समाचार विश्लेषण
(विजय कुमार दास)
मध्यप्रदेश में आगामी राज्य विधानसभा चुनाव बड़ा ही रोचक होने वाला है। पहले भी यह चुनाव कांग्रेस बनाम शिवराज हो रहा था और अब भी जब राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष की कमान अपने हाथों में ले ली है, ऐसी स्थिति में मध्यप्रदेश में राहुल गांधी का सीधा मुकाबला शिवराज सिंह चौहान से ही होगा। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में नरेन्द्र मोदी फैक्टर काम कितना करेगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता, हां यह जरूर है कि नोटबंदी और जीएसटी से उत्तर प्रदेश में भाजपा ने मैराथन जीत लिया है और यही फैक्टर मध्यप्रदेश में भाजपा के लिए लाभकारी हो, यह जरूरी नहीं है, लेकिन कांग्रेस की ओर से राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी द्वारा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चुनौती देना भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकता है।
जहां देश में एक ओर भाजपा के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एकमात्र सर्वश्रेष्ठ नेता माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर शिवराज सिंह चौहान दूसरी पंक्ति के सबसे बड़े नेता बन चुके हैं और प्रदेश में शिवराज सिंह एकला चलो के सिद्धांत पर चल रहे हैं, इससे उन्हें थोड़ी-बहुत दिक्कत हो सकती है क्योंकि नेतृत्व के साथ टीम हो, टीम का भरोसा नेतृत्व पर आधा-अधूरा हो तो चुनाव की रणनीति में बाधाएं अवश्यंभावी हैं। शिवराज सिंह चौहान विधानसभा के लगातार दो उपचुनावों में इस तरह की बाधाओं से रुबरु हो चुके हैं। लेकिन प्रदेश की जनता के दिलों के साथ उनका मत जीतने के प्रयास उन्हें भाजपा का पोस्टर ब्वॉय तो बनाता ही है, जिसके कारण एक आत्म विश्वास के सहारे वे चलते हैं, परन्तु यह और बात है कि प्रदेश में उनके प्रतिनिधि के रुप में नंद कुमार सिंह चौहान, नरेन्द्र सिंह तोमर, अर्चना चिटनीस, माया सिंह, थावरचंद गहलोत सहित पूरी फौज मौजूद है और प्रदेश के मालवांचल की बात करें तो वहां कैलाश विजयवर्गीय की मौजूदगी से चुनाव परिणाम प्रभावित होते रहे हैं और भविष्य में भी होंगे। तब भी 2018 का चुनाव भाजपा बनाम कांग्रेस नहीं, बल्कि शिवराज बनाम कांग्रेस होगा।
अब जबकि राहुल गांधी ने कांग्रेस की बागडोर संभाल ली है, तब उनकी नजर केन्द्र के साथ देश के उन राज्यों पर है, जहां भाजपा की सरकार है, और उन राज्यों के मुख्यमंत्री लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित हैं। ऐसे राज्यों में मध्यप्रदेश और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम सबसे ऊपर है। स्वाभाविक है कि राहुल गांधी का फोकस मध्यप्रदेश पर ज्यादा होगा, जबकि अगले वर्ष राज्य विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि राहुल गांधी की वैधानिक ताजपोशी के बाद उनकी सबसे बड़ी पहली रैली मध्यप्रदेश में होने की संभावना है। हालांकि मध्यप्रदेश में राहुल गांधी का साथ निभाने के लिए कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अजय सिंह, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया, अरूण यादव मौजूद हैं, लेकिन तब भी मध्यप्रदेश में शिवराज की पोस्टर ब्वॉय की छवि के ऊपर जाना अब तक उपरोक्त नेताओं में से किसी के लिए आसान नहीं हो पाया है। वहीं दूसरी ओर जिस तरह से प्रदेश में 2018 विधानसभा चुनाव के संदर्भ में आरएसएस की जो सर्वे रिपोर्ट आई है, उसके अनुसार भी शिवराज सिंह चौहान का ही नेतृत्व भाजपा के लिए फायदेमंद है, लेकिन आरएसएस सरकार के एंटीइन्कमबैंसी फैक्टर से चिंतित है। शायद इसी का फायदा उठाने के लिए कांग्रेस के नेताओं ने रणनीति बनाई है कि शिवराज के मुकाबले में वे सीधे-सीधे राहुल गांधी को मैदान में स्टार प्रचारक के रुप में
उतारेंगे। सवाल उठता है कि राहुल गांधी का सीधा मुकाबला शिवराज से होने का मतलब क्या यह नहीं है कि उपलब्ध मुख्यमंत्री के दावेदारों की स्थिति पूरे राज्य में नेतृत्व करने लायक नहीं है। सच यह है भी कि कमलनाथ महाकौशल तक सीमित हैं, सिंधिया मध्यभारत और मालवा सीमित हैं, अजय सिंह विंध्य क्षेत्र तक ही सीमित हैं और इसके उलट शिवराज सिंह चौहान ने 12 वर्षों में मध्यप्रदेश का क्या शहर, क्या गांव, क्या मजरा, क्या टोला और क्या गली, सब कुछ छान लिया है। इसीलिए राहुल गांधी के लिए भी शिवराज को टक्कर देना आसान नहीं होगा, लेकिन राहुल गांधी की उपस्थिति से मध्यप्रदेश में कांग्रेस के नेताओं का मनोबल जरूर बढ़ेगा और दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ नेता यह कहने में कभी नहीं चूकेंगे कि राहुल गांधी में प्रधानमंत्री बनने के सभी गुण मौजूद हैं।