मूंड मुंडाए हरि मिलें तो जग ले मूंड मुंडाय…

डॉ हिदायत अहमद खान

अपनी बातों को मनवाने और नेताओं, मंत्रियों व आला अधिकारियों का ध्यान खींचने के लिए तरह-तरह के तरीके आजमाए जाते रहे हैं। फिर भी अध्यापकों ने जो किया वह जरुर मध्य प्रदेश के इतिहास में संभवत: पहली बार हुआ है। दरअसल खबर यह है कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में ‘अध्यापक अधिकार यात्राÓ के तहत विरोध प्रदर्शन कर रहे शिक्षकों ने अपने सिर मुंडवाकर भाजपा सरकार का पिंडदान कर दिया। सिर मुंडवाने वाले शिक्षकों में महिलाओं की संख्या भी अच्छी-खासी बताई गई है और खास बात यह है कि जिस समय महिला शिक्षकों के सिर मुंडवाए जा रहे थे तब उनकी आंखों से आंसू निकल रहे थे और सामूहिक मुंडन के दौरान तो कुछ एक लोग बेहोश तक हो गए।

वैसे तो यह पहली मर्तबा नहीं हो रहा है कि सरकार की नीतियों व फैसलों से नाखुश और अपनी मांगों के समर्थन में कर्मचारी-अधिकारी धरना-प्रदर्शन कर रहे हों। बल्कि हमेशा से ही यह होता आया है। अपनी बातों को मनवाने और नेताओं, मंत्रियों व आला अधिकारियों का ध्यान खींचने के लिए तरह-तरह के तरीके आजमाए जाते रहे हैं।
फिर भी अध्यापकों ने जो किया वह जरुर मध्य प्रदेश के इतिहास में संभवत: पहली बार हुआ है। दरअसल खबर यह है कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में ‘अध्यापक अधिकार यात्राÓ के तहत विरोध प्रदर्शन कर रहे शिक्षकों ने अपने सिर मुंडवाकर भाजपा सरकार का पिंडदान कर दिया। सिर मुंडवाने वाले शिक्षकों में महिलाओं की संख्या भी अच्छी-खासी बताई गई है और खास बात यह है कि जिस समय महिला शिक्षकों के सिर मुंडवाए जा रहे थे तब उनकी आंखों से आंसू निकल रहे थे और सामूहिक मुंडन के दौरान तो कुछ एक लोग बेहोश तक हो गए। जहां तक इन शिक्षकों की मांग का सवाल है तो शिक्षा विभाग में संविलियन करने से लेकर सातवां वेतनमान देने, बंधन मुक्त तबादला नीति लागू करने, अनुकंपा नियुक्ति और चाइल्ड केयर लीव जैसी सामान्य मांगें ही हैं। इनमें ऐसी कोई विशेष मांग नहीं है जिसे समय रहते पूरा नहीं किया जा सके, लेकिन तीन बार की शिवराज सरकार ने इन पर विशेष ध्यान नहीं दिया, जिससे अध्यापकों की समस्या बढ़ती चली गई और उसी के साथ उनका गुस्सा भी सातवें आसमान पर पहुंच गया। यही वजह है कि इस मरतबा वो आर-पार के मूड के साथ मैदान में उतरे और महिलाओं का मुंडन कराकर सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लिया।
यह नजारा देख कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के शासनकाल की याद ताजा हो आई, जिसमें अधिकारी-कर्मचारियों ने अनदेखी के चलते तत्कालीन कांग्रेस सरकार को सत्ता से बेदखल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अध्यापकों के मामले में शिवराज सरकार क्या करती है और प्रशासनिक स्तर पर क्या फैसले लिए जाते हैं अब यह दूसरी बात हो गई है, जबकि यह तय हो गया है कि प्रदेश का आमजन इस सरकार की नीतियों और कार्यों से आजिज आ चुका है, क्योंकि जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आमजन ने शिवराज का तन-मन-धन से साथ दिया वैसे परिणाम देखने