सबसे पहले गठबंधन की राजनीति 1977 में हुई थी। लोकनायक जय प्रकाश नारायण की छत्रछाया में जनता पार्टी बनी जिसमें सभी प्रमुख राजनीतिक दल एक पार्टी में समाहित हो गए और जनता पार्टी के नाम पर, एक चुनाव चिन्ह से चुनाव लड़े। यह दल तो मिल गए थे पर इनके दिल कभी नहीं मिले। इन दलों में पुरानी कांग्रेस, जनसंघ, लोकदल आदि प्रमुख दल थे। यह सब दल आपातकाल के मुद्दे को लेकर एक हुए थे।तब से अब तक चुनाव पूर्व और पश्चात गठबंधन बन रहे हैं। सरकारें बन रही हैं। 1984 के बाद पहली बार 2014 में एक पार्टी के पूर्ण बहुमत की सरकार बनी पर गठबंधन इसमें भी था। अब 2019 में भी प्रमुख रूप से दो गठबंधन आमने सामने हैं। सवाल यह है कि अगर कोई दल किसी बड़े दल चाहे वह भाजपा हो या कांग्रेस के साथ चुनाव के लिए गठबंधन करता है तो क्यों नहीं वह दल इन दलों में ही शामिल हो जाएँ? पर ऐसा होगा नहीं, क्योंकि इससे इन छोटे दलों को बड़े दलों को ब्लेकमेल करने की सुविधा छिन जाएगी। क्योंकि एक नियम इनके आड़े आ रहा है जो 1985 में स्वर्गीय राजीव गांधी सरकार द्वारा लागू किया गया था ‘दल बदल कानूनÓ। इसके अनुसार अगर आप दल छोड़ते हैं या दल बदलते हैं तो आपकी विधायकी या सांसदी भी छिन जाएगी। अगर किसी दल के एक तिहाई सांसद या विधायक किसी दल से अलग होते हैं तो यह कानून लागू नहीं होगा। अगर कोई दल स्वयं ही किसी विधायक या सांसद को अपने दल से निकाल दे तब भी यह कानून लागू नहीं होता। इसीलिए भाजपा शत्रुघन सिन्हा और यशवंत सिन्हा को नहीं निकाल रही। वह लगातार सरकार और पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं पर भाजपा भी उन्हें तड़पाये जा रही है। इनका दर्द यही है कि इन्हें मंत्री पद नहीं दिया गया है।ऐसा हर दल के साथ होता है। इस दलबदल नियम के चलते ब्लेकमेलर राजनीतिक दलों के लिए समस्या उत्पन्न हो जाती है। अब देखिए सिर्फ 2 सांसद वाली अपना दल नामक पार्टी भी भाजपा को धमका रही है, रामविलास पासवान भी अधिक सीटें ले कर ब्लेकमेल कर ही चुके हैं। शिवसेना महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद न मिलने से लगातार भाजपा विरोधी बयान दे रही है। अगर भाजपा के पास बहुमत न होता तो यह क्या न कर देते? कांग्रेस को लालू आँखें दिखा रहे हैं। अखिलेश और मायावती कांग्रेस के साथ भी हैं और खिलाफ भी। यह हाल वामपंथियों का भी है। विचारधारा का तो सिर्फ नाम होता है, सत्ता की मलाई खाना और ज्यादा से ज्यादा ही खाना इनका मकसद होता है। अगर सिर्फ दो ही दल हों तो कोई भी न तो कांग्रेस को और न ही भाजपा को ब्लेकमेल कर सकेगा। अलग दल का अस्तित्व बनाए रखने से यह समर्थन वापसी की धमकी देकर यह दल सरकार को हमेशा ब्लेकमेल करते रहते हैं। क्योंकि उन्होने गठबंधन किया है और तोड़ा है इसलिए यह दलबदल कानून से बचने के लिए सरकार को ब्लेकमेल करने का ही हथियार है।
आज का विचार