सुरक्षा किट के बगैर साफ करते हैं गंदगी
हृदेश धारवार
भोपाल, 10 दिसंबर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान को सफल बनाने के लिए महापौर आलोक शर्मा दिन-रात प्रयास कर रहे हैं और शहर के गली-मोहल्ले में घूमकर लोगों को स्वच्छता के लिए जागरूक कर रहे हैं, लेकिन नगर निगम में काम करने वाले सफाई कर्मियों की सुरक्षा व्यवस्था पर उनका कोई ध्यान नहीं है। सफाई कर्मियों को हर दिन संक्रमण का सामना करना पड़ता है। लेकिन उनकी जिंदगी में झांकने वाला कोई नहीं है। सुरक्षा के नाम पर सफाई कर्मियों के पास न तो दस्ताने हैं और न ही चेहरे पर लगाने के लिए मास्क। जिसकी वजह से उन्हें हर दिन अपनी जान पर खेलना पड़ता है। नगर निगम के सफाई कर्मियों पर शहर के 85 वार्डों की जिम्मेदारी है। वे बगैर सुरक्षा किट के असुरक्षित तरीके से सड़क और नालियों में उतरकर गंदगी साफ करते हैं। नगर के बजट में सफाई कर्मियों को सारी सुविधाओं के लिए राशि आवंटित की जाती है, लेकिन जमीनी स्तर पर किसी भी कर्मचारी के पास सुरक्षा किट दिखाई नहीं देती, सफाई कर्मी गंदे नालों में उतरकर सफाई करते दिखाई देते हैं, सफाई के दौरान निगम प्रशासन के अधिकारी व महापौर भी मौजूद रहते हैं, लेकिन सफाई कर्मियों के स्वास्थ्य की चिंता किसी को नहीं है। जानकारी के मुताबिक सफाई कर्मियों को सुरक्षा के लिए ड्रेस, गम बूट, दस्ताने, टोपी और मास्क आदि उपकरण दिए जाने चाहिए।
स्वच्छता पर होते है लाखों खर्च, लेकिन सुरक्षा पर नहीं
स्वच्छता के लिए नगर निगम द्वारा हर साल लाखों रूपए खर्च किया जाता है लेकिन सफाई कर्मियों की सुरक्षा को लेकर कोई व्यवस्था नहीं की गई है। नगर पालिका प्रशासन द्वारा हर साल स्वच्छता, स्वास्थ्य और शहर को साफ-सुथरा बनाए रखने के लिए प्रचार-प्रसार पर लाखों रुपए पानी की तरह बहा दिए जाते हैं। विज्ञापन के लिए बड़े-बड़े होर्डिंग लगाकर वाहवाही लूटते हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि गंदगी में काम करने की वजह से सफाई कर्मियों को चर्म रोग, संक्रमण, फेफड़ों की बीमारी अपनी चपेट में ले लेती हैं। इस पर जिला प्रशासन का भी काई ध्यान नहीं है, श्रम विभाग भी सफाई कर्मियों के अधिकारों को हनन होता देख रहे हैं। श्रम विभाग श्रमिकों की सुविधा के लिए विभाग को कहा जा सकता है। लेकिन वे भी कोई ध्यान नहीं दे रहे।
हर दिन घायल होते हैं सफाई कर्मी
सुरक्षा उपकरण नहीं होने की वजह से सफाई कर्मी हर दिन सफाई करने के दौरान घायल हो जाते हैं। उनकी त्वचा में इंफेक्शन हो जाता है वे रोजाना नालियों में उतरकर कचरा साफ करते हैं। दस्ताने नहीं मिलने के कारण कई बार कचरे में कांच चुभते हैं, तो कभी जंग लगे लोहे के कील से हाथ-पैर जख्मी हो जाते हैं। ऐसे समय में उपचार के लिए भी कोई सुविधा नहीं मिलती। लिहाजा स्वयं के खर्च पर इलाज कराते हैं। विभाग के तमाम सफाईकर्मी आर्थिक रुप से कमजोर हैं।