

विशेष रिपोर्ट
विजय कुमार दास
मो. 9617565371
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल अब एक ऐसा अभागा शहर हो गया है, जहां जब-जब नया मास्टर प्लान लागू करने पर विचार किया जाता हैं, प्रस्ताव तैयार किए जाते हैं, तब-तब क्रियान्वयन के पहले ही अड़ंगे की शक्ल ऊंट की तरह राजनीतिक पैतरेबाजी का पहाड़ खड़ा हो जाता है। यही कारण है कि 1995 में भोपाल का आने वाला नया मास्टर प्लान आज भी रद्दी की टोकरी में है। जैसे-तैसे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भोपाल से लोकसभा के कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव के वक्त मास्टर प्लान को लेकर एक विजन डाक्यूमेंट आम जनता को चुनावी मुद्दे के रूप में परोसा गया था, परंतु उसकी भी भ्रूण हत्या तब हो गई जब 121 बार कलेक्टर भोपाल ने बैठकें आयोजित करके इसे लागू करने के पहले आपत्तियां बुलवाई, तो मात्र 50 आपत्तियां आई। लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 2018 में सरकार बनते ही तब मुख्य सचिव सुधिरंजन मोहंती से कहा था कि मास्टर प्लान का जब प्रारूप तैयार है तो इसका प्रारंभिक अधिसूचना जारी कर दिया जाना चाहिए, लेकिन प्रारंभिक अधिसूचना जारी करने के साथ लगभग 300 आपत्तियों का जखीरा भी सामने आया। इन आपत्तियों के निराकरण में तत्कालीन मुख्य सचिव सुधिरंजन मोहंती ने तत्परता दिखाई, लेकिन प्रारंभिक अधिसूचना जारी होने के पहले ही कमलनाथ सरकार चली गई। कमलनाथ सरकार ने यदि कोई एक काम में गति थी तो उसका नाम भी भोपाल का 26 वर्षों से लटका हुआ मास्टर प्लान का लागू हो जाना था परन्तु ऐसा हो नहीं सका क्योंकि सरकार चली गई। खैर भोपाल के आम नागरिक को राजनीतिक उठापटक से कोई लेना देना नहीं है, परन्तु सवाल उठ रहा है कि भोपाल में मास्टर प्लान लागू किये बिना फ्लाई ओवर और मेट्रो के प्रोजेक्ट कैसे आ गये। क्या ऐसा प्रतीत नहीं होता कि भोपाल का मास्टर प्लान भी राजनीतिक दलों की अलग-अलग मुख्यमंत्रियों तथा दो अलग-अलग मुख्य सचिवों के अहम की भेंट चढ़ गया है और यहां का विकास बेतरतीब हो रहा है। चौकियेगा मत यह जानकर 400 करोड़ की सीवेज लाइन सीवर लाइन की योजना में रकम डूब गई है, सब खामोश है। अब शहर में बड़े-बड़े भू-खंड़ों में 6 प्रतिशत एरिया मकानों के लिए न्याय संगत नहीं है वहां पर बहुमंजिला भवन एवं बढ़े हुए एफ.ए.आर. के साथ मास्टर प्लान लागू करवाने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को किंचित देर लगाने की जरूर नहीं है। यदि एफएआर विषय है तो पूरे नगर निगम सीमा में समान एफएआर लागू कर दिया जाये। पथरीले भू-खंड़ों पर बहुमंजिला इमारतों की स्वीकृति देकर शहर को रहने लायक बना दिया जाये। हालांकि राजनीतिक रूप से भी भोपाल का मास्टर प्लान एक ऐसा उलझा हुआ मुद्दा है जिसे शिवराज सरकार ने सुलझा लिया तो 10 वर्षों के लिए भाजपा की सत्ता भोपाल में कायम रह सकती है। अब यह सबसे बड़ी चुनौती भोपाल के प्रभारी मंंत्री भूपेन्द्र सिंह के सामने है कि भोपाल का मास्टर प्लान 2023 के पहले कैसे लागू किया जा सकता है। यकीन मानिये मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस यदि यह कहने में चूक जाए कि ओमिक्रान देखें या भोपाल का मास्टर प्लान तो समझ लीजिये मास्टर प्लान भोपाल में इस नये साल 2022 की शुरूआत में ही आ जायेगा। वरना कलेक्टर से लेकर नगरीय विकास मंत्रालय और शहर एवं ग्राम निवेश संचालनालय यह कह सकता है कि पहले ओमिक्राम से निपटा जाये या मास्टर प्लान लाया जाये। इस विशेष रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह है कि भोपाल का मास्टर प्लान यदि दोनों नेता मुख्यमंत्री एवं पूर्व मुख्यमंत्री के ईगो का विषय ना बने और दोनों नौकरशाह मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस और पूर्व मुख्य सचिव सुधिरंजन मोहंती के नीति निर्धारण में मतभेद ना गहराये तो फिर ओमिक्रान भी भाग जायेगा और भोपाल का मास्टर प्लान भी लागू हो जायेगा। यह बात अलग है कि बिसनखेड़ी, केरवा, मेहडोरी, स्प्रिंग प्लम्स तथा नीलबड़, रातीबड़ में निवेश कर चुके कुछ नौकरशाहों, राजनेताओं को नया मास्टर प्लान आने का फायदा मिलेगा, अखबारों में दो-चार दिन आलोचनाएं होगी तो फर्क नहीं पड़ेगा। इसलिए अपेक्षा करना गलत नहीं होगा मुख्यमंत्री और मुख्यसचिव जनवरी 2022 की शुरूआत में ही भोपाल के मास्टर प्लान को लागू कराएं और ओमिक्रान को हराएं अलग बात है, परंतु 35 लाख की आबादी वाले राजधानी भोपाल को बेतरतीब होने से बचाएं तो बेहतर होगा।
विशेष रिपोर्ट के लेखक इस पत्र समूह के प्रधान संपादक हैं।