राजनीतिक दांव-पेंच में उलझा तीन तलाक

मुस्लिम समुदाय में वर्षो से प्रचलित तीन तलाक नियम को लेकर मुस्लिम महिलाओं में भारी असंतोष व्याप्त रहा जिसका खुलकर विरोध गत वर्ष अभी हाल ही में हुये विधान सभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में देखने को मिला जहां तीन तलाक हटाने की प्रक्रिया में जोरदार भूमिका निभाने वाले राजनीतिक दल भाजपा को चुनाव में पूर्णरूप से राजनीतिक लाभ मिला । देश में पहली बार बहुतायत मुस्लिम मतदाताओं का मत भाजपा को मिला जिसपर पूर्व में कांग्रेस फिर सपा व बसपा का एकाधिकार बना हुआ था । इस तरह के बदलते हालात के पीछे निश्चित तौर पर तीन तलाक हटाने के लिये भाजपा द्वारा किये जा रहे प्रयासें का ही प्रतिफल रहा है। जिस तरह पूर्व में कांग्रेस के राजनीतिक खाते से राजस्थान में जाट मतदाताओं का बहुतायत रूझान भाजपा के राजनीतिक खाते में चला गया था जब पूर्व प्रधान मंत्री अटल विहारी वाजपेयी ने लोकसभा चुनाव के दौरान केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने पर जाटों को आरक्षण देने की बात कही थी। इसका राजनीतिक लाभ उस समय के लोकसभा चुनाव में भापजा को मिला जिससे राजस्थान से बहुमत हासिल करने में भाजपा को पूर्णरूपेण मदद मिली। इस परिप्रेक्ष्य से सभी भलिभांति परिचित है। इस तरह के राजनीतिक दांव – पेंच का खेल सभी राजनीतिक दल खेलते रहे है। कांग्रेस को यह अच्छी तरह मालूम है कि यदि तीन तलाक विधेयक का मसला लोकसभा एवं राज्यसभा में परित होकर कानून का रूप ले लेता है तो इसका सारा श्रेय भाजपा को जायेगा जिसने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के दौरान तीन तलाक को कानून के दायरे में लाने की बात की वकालत की थी। इस तरह के परिवेश का पूरा राजनीतिक लाभ आगामी चुनावों में भाजपा उठाने का भरपूर प्रयास करेगी । लोकसभा में भापजा का पुर्ण बहुमत होने के कारण कांग्रेस विधेयक के पक्ष में अपनी बात जताते हुए समर्थन तो कर गई जिसके वजह से लोकसभा में विधेयक पास हो गया पर राज्य सभा में कांग्रेस के समर्थन के बिना विधेयक का पास होना नामुमकिन था, सो ऐसा ही हुआ । राज्य सभा में जाकर तीन तलाक का विधेयक राजनीतिक दांव पेंच के बीच उलझ कर रह गया। इस परिवेश का भी भाजपा विधेयक पारित न होने सारा का सारा दोष कांग्रेस के मथे मढ़ राजनीतिक लाभ लेने की प्रक्रिया में अभी से जुड़ गई है। इस तरह के बदलते परिवेश के राजनीतिक लाभ के गेंद भापजा के पालें में है जिसका चुनाव बयार में पूर्णरूपेण वह लाभ उठाना चाहेगी । वैसे फिर से इस विधेयक को केन्द्र की सरकार बजट सत्र के दौरान लाने की बात तो कर रही है पर महिला आरक्षण की तरह तीन तलाक का विधेयक अधर में फिर न लटक जाय, कुछ कहा नहीं जा सकता ।,
जहां तक तीन तलाक का प्रसंग है, मुस्लिम समुदाय की सामाजिक व्यवस्था रही है जिसका निश्चित तौर पर सामाजिक विकृति रूप ही आज तक उभर कर सामने आया है जिसका दुरूपयोग ज्यादा ही हुआ है जिससे मुस्लिम समुदाय की महिलायें सर्वाधिक प्रभावित हुई है। जरा सी अनबन हुई, किसी और से मन लग गया तीन तलाक कह छुट्टी पा ली । दूरभाष पर तीन तलाक कहना भी मान्य हो गया । हमारे संविधान में तीन तलाक को लेकर अभी तक कोई प्रवधान नहीं है जब कि हिन्दु विवाह संबंधित नियमावली हमारे संविधान में शामिल जहां कोई पुरूष महिला से संबंध विच्छेद कानूनी तरीके से ही कर सकता है, जो इतना आसान नहीं है। जब हिन्दुस्तान में रहने वाले हिन्दु, सिख, ईसाई, मुस्लिम एक संविधान के तहत आते है, जिनका पारिवारिक परिवेश एक जैसा महत्वपुर्ण है। इस तरह जीवन का प्रमुख प्रसंग वैवाहिक परिवेश पर अलग – अलग नियम क्यों ? जो भी धर्म हो सभी का वैवाहिक जीवन एवं परिवेश एक सा ही है।