मध्यप्रदेश की राजनीतिक डायरी
सत्य नारायण पाठक
कांग्रेस अध्यक्ष इलेक्शन के रिटर्निंग अधिकारी मुल्लापल्ली रामचंद्रन द्वारा राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने की घोषणा के बाद राजनीतिक समीकरणों में परिवर्तन दिखने लगे हैं। उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने वाले नेहरू-गांधी परिवार के छठवें सदस्य हैं और कांग्रेस के 60वें सदस्य कहलाएंगे। राहुल गांधी के अध्यक्ष पद संभालने के बाद गुजरात चुनाव में दूसरे चरण के मतदान पर भी प्रभाव पड़ेगा और इसकी झलक गुजरात चुनाव के परिणामों में देखने को मिल सकती है। अध्यक्ष बनने के बाद गुजरात चुनाव के संदर्भ में राहुल गांधी ने जिस तरह मीडिया से चर्चा में कहा कि हार देखकर भाजपा घबराई हुई है और गुजरात चुनाव में कांग्रेस की जीत का पूरा भरोसा है कांग्रेस गुजरात में विजयी पताका लहराने में कामयाब रहेगी, थोड़ा इंतजार कीजिए, गुजरात का फैसला जबरदस्त होगा। उनके इस बयान से उनके आत्म विश्वास की झलक मिलती है।
राहुल गांधी के अध्यक्ष पद संभालने का गुजरात चुनाव पर कितना प्रभाव पड़ेगा और गुजरात चुनाव का परिणाम कितना प्रभावित होगा यह अभी नहीं कहा जा सकता। किन्तु यह तो स्पष्ट है कि गुजरात में चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में हों या विपरीत लेकिन मध्यप्रदेश में राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने का प्रभाव स्पष्ट रुप से देखा जा रहा है। आज मध्यप्रदेश में पिछले 14 सालों से सत्ता का वनवास भोग रही कांग्रेस को उम्मीद है कि 2018 के राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का यह वनवास समाप्त हो जाएगा। कांग्रेस की इस उम्मीद की वजह भी है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद उनके सलाहकार के रूप में अहमद पटेल अपनी नई पारी की शुरूआत करेंगे जिसका सीधा असर मध्यप्रदेश की राजनीति पर देखा जा सकेगा। स्पष्ट है कि अभी मध्यप्रदेश में कांग्रेस के सासंद कमलनाथ, सासंद ज्योतिरादित्य सिंधिया और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के साथ सुरेश पचौरी एवं कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष अरूण यादव ने कमान संभाली हुई है, और जैसा कि देखा जा रहा है कि कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया पर राहुल गांधी का विश्वास अडिग़ है और अजय सिंह की सक्रियता भी कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो सकती है। अहमद पटेल का राहुल गांधी के निकट आने का मतलब साफ है कि प्रदेश में सुरेश पचौरी का कद बढ़ जाना और सूत्रों की मानें तो सुरेश पचौरी का राज्यसभा सासंद बनना लगभग तय माना जा रहा है। दूसरी ओर कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष अरूण यादव पर भी राहुल गांधी के भरोसे को देखते हुए लगता है कि अरूण यादव की अध्यक्षता में ही अगला विधानसभा चुनाव लड़ा जाने वाला है।
अगले चुनाव में जिस तरह राहुल गांधी और शिवराज सिंह आमने सामने होंगे एवं यह चुनाव कांग्रेस बनाम शिवराज होने जा रहा है इसके लिए प्रदेश के कांग्रेस नेताओं को खास तैयारी करनी होगी और कांग्रेस ने शिवराज को घेरने की तैयारी भी शुरू कर दी है। यह सच है कि प्रदेश में भाजपा या शिवराज के लिए इंकमबैंसी फैक्टर का सामना करना थोड़ा भारी पड़ सकता है क्योंकि जनता की नाराजगी सतह पर दिखने लगी है। हालांकि जनता की नाराजगी शिवराज सिंह चौहान के विरूद्ध नहीं है लेकिन स्थानीय विधायकों के प्रति आक्रोश साफ देखा जा रहा है। वहीं आरएसएस और सरकार के खूफिया तंत्र के सर्वे में भी भाजपा के 40 विधायकों के प्रति गहरा असंतोष सामने आया है। शिवराज सिंह चौहान यदि इन 40 विधायकों के टिकिट काट भी देते हैं तो इस बात की क्या गारंटी है कि जिन नए चेहरों को मैदान में उतारेंगे उनकी जीत सुनिश्चित होगी। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस द्वारा अभी तक इस तरह का कोई सर्वे सामने नहीं आया है और प्रदेश में किन विधानसभा क्षेत्रों में किस तरह की समस्याएं हैं उनकी पूरी रिपोर्ट भी अब तक तैयार नहीं की गई है। जैसा कि कांग्रेस नेता भी समझ रहे हैं और सच भी यही है कि यदि अभी नहीं तो कभी नहीं की स्थिति कांग्रेस के सामने है, इसीलिए कांग्रेस को राहुल गांधी के नेतृत्व में मजबूत रणनीति का सहारा लेना होगा। कांग्रेस का पुनर्वास, आज जैसी परिस्थिति प्रदेश में है ऐसी स्थिति में संभव नहीं है क्योंकि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का ब्रांड बिखरी हुई कांग्रेस पर भारी है, लेकिन राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद यदि कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अजय सिंह, सुरेश पचौरी और अरूण यादव बिना दिग्विजय सिंह के संग्राम में उतरते हैं तो फिर उम्मीद की एक किरण कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए दिखाई दे सकेगी वरना चौथी बार भी शिवराज सिंह चौहान को सत्ता में आने से रोकना मुश्किल होगा।