(अजित वर्मा)
हाल ही यह खबर आई थी कि नेपाल के केसिनोज में 500 और 1000 रु. के पुराने भारतीय नोट अभी भी जमकर चल रहे हैं। यही नहीं, स्वयं भारत के कुछ स्थानों पर पुराने नोट अभी चाहे जब बड़ी संख्या में बरामद हो जाते हैं। स्पष्टत: ये नोट अभी भी किसी न किसी चैनल से रिजर्व बैंक के पास पहुँचे रहे होंगे। इस बात को तब और बल मिला जब पिछले दिनों उत्तरप्रदेश के मेरठ पुलिस ने एक बिल्डर के कार्यालय पर छापा मारकर 25 करोड़ के 1000 व 500 की प्रतिबंधित करंसी बरामद की और चार लोगों को गिरफ्तार किया । इनमें एक व्यक्ति दिल्ली स्थित प्रवीन माहेश्वरी कंपनी में काम करता है जो पुराने नोट बदलने के धंधे में लगी है। तथापि, मुख्य आरोपी बिल्डर संजीव मित्तल अभी पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ सका है।
इस घटना से यह सवाल उठता है कि अब भी पाँच सौ और एक हजार के पुराने नोट बदलने का कोई न कोई तरीका उपलब्ध जरूर है। अन्यथा ये नोट कैसे बदले जा रहे हैं? जाहिर है कि प्रतिबंध प्रणाली में छिद्र है, जिसे शायद जानबूझकर खुला छोड़ा गया है। क्योंकि यह करतब निस्संदेह सरकार और रिजर्व बैंक की जानकारी के बिना नहीं हो सकता।
मेरठ मामले में स्वयं पुलिस का कहना है कि उसे यह सूचना मिली थी कि दिल्ली के एक व्यक्ति के जरिए कमीशन पर पुराने नोट बदलने का सौदा तय हुआ है। तीन दिन तक पुलिस ने निगरानी करके पुख्ता सबूूत जुटाये। और फिर, दिल्ली रोड स्थित राजकमल एनक्लेव में बिल्डर संजीव मित्तल के कार्यालय पर छापा मारा। पुलिस का दावा है कि नोटबंदी के बाद से अब तक उत्तरप्रदेश में पुरानी करंसी बरामद किये जाने का यह सबसे बड़ा मामला है। शंका जतायी जा रही है कि दिल्ली का जो दलाल गिरफ्तार किया गया है वह किसी बड़े रैकेट से जुड़ा हुआ है, जो पुरानी करंसी विदेशियों को देता है।
सरकार को यह सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए कि विदेशियों के जरिये आखिर पुराने नोट कैसे बदले जा रहे हैं। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 की रात 12 बजे से इन नोटों को बंद किये अब 24 महिनों का वक्त बीत चुका है। तो वह कौन सा चैनल है जिसके जरिये अब भी पुराने नोट चल रहे हैं? क्या सरकार ने वैधानिक रूप से प्रतिबंध की व्यवस्था में कोई छेद छोड़ रखा है?