रजत परिहार
भोपाल, 9 दिसंबर। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के 12 साल के कार्यकाल में ऐसा नहीं है कि कानून-व्यवस्था को लेकर आईपीएस अधिकारी सक्रिय नहीं रहे हैं। कई ऐसे आईपीएस अधिकारी हैं, जिन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंशा के तहत फील्ड में काम करके अपने नाम के झंडे गाडऩे में सफलता हासिल की है। ऐसे आईपीएस अधिकारियों को भी मुख्यमंत्री ने हमेशा फ्रंट लाइन में रखा है। सबसे पहले हम बात करते हैं 1992 बैच के आईपीएस आदर्श कटियार की। जिन्होंने डीआईजी भोपाल के कार्यकाल में लोगों को पुलिस की कार्यप्रणाली से अवगत कराया था। उन्होंने भोपाल की कानून-व्यवस्था को एक माला में पिरोने के लिए कई नवाचार किए थे। इसके बाद भी करीब 3 सालों तक आईजी ग्वालियर में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं, इनके बेहतर अनुभव को देखते हुए मुख्यमंत्री ने अपनी टीम में शामिल कर सुरक्षा का प्रमुख बनाया है। वहीं 1992 बैच के ही डी श्रीनिवास राव भी बेहतर कार्यप्रणाली को लेकर हमेशा चर्चा में रहते आए हैं। पुलिस मुख्यालय में आईजी इंट के अलावा सबसे अच्छा कार्यकाल आईजी जबलपुर जोन का रहा है। इसके अंतर्गत आने वाले जिले सिवनी, छिंदवाड़ा, नरसिंहपुर, कटनी सहित अन्य जिलों में कानून-व्यवस्था को लेकर समय-समय पर उचित मार्गदर्शन देते रहे हैं। जिसका परिणाम यह रहा कि उनके कार्यकाल में कोई भी अप्रिय घटना नहीं घटी। वहीं इसी बैच के ही जी जनार्दन वैसे तो वर्तमान में नक्सली क्षेत्र बालाघाट की कमान संभाल रहे हैं, लेकिन इसके पहले वे प्रतिनियुक्ति पर थे। लेकिन बताया जाता है कि आईजी जी जनार्दन की पुलिसिंग अन्य पुलिस अधिकारियों की तुलना में थोड़ी अलग है, अभी बालाघाट में हर पल सतर्क रहकर नक्सली क्षेत्रों में अपनी टीम लगाकर स्वयं उसका प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। 1992 बैच के ही एक आईपीएस ऐसे हैं, जिन्हें हाल ही में आंतरिक सुरक्षा पदक मिला है। जो कुछ हटके करने के चलते हमेशा मीडिया की सुर्खियों में रहते हैं। वह आईपीएस अधिकारी दिनेश चंद सागर हैं। जिन्होंने चंबल आईजी के दौरान रेत माफियाओं पर ताबड़तोड़ कार्रवाई कर अवैध रेत खनन का काम पूरी तरह बंद कराया था। दतिया जिले में टी-40 ढीमर गिरोह का एनकाउंटर किया था। सीआईडी आईजी के समय जेजे एक्ट को लेकर जनजागृति अभियान चलाया, अगर हम बात करें बालाघाट आईजी के कार्यकाल की तो यहां पर भी किसी से कम नहीं हुए, करीब 27 लाख का इनामी नक्सली दिलीप हुआ को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की थी। बालाघाट के दूरस्थ गांवों में शिक्षा, सुरक्षा और रोजगार को लेकर जनजागृति अभियान चलाया था तथा पीटीआरआई के समय करीब 180 की योजना स्वीकृत कराई थी, जिसमें सीसीटीवी कैमरे तथा ट्रैफिक सिग्नल लगे हैं। अब हम बात कर रहे हैं रिटायर आईपीएस एके सिंह की, इन्होंने डीआईजी होशंगाबाद रहते हुए इटारसी और बैतूल जिले के सारणी में अवैध कामों को लेकर लगाम लगाई थी। बाद में प्रतिनियुक्ति पर विजिलेंस ऑफिसर डब्लूसीएल में चले गए थे। बाद में वापसी पर आईजी रेल की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देखी। जिसमे जीआरपी के सभी थानों का भ्रमण कर रेलवे स्टेशनों तथा चलती ट्रेन में होने वाले अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए अधिकारियों को टिप्स दिए थे। उनके कार्यकाल में कई गिरोह का पर्दाफाश भी हुआ है। वह अभी बीते कुछ माह पहले ही इसी पद से रिटायर हुए हैं। वहीं 1993 बैच के आईपीएस रवि कुमार गुप्ता भी कई महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं, इनका कार्यकाल डीआईजी खरगोन के बाद