भोपाल
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के अंतरंग भवन वीथि संकुल में शुक्रवार को माह का प्रादर्श श्रृंखला के अंतर्गत माह अप्रैल के प्रादर्श के रूप में तंतु वाद्य किंदरा उद्घाटन संग्रहालय के सहायक क्यूरेटर राकेश कुमार भट्ट द्वारा किया गया। इस अवसर पर अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। इस प्रादर्श का संकलन सहायक कीपर रश्मि शुक्ला एवं संयोजन संग्रहालय सहायक मोहन लाल गोयल द्वारा अंबिकापुर, जिला सरगुजा, छत्तीसगढ़ के पांडो समुदाय से किया गया है। मोहन लाल गोयल ने बताया कि किंदरा बांस व तूमा से निर्मित एक प्राचीन तंतु वाद्य है। इसे मध्यप्रदेश में किंदरा या तंबूरा एवं कर्नाटक में तंबूरा कहा जाता है। तूमा पर गोह की खाल मढक़र तैयार किए गए किंदरा को बाएं हाथ से पकडक़र दाहिने हाथ से लोहे के एक मोटे तार से बजाया जाता है। इस तार में घुंघरू भी लगाए जाते हैं। घुंघरू की ध्वनि गाने के साथ मिलकर एक अद्भुत प्रभाव उत्पन्न् करती है। किंदरा से तिन-भिन्ना-भिन्ना की मधुर आवाज निकलती है। किंदरा को नृत्य करते समय घूम-घूम कर या फिर गोद में सीधा खड़ा रखते हुए बजाया जाता है। यह भजन गायकों और पंडवानी गायकों का भी प्रिय वाद्य है।
किंदरा की संरचना- किंदरा की लंबाई लगभग तीन से चार फीट तक होती है। इसमें बांस की एक लंबी डंडी होती है, जो एक गोल तूमे से जुड़ी होती है। तूमा को किंदरा में लगाने के बाद तबली कहा जाता है। इसमें तीन तार होते हैं, जो तूमा की तरफ एक कील से तो दूसरी तरफ तीन अलग-अलग खूंटियों से जुड़े होते हैं। तूमा के ऊपर ये तार लकड़ी के ब्रिज पर टिके होते हैं और संपूर्ण डंडी के समानांतर जाते हुए दूसरे सिरे पर अपनी संबंधित खूंटी से बंधे होते हैं। किंदरा के शीर्ष भाग को मोर पंख से सजाया जाता है।
सांस्कृतिक महत्व- किंदरा छग में विभिन्ना अवसरों पर जैसे- मनोरंजन, अनुष्ठानों, त्यौहारों एवं देवी भजन गाते समय व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इस वाद्य को विश्व पटल पर जगह दिलाने में प्रख्यात पंडवानी गायिका तीजन बाई, शांति बाई चेलक, ऋ तु वर्मा एवं गायक झाडूराम देवांगन आदि की महत्वपूर्ण भूमिका है।