खंडवा लोकसभा में 72 साल की आलोचना पर 72000 भारी


अरुण यादव और नंदकुमार सिंह चौहान दोनों को है भितरघात का डर, लेकिन

विशेष रिपोर्ट
विजय कुमार दास

मध्यप्रदेश के खंडवा लोकसभा क्षेत्र में चुनाव भाजपा के उम्मीदवार सांसद नंदकुमार सिंह चौहान तथा कांग्रेस के उम्मीदवार पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव के बीच में महाभारत का शक्ल ले चुका है। खंडवा लोकसभा क्षेत्र वैसे तो मध्यप्रदेश के अतिसंवेदनशील चुनाव क्षेत्र माना जाता है, लेकिन इस बार संवेदनशीलता लोकसभा चुनाव का कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। राष्ट्रीय हिन्दी मेल के इस प्रतिनिधि ने कल खंडवा और आज खरगौन में दोनों उम्मीदवारों को लेकर जनता की नब्ज टटोलने की कोशिश की तो जो तथ्य सामने आए हैं, वह चौंकाने वाले हैं। भारतीय जनता पार्टी के संकल्प पत्र को आज खरगौन में ग्रामीण अंचलों के 35 प्रतिशत मतदाताओं ने बेहतर बताया, जबकि राहुल गांधी की न्याय योजना, जिसमें गरीब परिवार को 72000 की सौगात मिलने वाली है, उस योजना के प्रति 42 प्रतिशत लोगों का मत है कि इस योजना से गरीबों का भला होना निश्चित है।
खंडवा लोकसभा क्षेत्र ऐसा क्षेत्र है, जहां शहरी मतदाता 50-50 प्रतिशत हिस्सों में कांग्रेस-भाजपा के साथ बंटे हुए हैं, लेकिन सिमी का इलाका होने की वजह से हिन्दू और मुसलमानों में मतों के धु्रवीकरण की भी संभावना है, विशेषकर शहरी इलाकों में ज्यादा पाई जा रही है। जहां तक सवाल है अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं का तो 40 प्रतिशत इस वर्ग की महिलाएं पूरी तरह कांग्रेस के साथ चलती हुई दिखाई दे रही हैं, जबकि 40 प्रतिशत मतदाता इस वर्ग के ऐसे भी हैं, जिनके ऊपर देश की सुरक्षा आतंकवादियों पर भारत के हमले का आंशिक असर है। रहा सवाल पिछड़ी जाति के मतदाताओं का इनके बाहुल्य इलाकों में, जिसमें तीन विधानसभा क्षेत्र खंडवा, खरगौन और बुरहानपुर ऐसे क्षेत्र हैं, जो खामोशी से कहते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बार-बार कांग्रेस के 72 सालों की आलोचना ठीक नहीं है। परिवारवाद या वंशवाद को लेकर मोदी का जो प्रहार है, उसका भी विश्लेषण इन तीन विधानसभा क्षेत्रों में कुछ इस अंदाज से किया जाता है कि भाजपा में भी वंशवाद और परिवारवाद कम नहीं है, जब इस मुद्दे पर सवाल पूछा जाता है तो वसुंधरा राजे सिंधिया, दुष्यंत कुमार सिंह, यशोधरा राजे सिंधिया ऐसे कई वंशवाद क ी राजनीति का उदाहरण गांवों भी दे देते हैं। मतलब सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी की कांग्रेस की राजनीति में उपस्थिति उन्हें न्यायसंगत लगती है और इसीलिए इन इलाकों में गरीबों के खाते में आने वाले कांग्रेस के 72000 रुपये 72 साल की आलोचनाओं पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। मतदाताओं के सर्वेक्षण से यह तो पता लग ही रहा है कि नंदकुमार सिंह चौहान और अरुण यादव दोनों जी-जोड़ मेहनत कर रहे हैं, परंतु जीत का सेहरा इन दोनों उम्मीदवारों के लिए अपनी ही पार्टी के लिए भितरघाती नेता छीन सकते हैं, जहां तक सवाल है नंदकुमार सिंह चौहान का, अर्चना चिटनीस के सारे समर्थक बदले के मूड में काम कर रहे हैं, जबकि अरुण यादव के खिलाफ भितरघात करने वालों को उनके छोटे भाई कृषि मंत्री सचिन यादव ने साधने का पराक्रम कर लिया है। देखना यह है कि चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा, लेकिन यह विशेष रिपोर्ट तीन मुद्दों पर केंद्रित है जिसमें पहला मुद्दा है एसटी-एससी, पिछड़ी जाति और दूसरा मुद्दा है अल्पसंख्यक मुसलमानों का वोट तथा तीसरा मुद्दा है भितरघातियों का असर कितना होगा, इस पर चुनाव परिणाम निर्भर करेगा। सतही जानकारी से यह तो लगने लगा है कि अरुण यादव को उपरोक्त तीन वर्गों मतलब एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों पर जबरदस्त भरोसा है, जबकि दूसरी ओर नंदकुमार सिंह चौहान यह कहने में नहीं चूक रहे हैं कि शिवराज सरकार के कामकाज ही उन्हें चुनाव जिताएंगे।


विशेष रिपोर्ट के लेखक इस पत्र समूह के प्रधान संपादक हैं।