से कुछ ज्यादा ही बेहतर रहा है। इसके बाद यह यातायात में रहकर बिगड़ी सड़क व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए लगातार प्रयास रहे। इनकी यह यात्रा यहां नहीं थमी, बाद में इन्हें आईजी योजना बनाया गया, जहां पर शासन स्तर के आदेशों का पालन कराने में भी यह पीछे नहीं हटे। जिन्हें देखते हुए मुख्यमंत्री ने इन्हे होशंगाबाद जाने का आईजी बना दिया। आईजी गुप्ता ने सभी जिलों के एसपी से संपर्क कर कई बड़ी कार्यवाही की है, उनके जोन होशंगाबाद और बैतूल जिला तो कई कामों में ए ग्रेड पर भी रहा है। वहीं 1995 बैच के जयदीप प्रसाद भी आईपीएस से कम नहीं हैं, उन्होंने भी फील्ड अपने कार्यकाल में खूब चौके-छक्के लगाए हैं। प्रसाद के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जहां-जहां पर अपनी सेवाएं दी हैं, वहां के लोग ने कभी उन्हें भूल नहीं सकते। जब वे जबलपुर आईजी बने तो जोन के सभी जिलों में कानून-व्यवस्था को लेकर हमेशा एसपी को उचित दिशा-निर्देश देते आए हैं। यही नहीं, जब भी जबलपुर जोन की मीटिंग हुआ करती थी तो अपने खुशनुमा अंदाज में वह सभी को तनाव से मुक्त करने में इन्हें महारत हासिल है। फिलहाल जयदीप प्रसाद वर्तमान में भोपाल जोन के आईजी हैं, यहां पर भी कानून-व्यवस्था का सख्ती से पालन कर आ रहे हैं तथा सड़क दुर्घटना पर विशेष जोर देते हुए चालानी कार्रवाई का सिलसिला देर रात तक जारी रखा है। 1996 बैच के आईपीएस योगेश चौधरी का भोपाल प्रेम सभी को पता है, ये पिछले कुछ सालों से नौकरी राजधानी में ही कर रहें है। भोपाल आईजी का कार्यकाल इनका करीब 4 सालों का रहा है। योगेश चौधरी की पुलिसिंग के चर्चे कुछ अलग नहीं हैं लेकिन लिखने का शौक इन्हें आम से खास बनाता है। जेल ब्रेक कांड का निपटारा करने में भी इनकी भूमिका रही थी। अभी वर्तमान में योगेश चौधरी पुलिस मुख्यालय में पदस्थ हैं। इसी बीच के आईपीएस एसके सक्सेना डीआईजी भोपाल भी रहे, इसके अलावा होशंगाबाद के कार्यकाल में जिलों का दौरा कर लचर कानून-व्यवस्था को सही करने का काम किया था। उनके कार्यकाल में मुख्यमंत्री ने कई कार्यक्रम हुए हैं जिन्हें बिना किसी विवाद के बखूबी पूरा करने में इनका भी विशेष योगदान रहा है। इसके बाद उन्हें शासन में गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह के जिले सागर का आईजी बनाया। बताते हैं कि आईजी सक्सेना एक सरल, सुलझे और शांत स्वभाव के अधिकारी हैं, इसलिए वे किसी भी माहौल में जल्दी एडजस्ट हो जाते हैं। 1997 बैच के तेज-तर्रार तथा ईमानदार आईपीएस के रूप में जिनकी पहचान होती है, वह मकरंद देउस्कर हैं। जिन्हें जिस भी विभाग, जोन, रेंज या जिले की कमान सौंपी है, उस पर सौ प्रतिशत खरे उतरे हैं। इसलिए मकरंद देउस्कर कभी लूपलाइन में नहीं रहे। छिंदवाड़ा एसपी के कार्यकाल से लेकर अभी तक का कार्यकाल इनका याद कर रहा है। वर्तमान में डीजीपी ने इन्हें पुलिस मुख्यालय में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है। अब हम बात करते 1987 के दिलदार और बिंदास आईपीएस अधिकारी डी श्रीनिवास वर्मा के कार्यकाल की। जो भोपाल डीआईजी के बाद से ही खूब चर्चा में रहे। इन्हें निशानेबाजी का बेहद शौक है। इन्होंने रीवा आईजी रहते हुए भी कई काम ऐसे किए हैं जिसका उदाहरण कई मर्तबा डीजीपी ने आईजी कॉन्फेंस में भी दिया है। उज्जैन डीआईजी के कार्यकाल में इन्होंने शहर को व्यवस्थित करने के लिए एक विशेष मुहिम चलाई थी। वर्तमान में वे सीआईडी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उपरोक्त सभी आईपीएस अधिकारियों ने 12 सालों के कार्यकाल में अपने अनुभव को साझा कर प्रदेश की बेहतर कानून-व्यवस्था में अपना विशेष योगदान दिया है।