
कड़वी खबर
विजय कुमार दास
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मध्यप्रदेश की राजनीति में 70 वर्षों के बाद यह पहला अवसर आया है जब किसी भी दल के बड़े नेता को अपने स्वयं के ऊपर विश्वास नहीं है। इसका जिता जागता उदाहरण है पहला तो यह पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि 28 विधानसभा उप चुनावों के परिणाम 100 प्रतिशत उनके पक्ष में नहीं आने वाले है, लेकिन राजनीति में व्यापारिक दृष्टिकोण जो दोनों तरफ उभर कर सामने आया है वह आने वाली नई पीढ़ी के लिये अच्छा संदेश नहीं दे रहा है। गनिमत है कि कमलनाथ ने कुछ दिनों से यह कहना छोड़ दिया है कि भारतीय जनता पार्टी के 10-20 विधायक उनके सम्पर्क में है वरना यदि कमलनाथ चुनाव परिणामों के पहले यह घोषणा कर दे कि सरकार कमलनाथ की ही बनेगी तो कोई बहोत बड़ा आश्चर्य नहीं है। दूसरी ओर गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा का यह कहना कि कमलनाथ हताश हो गये हैं दिग्विजय हार की वजह से इवीएम पर ठीकरा फोडऩे लगे तो यह कोई चौकाने वाली नई बात नहीं है। सबको पता है कि कमलनाथ ने 28 विधानसभा क्षेत्रों उप चुनाव के प्रचार में दिग्विजय सिंह को मात्र ब्यावरा विधानसभा क्षेत्र में बांधकर रखा था क्योंकि वे जानते थे कि यदि दिग्विजय सिंह ग्वालियर-चंबल संभाग के सभी सीटों पर एक बार दौरा लगा देते तो कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिलती इसलिये दिग्विजय सिंह ब्यावरा में ही बने रहे, और ट्विटर पर खेलते रहे। जहां तक सवाल है राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का तो वे माने या नहीं माने अब उन्हें महाराज और महाराजा दोनों का पद छोड़कर आम जनता में उसी तरह शामिल होना पड़ेगा जिस तरह इन 28 विधानसभा उप चुनाव के प्रचार में वे जनता के सामने आये। परन्तु महाराजा की अंतर आत्मा जानती है कि वे किसी भी प्रकार के लेन-देन और विधायकों की खरीद-फरोक्त के हिस्सेदार नहीं है। लेकिन कांग्रेस के कमलनाथ ने उनके ओहदे पर जो चिपकाया है उसे धोने के लिये एक बार फिर से पुरूषार्थ उन्हें दिखाना ही होगा। क्योंकि दोषी तो विधायक ही थे ना जिनके ऊपर बिकाऊ होने का आरोप लगा और महाराजा गुनाह बेलज्जत हो गये। यह तो परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा कि बिकाऊ का दांग ग्वालियर-चंबल संभाग में महाराजा के कद को कितना घटाया है लेकिन यह कड़वी खबर लिखने तक इस आंकलन से हम दूर नहीं है कि ग्वालियर-चंबल में भारतीय जनता पार्टी बमुश्किल अपनी 8 सीटें बचा पायेगी। रहा सवाल अन्य सीटों का तो भारतीय जनता पार्टी के पास पांच एैसी सीटें है जहां वह जितने का दावा करे तो गलत नहीं है। जिसमें गोविन्द सिंह राजपूत, तुलसी राम सिलावट, मनोज चौधरी, मनोज उटवाल और राजवर्धन दत्तीगांव शामिल है। इसके बावजूद पिछले दो दिनों से शिवराज सिंह चौहान के खैमें में घबराहट और बैचेनी क्यों देखने को मिली यह खोज का विषय है कहते हैं बिमारी ला इलाज हो जाये उससे पहले सावधानी बरतना जरूरी है, शायद यही एजेडा आजकल भाजपा के नये चाण्डक्य नगरिय विकास मंत्री भूपेन्द्र सिंह के पास तेजी से घूम रहा है। डॉ. नरोत्तम मिश्रा और भूपेन्द्र सिंह दोनों इस बात को जानते हैं कि शिवराज की सरकार बच जायेगी क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के दावें हैलीकॉप्टर में ज्यादा है जमीन पर कम। लेकिन भूपेन्द्र सिंह का यह मानना है कि 3 निर्दलिय विधायक यदि भारतीय जनता पार्टी के समर्थन में अपने छोटे-छोटे स्वार्थों को लेकर खड़े होते हैं तो इसमें हर्ज क्या है। आज की कड़वी खबर का लब्बो-लुआब यही है कि निर्दलीय विधायक सुरेन्द्र सिंह शेरा को कमलनाथ ने तो मंत्री नहीं बनाया था लेकिन शिवराज बना देंगे। दूसरा बसपा विधायक संजीव सिंह कुशवाह को सत्ता में भागिदारी चाहिये उसका स्वरूप क्या होगा यह बाद में तय हो जायेगा। लेकिन आज उनसे नगरिय विकास मंत्री भूपेन्द्र सिंह से मुलाकात के मायने गंभीर है। सूत्र बताते हैं कि संजीव सिंह ने अपनी विधानसभा क्षेत्र के विकास के कामों को लेकर नि:शर्ते भाजपा को समर्थन देने का फैसला किया है। रहा सवाल विधायक नारायण त्रिपाठी का तो उनका तो एक ही काम है नारायण-नारायण, मैहर को जिला बनाने की घोषणा कमलनाथ ने की है, लेकिन उसका प्रशासनिक अमल अभी तक नहीं हो पाया है तो भाजपा की शिवराज सरकार का समर्थन वे एक ही शर्त पर कर रहे हैं कि मां शारदा की नगरी मैहर का अदृत्यि विकास होना जरूरी है। नारायण त्रिपाठी का मंत्री बनाये या ना बनाये वे किसी मंत्री से कम नहीं रहेंगे यदि उन्होंंने भाजपा का समर्थन कर दिया है क्योंकि नारायण त्रिपाठी तो पुराने भाजपाई है। इस कड़वी खबर का जो निचोड़ है वह यह है गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा और नगरिय विकास मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने शिवराज सरकार के सामियाने को कोई हैलीकॉप्टर की हवा से उड़ा दे उसके पहले उसे थामने का काम कर दिया है। रहा सवाल पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का तो 99 का चक्कर उन्हें छोड़कर 2023 की तैयारी में जुट जाना चाहिये वरना राहुल गांधी उन्हें दिल्ली वापस बुला लेंगे।
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के लेखक इस पत्र समूह के प्रधान संपादक हैं।