। हम सब मॉ नर्मदा के ऋणी है। नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान ओंकारेश्वर में सांस्कृतिक पुनरूत्थान कार्यक्रम में आदि शंकराचार्य जी का पावन स्मरण कर मुख्यमंत्री द्वारा ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा की गई थी। आदि गुरू ने यहां ज्ञान प्राप्त किया और सम्पूर्ण देश का भ्रमण कर महज 32 वर्ष की आयु में चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। आज हम सभी लोग अपना ये कर्तव्य समझते हैं कि हम अपने माता-पिता को चारों धाम के दर्शन करा दें तो पितृ ऋण से मुक्त हो जाएंगे।