लाला जी ने संकेत किया कि अंग्रेजों ने शस्त्र-बल से भारत पर विजय प्राप्त नहीं की है, बल्कि गूढ़ और निर्लज्ज कूटनीतिक युक्तियों से यहां अपने प्रभुत्व का जाल फैलाया है। उन्हें मात देने के लिए भारतवासियों को उन्हीं के दांव-पेंच सीखने होंगे।
पंजाब केसरी लाला लाजपत राय (1865-1928) आधुनिक भारतीय राजनीति-विचारक, समाज-सुधारक और महान् स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका संबंध ‘आर्य समाजÓ से था जिसके मूल संस्थापक स्वामी दयानंद थे। यह बात महत्वपूर्ण है कि स्वामी दयानंद ने देश को ‘स्वराजÓ का जो मंत्र दिया था, उसे व्यावहारिक लक्ष्य बना कर राष्ट्रीय आंदोलन के साथ जोडऩे का श्रेय लाला लाजपत राय को है। इन्होंने भारत के प्राचीन गौरव की चेतना जगाने के साथ-साथ देश को आधुनिकता की ओर बढऩे के लिए भी प्रेरित किया। इनकी कृतियों में ‘यंग इंडियाÓ (तरूण भारत) 1917 ‘द पोलिटिकल यूचर ऑफ इंडियाÓ (भारत का राजनीतिक भविष्य 1919 और ‘नेशनल एजूकेशन इन इंडियाÓ (भारत में राष्ट्रीय शिक्षा) 1920 विशेष महत्वपूर्ण हैं। 28 जनवरी 1865 में उनका जन्म अपने ननिहाल जगरांव के समीप ढुडिके में हुआ। उनके पिता लाला राधाकृष्ण अग्रवाल अध्यापक थे। उनकी माता का नाम गुलाब देवी था। धर्म परायण माता पिता के विचारों का प्रभाव उन पर बचपन में ही पड़ गया था। साइमन कमीशन का विरोध करते समय अंग्रेजों द्वारा उन पर किए गए लाठी प्रहारों के परिणाम स्वरूप 17 नवम्बर 1928 को देश का यह महान स्वतंत्रता सेनानी परलोक सिधार गया।
लाला लाजपत राय दृढ़ राष्ट्रवादी थे। उन्होंने तर्क दिया कि प्रत्येक राष्ट्र को अपने-अपने आदर्श निर्धारित करने और उन्हें कार्यान्वित करने का मूल अधिकार है। ‘स्वराजÓ राष्ट्र की आत्मा है। स्वराज्य छिन जाने पर कोई भी राष्ट्र ”मूक पशुओं का झुंड रह जाता है, उसे जिधर हांक दो, उधर चल देता है। किसी राष्ट्र की स्वतंत्रता में कोई भी हस्तक्षेप उतना ही अस्वाभाविक और अनुचित है जैसे किसी धर्म के अनुयायियों को दूसरे के धर्म में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है। कोई राष्ट्र इतना गया-बीता नहीं होता कि उस पर किसी दूसरे राष्ट्र के आधिपत्य को उचित ठहराया जा सके, चाहे दूसरा राष्ट्र कितना ही महान क्यों न हो। फिर भारत तो स्वयं एक महान राष्ट्र है, उस पर विदेशी शासन का क्या औचित्य है? वस्तुत: स्वराज प्राप्त को एक सुदृढ़ और स्वाधीन राजनीतिक जीवन प्राप्त करने का पूरा अधिकार है। शासितों की सहमति ही किसी सरकार का एक मात्र तर्कसंगत और वैध आधार है।
लाला जी ने संकेत किया कि अंग्रेजों ने शस्त्र-बल से भारत पर विजय प्राप्त नहीं की है, बल्कि गूढ़ और निर्लज्ज कूटनीतिक युक्तियों से यहां अपने प्रभुत्व का जाल फैलाया है। उन्हें मात देने के लिए भारतवासियों को उन्हीं के दांव-पेंच सीखने होंगे। समकालीन उदारपंथी, सांविधानिक संघर्ष के जिस तरीके की वकालत कर रहे थे, वह इसके लिए उपयुक्त नहीं था। दूसरी ओर, निरा आतंकवाद भी अपने आप में उचित नहीं था क्योंकि वह भारत की मूल-परंपरा के प्रतिकूल था। लाजपत राय का कहना था कि आज का भारतीय राष्ट्रवाद ब्रिटिश शासन को चुनौती देने के लिए पूरी तरह समर्थ और तैयार है।