विशेष रिपोर्ट (रजत परिहार)
भोपाल, 7 दिसंबर। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार में ऐसा नहीं है कि पुरुष अधिकारियों ने ही अच्छे काम किए हैं, कई महिला अधिकारी भी ऐसी हैं जिनके कामों की चर्चा आज भी होती है। आज हम बात कर रहे हैं शिवराज सरकार के 12 सालों में किन-किन महिला आईपीएस अधिकारियों ने खूब कमाल किए हंै, शिवराज के शासन में ऐसी महिला पुलिस अधिकारी भी हैं जिनके अनुभव तथा उत्कृष्ट कार्य का लाभ पूरे प्रदेश को मिल रहा है।
इसी क्रम में सबसे पहले हम बात करते हंै 1990 बैच की अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक प्रशासन अनुराधा शंकर की, जिनका नाम आते ही लोगों की आंखों में एक तेज-तर्रार महिला आईपीएस अधिकारी की तस्वीर सामने आ जाती है। सभी लोग अनुराधा शंकर की कार्यप्रणाली से भली-भांति परिचित हैं। वे नियमों से चलने वाली अधिकारी के साथ-साथ एक न्याय प्रिय महिला पुलिस ऑफिसर के रूप में भी जानी जाती हैं। उन्होंने इंदौर पुलिस महानिरीक्षक के समय जिस तरह धार के भोजशाला प्रकरण को संभाला तथा कार्रवाई की थी उसे आज भी पुलिस मुख्यालय याद करता है। वहीं होशंगाबाद और विदिशा में जब एसपी थीं तो इन्होंने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ खूब ताबड़तोड़ कार्रवाई की थी। इतना ही नहीं, इसके अलावा भी कई महत्वपूर्ण पदों पर रहकर अनुराधा शंकर ने प्रदेश की जनता के हित में कई बेहतर काम किए हैं। वहीं अगर 1987 बैच की अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक महिला शाखा अरुणा मोहन राव की बात करें तो उन्होंने भी महिला अपराधों में कमी लाने के साथ-साथ महिलाओं की तत्काल सुनवाई हो, इस दिशा में व्यापक कार्य किए हैं। उन्होंने एक ट्विटर अकाउंट बनाया है, जिसके पीछे उनका तर्क है कि प्रदेश में बढ़ रहे महिला अपराधों की रोकथाम और तुरंत कार्रवाई के लिए यह पहल की गयी है। उनका मानना है कि समाज में महिलाओं की अपनी एक अलग ही पहचान है, जिनकी सुरक्षा का जिम्मा भी पुलिस का है। ऐसी सोच के साथ उन्होंने भी उम्मीद से ज्यादा काम किए हैं। वहीं 1991 बैच की अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अजाक प्रज्ञाऋचा श्रीवास्तव के कन्धों पर भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है, जिसे वो बिना किसी विवाद के बखूबी निभाते आ रही हैं। प्रज्ञाऋचा श्रीवास्तव के काम करने का तरीका सबसे अलग है, वो काम को एक सिस्टम बनाकर करती हैं, ताकि उनके अधीनस्थ लोगों को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी न हो। चयन तथा भर्ती के मामलों में भी पूरी पारदर्शिता के साथ काम किया है। जिसका परिणाम आज यह है कि किसी भी व्यक्ति द्वारा पुलिस भर्ती में इनके कार्यकाल में कोई उंगली नहीं उठाई गई है। वहीं अब शासन ने इन पर भरोसा करते हुए इन्हें अजाक शाखा की जिम्मेदारी सौंपी है। जिसमें वे जल्द ही कुछ नवाचार करने वाली हैं। अगर हम बात महिला पुलिस अधीक्षकों की करें तो भला 2006 बैच की आईपीएस रूचिवर्धन मिश्र को कैसे भूला जा सकता है। इन्होंने भी बतौर एसपी होशंगाबाद के कार्यकाल में खूब अपने नाम के झंडे गाड़े थे। जिसे आज भी होशंगाबाद के लोग याद करते हैं, इतना ही नहीं बाद में एसएएफ की बटालियन में इनके द्वारा जवानों के हित में अच्छे काम किए गए। रूचिवर्धन मिश्र ने राजगढ़ एसपी के समय भोजपुर ढाबे पर छापामार कार्रवाई कर भारी मात्रा में गांजे की खेप पकड़ी थी, साथ ही विदेश ले जाने पर काम करने वाली एक अन्तर्राज्यीय गैंग को पकडऩे में सफलता अर्जित की थी, इनकी इन्हीं उपलब्धियों के चलते इन्हें आज एसपी रेल की अहम् जिम्मेदारी सौंपी गई है। 2011 बैच की एक और महिला आईपीएस अधिकारी हंै, जो अपने कामों को लेकर आदिवासी क्षेत्रों में खूब चर्चा का विषय रहीं वो है सिमाला प्रसाद। जिनकी शुरुवात तो वैसे इंदौर से हुई है, लेकिन इन्होंने गुना में 26वीं बटालियन में कमांडेंट के बाद जो गति पकड़ी है, वो अभी तक निरंतर जारी है। जैसे एसपी डिंडौरी के समय सिमाला प्रसाद ने अवैध शराब के खिलाफ ब्लू गैंग, कालेज तथा स्कूल की लड़कियों के लिए निडर टूरी ग्रुप बनाया था, साथ ही 11 महीने के कार्यकाल में करीब 10 क्विंटल गांजा पकड़ा है। अभी सिमाला प्रसाद राजगढ़ में अपनी सेवाएं दे रही हैं। यहां पर भी इन्होंने महिला तथा बच्चों के लिए प्रदेश का पहला मित्रवत थाना खोला है, इसके अलावा महिलाओं की सुरक्षा के लिए शक्ति मोबाइल व ब्लू गैंग की फिर से शुरुआत की है। वहीं 2007 बैच की आईपीएस कृष्णवेणी देसावतु जिन्होंने क्राइम जोन जिला झाबुआ में एसपी के कार्यकाल में शराब माफियों के छक्के छुड़ा दिए थे। क्योंकि गुजरात के सटे झाबुआ में शराब माफियों का शुरू से आतंक रहा है लेकिन कृष्णवेणी देसावतु ने इसे खत्म कर दिया था। वे अपने कठोर निर्णय की वजह से ही चर्चा में आईं और उनका मानना है कि उन्होंने यह वर्दी देश सेवा के लिए पहनी है, इसलिए अपराधों पर नियत्रंण करना ही उनका मुख्य उद्देश्य रहा है।
उपरोक्त सभी महिला पुलिस अधिकारी जो कल एडीजी और डीजी तक के पदों की जिम्मेदारी संभालेंगी। इन अधिकारियों को आवश्यकता है कि विचार करें कि आज एनसीआरबी की रिपोर्ट में महिला अपराधों के मामले में मध्यप्रदेश साल दर साल अव्वल क्यों आ रहा है, कहीं इसकी वजह यह तो नहीं कि प्रदेश में प्रकरण ज्यादा संख्या में दर्ज किए जाते हैं या फिर वास्तव में मध्यप्रदेश में महिला अपराध ज्यादा होते हैं। यदि महिला अपराध ज्यादा होते हैं तो क्यों होते हैं और उन पर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है।