बेखौफ घूमते अपराधी, फाइलों में कैद सिसकता कानून….

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश मे बच्चियों और महिलाओं के खिलाफ लगातार जिस तरह के अपराधों की खबरें आ रही हैं, उससे साफ है कि इन राज्य में कानून- व्यवस्था हाशिये पर चली गई है और आपराधिक तत्वों के भीतर कोई खौफ नहीं रह गया है। ताजा वाकया उत्तर प्रदेश में लखीमपुर खीरी जिले में सामने आया है, जहां दलित समुदाय से आने वाली दो नाबालिग और सगी बहनों के शव एक पेड़ पर फंदे से लटके मिले,वही मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में साढ़े तीन साल की मासूम के साथ स्कूल बस में दुष्कर्म का मामला सामने आया है। राजधानी में मासूम के साथ हुई इस खौफनाक घटना ने लोगों के पैरों तले से जमीन खिसका दी है वही यूपी में जहाँ खबरों के मुताबिक दोनों लड़कियों को उनके घर के सामने से पहले अगवा किया गया था और बाद में उनके शव बरामद हुए। हालांकि पुलिस ने गुरुवार को यह भी बताया कि उन्हें फंदे पर लटकाने से पहले उनसे बलात्कार किया गया और उनका गला घोंटा गया था। इस मामले में पुलिस की सक्रियता बस इसी स्तर पर दिखती है कि हत्या और बलात्कार के सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। अब इस घटना को लेकर कई तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं। मगर सवाल है कि आखिर वे कौन-सी परिस्थितियां हैं जिसमें आपराधिक प्रवृāिा वाले लोगों की ह्मित इस कदर बढ़ गई है कि वे राज्य में जघन्य अपराध करने से भी नहीं हिचक रहे! यह बेवजह नहीं है कि राज्यों में सरकार की कार्यशैली और घोषित दावों के उलट कानून- व्यवस्था के मोर्चे पर प्रत्यक्ष दिखती नाकामी पर विपक्षी पार्टियां तल्ख सवाल उठा रही हैं। लखीमपुर खीरी की घटना के बाद पुलिस ने यह दावा किया कि दोनों बहनों की दो आरोपियों से दोस्ती थी और जब शादी का दबाव पड़ा तो दोनों की हत्या कर दी गई। क्या इस तर्क से आपराधिक घटनाओं पर लगाम लगा पाने में अपनी नाकामी पर पर्दा डाला जा सकता है? हालांकि मृत बहनों के परिवार ने पुलिस के दावे को गलत बताया है, लेकिन अगर पुलिस की दलील में कोई दम है भी तो सिर्फ शादी के दबाव की वजह से आरोपियों के भीतर अपनी ही दोस्त की हत्या कर देने की ह्मित कहां से आई ? लेकिन साढ़े तीन साल की उस मासूम बच्ची का क्या कसूर वो तो दोस्ती जैसे शब्द के मायने भी नही जानती थी । लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर आपराधिक मानस वाले लोगों को कानून का डर हो तो क्या वे इतनी आसानी से ऐसे अपराधों को अंजाम दे सकते हैं? वहीं भाजपा और उससे जुड़े संगठन राज्य में अपराधों पर लगाम लगाने को लेकर बढ़-चढ़ कर दावा तो करते हैं, घटना घटित हो जाने के बाद आनन-फानन में फाइलों में कानून भी बना डालते हैं। लेकिन आज तक परिणाम वही ढाक के तीन पात। अपराघियों के हौंसले बुलन्दियों पर। घटना में क्या किसी भी दोषी को सजा मिलेगी। दरअसल, दोनो राज्यों में कानून- व्यवस्था के मामले में अधिकतम सख्ती के तमाम दावों के बावजूद जमीनी हकीकत यह है कि आपराधिक और असामाजिक तत्त्वों का दुस्साहस बढ़ता जा रहा है। हालत यह है कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ेे में भी दोनों राज्यों में अपराधों का ग्राफ चिंतनीय स्तर तक बड़ चुका है। अगर राज्य सरकार और भाजपा की ओर से आए दिन प्रदेश में आपराधिक तत्त्वों के खिलाफ हर स्तर की सख्ती बरतने के दावे किए जाते हैं तो उसका मकसद क्या होता है? आज घटना घटी तो बसों की सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद किये जाने के तमाम प्रपंच रचे जा रहे है। विरोध हुआ तो स्कूल प्रबंधन से लेकर मालिक, प्राचार्य तक के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी गई। परन्तु क्या कोई अपराधी सजा के मुकाम तक पहुंचेगा ,या फिर कुछ दिन बाद सब ठंडे बस्ते में, और अपराधी खुल्लमखुल्ला बाहर आजादी से फिर किसी घटना को अंजाम देने के लिए तैयार घूम रहे हैं….।