ग्रेसिम उद्योग में उठते सवाल किसानों-गरीबों में मचा बवाल

विशेष रिपोर्ट
विजय कुमार दास एवं गाथा दास रंजन नई दिल्ली से
मो. 9617565371

दुनिया भर के बड़े-बड़े फैशन उद्योग घराने भले ही आपको अपने उत्पादन से कुछ समय के लिए समाज में आकर्षित होने का अवसर प्रदान करते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि फैंशी और महंगे लिवाज को तैयार करने के लिए जिस (VISCOSE ) जिस चिपचिपे कैमिकल का उपयोग किया जाता है वह कितना प्रदूषित होगा इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि (VISCOSE) का उत्पादन जहां-जहां होता है वहां पर रहने वाले आसपास के नागरिकों को जहरीले काले पानी के सेवन से बचाया नहीं जा सकता । राष्ट्रीय हिन्दी मेल में पर्यावरण विश्लेषक गाथा दास रंजन ने मध्यप्रदेश में इसी तरह के सबसे बड़े ग्रेसिम उद्योग नागदा उज्जैन में निकलने वाले काले पानी से किसानों एवं गरीबों को हो रहे भयंकर बीमारियों का खुलासा किया है। गाथा ने अपनी रिपोर्ट में यह बताने की कोशिश की हैं कि मध्यप्रदेश सरकार पर ग्रेसिम उद्योग से निकलने वाले काले पानी से आम गरीबों एवं किसानों पर कैंसर एवं लकवे जैसी गंभीर बीमारियों के असर का कोई असर नहीं हैं। गाथा ने लिखा है कि दुनिया में जिस तरह फैंशन ब्रांड एचएनएम, माक्र्स तथा स्पेंसर अपने फैशन ब्रांड को चमकाने के लिए VISCOSE अर्थात चिपचिपा उत्पाद खरीदते हैं वह उद्योगों में बुरी तरह प्रदूषित होकर निकलने वाला जहर जैसा है। VISCOSE को हालांकि रेयान के नाम से जाना जाता है, जो शराबियों के काकटेल की तरह खतरनाक होता है और मानव जीवन को सबसे ज्यादा प्रदूषित भी करता है। परिणाम स्वरूप वहां का इको सिस्टम बुरी तरह प्रभावित होता है, बच्चों में पोलियो, कैंसर और लकवा जैसी बीमारियों के लक्षण 10-11 साल की उम्र में ही दिखाई देने लगते हैं। गाथा के अनुसार समय रहते यदि मध्यप्रदेश में सरकार ने उज्जैन जिले के नागदा में स्थित ग्रेसिम उद्योग से निकलने वाले काले पानी को चंबल नदी में जाने से रोकने के उपाय नहीं किये तो परिणाम और भी बुरे हो सकते हैं। चेजिंग मार्केट द्वारा प्रकाशित एक खोजी रिपोर्ट के अनुसार भी उपरोक्त उद्योगों द्वारा ट्रीटमेंट के बिना वेस्ट वाटर को छोड़ा जाना वहां के स्थानीय तालाब और झीलों को जहरीला बनाता है और इन्ही तालाबों तथा झीलों के प्रदूषित पानी के उपयोग से नागरिकों में बड़ी बीमारियां फैलती है, किसान और गरीब आदमी के बच्चे बर्बाद भी हो रहे है। उल्लेखनीय है कि भारत के कई गांवों में फैशन इंडस्ट्रीज से निकलने वाले प्रदूषित पानी से आसपास के नागरिकों को हमेशा खतरे से ही जूझना पड़ता हैं। नागदा में भी ग्रेसिम उद्योग का कारोबार कुछ इसी तरह का है। VISCOSE के उत्पादन के बाद जो काला पानी वहां की नदी में जा रहा है उससे नदी तो प्रदूषित हो ही रही है परंतु गरीब नागरिकों को जीवित रहने की चुनौती से भी जूझना पड़ रहा हैं। भारत के केंद्र में बसा हुआ नागदा और उसमें संचालित होना वाला ग्रेसिम उद्योग चंबल नदी के पानी को किसी उपयोग के लायक नहीं छोड़ा है और सरकार के प्रदूषण मंडल के पास इसका कोई इलाज नहीं है। सूत्रों के अनुसार आदित्य बिड़ला ग्रुप के मालिकों ने भी यह कहकर ग्रेसिम उद्योग को अपने हाल पर छोड़ दिया हैं कि छोटी से जगह नागदा में कोन जानता है बहुराष्ट्रीय कंपनी का यह उद्योग प्रदूषित काला पानी बहा रहा हैं। एक जानकारी के अनुसार उज्जैन जिले के कलेक्टर युवा आईएएस अधिकारी आशीष कुमार सिंह ने ग्रेसिम उद्योग से काले पानी की वजह को लेकर स्पष्टीकरण मांगा है। परंतु यह चौंकाने वाला वाक्या है कि वहां के किसानों ने कई बार यह शिकायत की हैं कि गंगा स्वच्छता अभियान में जुड़े हुए बड़े-बड़े इंजीनियर्स प्रदूषण को समाप्त किए बिना सीना तानकर सफाई अभियान की वाहवाही लूट रहे हैं जो कि वहां के उन गरीबों के साथ क्रूर मजाक है जिनके बच्चे अपंग और लकवाग्रस्त जैसी बीमारियों के शिकार होते जा रहे हैं। इस विशेष रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह है कि उज्जैन जिले में नागदा स्थित ग्रेसिम उद्योग प्रदूषण को लेकर सवालों के कटघरे में खड़ा है और किसानों तथा गरीबों में जीवित रहने की चुनौती को लेकर बवाल मच गया है।

विशेष रिपोर्ट के लेखक इस पत्र
समूह के प्रधान संपादक हैं।