कड़वी खबर: विजय कुमार दास (मो. 9617565371)
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में आज सुबह-सुबह सूर्य नमस्कार, एक व्यवसायी के मीडिया घराने में जो 13 वर्षो से संचालित हो रहा है उनके 38 ठिकानों पर आयकर के छापे के साथ संपन्न हुआ। लेकिन आज के सूर्य नमस्कार और वर्ष में 364 दिन हुए सूर्यनमस्कारों में जमीन और आसमान के फर्क को स्थापित करने के लिए आयकर का छापा, खगोलीय मंत्र के इस्तेमाल जैसा है। जिस मीडिया घराने से संबंधित व्यावसायी के यहां आयकर का छापा पड़ा वह आयकर विभाग या मोदी सरकार के लिए कई चौकाने वाली घटना नहीं है, लेकिन हड़कंप इस बड़ी कार्यवाही से इसलिए मच गया क्योंकि उक्त समूह ने अच्छे- अच्छे पत्रकारों के संबंधों को भी सरकार की चाटुकारिता के लिए काम पर लगा दिया था। मुख्यमंत्री, मंत्री नौकरशाह हो या पुलिस, सबकी अकड़ सीधी करने का काम यह समूह अपने बुद्धिमान सरस्वतीय पुत्र कर्मचारियों से ही लेता था। और तो और ये बेचारे सरस्वती पुत्र मजबूरी में ‘लाइजनरÓ बन गये क्योंकि “कोरोना काल” की महामारी ने मीडिया की बेरोजगारी को इतना दंशित किया कि घर परिवार के संचालन के लिए ऐसी पत्रकारिता के पास विकल्प के अभाव को सहने, समझने और उसके साथ समझौते करने के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा था। यह केवल मध्यप्रदेश की राजधानी में ही ऐसा नहीं है, हिन्दीभाषी राज्यों की सबसे बड़ी तकलीफ ही यह है कि आप हिन्दी पत्रकारिता के साथ जुड़कर जिंदगी जीते है तो बाढ़ के विपरीत दिशा में पूरे पुरूषार्थ के साथ चलने का साहस जब नहीं जुटा पायेंगे तो जिन व्यापारिक संस्थानों ने आपका पोषण किया है उन्हें आपके शोषण का अधिकार भी है, लेकिन यह तो शोषण के साथ संबंधों के दोहन की पराकाष्ठा है। ठेकेदार, पत्रकारिता से कहता है जाकर बात करो यह ठेका उसी ग्रुप को मिलेगा इसकी अधोषित घोषणा पहले से ही हो जाये, चाहे कीमत कुछ भी चुकाना पड़े। जब हमारे पत्रकार भाई अपने कंधे आगे करके यही सब करेंगे तो फिर वहीं होगा जो आज हुआ है। आयकर विभाग ने यह रहस्य सार्वजनिक भले ही ना किया हो, परंतु मोदी-शाह सरकार ने इस अवधारणा को स्थापित करने में बिल्कुल देर नहीं लगाई कि पत्रकारिता को चाटुकारिता से बचाना होगा। हालाकि इस छापे के तार भी बहुत मजबूत और मोटे-मोटे है जिन्हें काट पाना जरा मुश्किल होगा क्योंकि ये तार जहां जुड़े पाये जायेंगे आयकार विभाग छोडऩे वाला नहीं है। आयकर विभाग तो ठेका दिलाने वाले, ठेका पाने वाले और ठेके की मंजूरी में हाथ साफ करने वालों को दूर तक ले जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। सबक लेने की जरूरत ऐसी पत्रकारिता में शामिल हमारे दोस्तों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। माना कि आयकर विभाग किसी भी पत्रकार से यह पूछने वाला नहीं है कि इस समूह के कालेधन में आपकाक्या लेन-देन है। लेकिन आपके मन में बुद्धि में और आत्मा में जो ठेस लगी है वह नई पीढ़ी के लिए चिंताजनक है। चिंताजनक इसलिए भी है, क्योंकि वह तो आपको देखकर इसी पेशे को ही पत्रकारिता समझने लगा है। वह किसी से आपके चाटुकारिता की बात भी नहीं करता क्योंकि उसे तो पता ही नहीं है कि ठेके-वेके दिलाने में आपकी कोई भूमिका है। इसलिए बधाई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को है जिनके इशारे पर ना सही लेकिन इस अद्भुत जोड़ी की अवधारणा को समझकर आयकर विभाग में कम से कम हिन्दी पत्रकारिता जगत में केंसर की तरह जगह बनाने वाली चाटुकारिता के दंश को समाप्त करने की ईमानदार कोशिश आज से ही शुरू हो गई। यह बात अलग है कि आज आयकर के छापे में सबको पता चल गया है कि इस समूह के मीडिया दफ्तर में इंटरव्यू या डिबेट करने के लिए कोई नेता या अफसर जाने से कतरायेगा। लेकिन चुनौती तो यह है कि पत्रकारिता को नपुंसक बनाने के षडय़ंत्र से यदि हम और आप नई पीढ़ी को नहीं बचा पाये तो आने वाली सात पीढिय़ा भी हमें इसलिए नहीं माफ करेंगीक्योंकि हमारे कंधे पर सवार होकर रोज-रोज उन दुकानों को साधने के लिए मीडिया का दोहन होते हुए देखने के बाद भी हम खामोश रह गये। आप यह जानकर चौंक जायेंगे कि आयकर का छापा शायद इसीलिए पड़ा हैक्योंकि उन्हें सूचना मिल गई थी कि सारे ठेके इसी समूह को किसके कारण मिलते है, नियम में आये या ना आये हर हाल में ठेके चाहिए और पत्रकारिता का स्वाभिमान लुट जाये तो उन्हें फर्क नहीं पड़ता। इसलिए मेरी यह कड़वी खबर मीडिया जगत के लिए मुफ्त की सलाह जैसी नहीं है। यह संपूर्ण रूप से पत्रकारिता के 50 वर्षो के सफर में मेरी अपनी व्यक्तिगत राय है कि, मीडिया में हिन्दी पैरोकारों को चाहिए कि पत्रकारिता को चाटुकारिता के अभिमन्यु चक्र में से बाहर निकला जाये, जो निश्चित रूप से बड़ी चुनौती है। मेरी इस कालम में यह भी स्पष्ट है कि यह कटाक्ष किसी सरकार के ऊपर नहीं हैक्योंकि वह अपना काम करने के लिए स्वतंत्र है, वह अभिव्यिक्त की स्वतंत्रता पर भी आयकर छापे के माध्यम से कोई कुठाराघात नहीं कर रही है। परंतु हम स्वयं के कारण पत्रकारों को चाटुकारों की संज्ञा का उपभोग करने वाली पत्रकारिता से नई पीढ़ी अपना मुंह मोड़ ले और मीडिया के अस्तित्व को खतरे में देखते हुए भी 24 घंटे मुंह पर मास्क लगाकर और पेन की निब में ढक्कन लगाकर घूमने लगे तो चौंकिएगा मत…।