को नहीं मिले। इसका जीता जागता उदाहरण किसान आन्दोलन से लेकर अधिकारी-कर्मचारी और अब अध्यापकों का सिर मुंडाने वाला आन्दोलन सभी के सामने है। इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में शिवराज सरकार का आंदोलनकारियों के प्रति उदासीन रुख भारी भी पड़ सकता है। जहां तक समयानुसार प्रदर्शन का तरीका बदलकर शिक्षकों द्वारा सिर मुंडवाकर विरोध प्रर्दशन करने का सवाल है तो आपको बतला दें कि इससे पहले 2017 में ही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के खिलाफ बुंदेलखंड किसान पंचायत के नेतृत्व में एकत्रित हुए किसानों ने भी सिर मुंडवाकर और ब्राह्मणों को भोजन कराकर सरकार को चेताने का काम किया था। इसके साथ ही योगी सरकार की किसान हितेषी बनने की पोल इन किसानों ने खोलकर रख दी थी। इसी प्रकार गत वर्ष ही सहारनपुर समेत कई जिलों में दलितों पर हुए अत्याचारों और हमलों के विरोध में करीब पचास लोगों ने सिर मुंडवाकर योगी सरकार को श्रद्धांजलि दे दी थी।
तब योगी सरकार पर आरोप लगा था कि सहारनपुर में दलितों व भीम आर्मी का उत्पीडऩ हो रहा है। इसलिए तब यह चेतावनी दी गई थी कि दलित उत्पीडऩ बंद नहीं हुआ तो दलित देशव्यापी आंदोलन करेंगे। अब बात बनारस की करते हैं जहां बीएचयू में पढऩे वाली छात्राओं ने खुद को असुरक्षित बताया था और कहा था कि सरकार भले ही बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ जैसे नारे लगाती नहीं थकती, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही संसदीय क्षेत्र वाराणसी में पढऩे वाली छात्राएं अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं। इसके बाद याद होगा कि प्रधानमंत्री मोदी के वाराणसी पहुंचने से पहले ही बीएचयू की छात्राओं ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए बाल भी मुंडवा लिए थे। कुल मिलाकर विरोधस्वरुप मुंडन कराने का ट्रेंड ही चल पड़ा है, जिसके तहत मध्य प्रदेश में शिक्षकों ने भी सामूहिक मुंडन कराकर सभी का ध्यान अपनी ओर खींचने का साहस दिखाया है।
सवाल यह है कि आखिर विरोध स्वरुप मुंडन ही क्यों, तो बताते चलें कि केंद्र में जहां मोदी सरकार है तो वहीं अधिकांश प्रदेशों में भाजपा की ही सरकारें हैं और चूंकि भाजपा खुद को स्वदेशी पोषक और भारतीय संस्कृति की संवाहक बताते नहीं थकती अत: उसे मालूम होना चाहिए कि मुंडन करवाने का अर्थ क्या होता है और उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। खासतौर पर तब जबकि विरोध राजनीतिक न होकर वाकई अपनी परेशानियों को उजागर करने वाला हो। जहां तक मुंडन कराकर सरकार का ध्यान खींचने और अपनी समस्याओं का हल तलाशने की बात है तो संत कबीर पहले ही कह गए हैं कि ‘मुंड मुराये हरि मिले, सब कोई लेहि मुराये। बार बार के मुंडने, भेड़ ना बैकुंठ जाये।।’ अर्थात् यदि सिर मुड़ाने से ईश्वर मिलते तो सभी लोग अपना सिर मुड़ा लेते। अनेक बार बाल मुड़ाने से भी भेड को स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती है। इसलिए अध्यापकों के मुंडन कराने से यदि उन्हें अधिकार मिल जाते हैं तो अन्य संगठन और दल भी मुंडन कराने के लिए तैयार दिखेंगे।