विशेष रिपोर्ट: विजय कुमार दास (मो. 9617565371)
मध्यप्रदेश में राजा महाराजाओं को सामंतवादी कह कर अधिनायक वादियों ने हासिए में डालने की भरपूर कोशिशें की है, कही पर सामंतवादी शब्द राजा-महाराजाओं को जनता से दूर करने में बड़े कारण भी बने। लेकिन कई-कई ऐसे राज्य है जहां पर आज भी राजा-महाराजाओं के प्रति जनता की निष्ठा उनके महाराज अथवा महाराजा टाइटल के साथ ही जुड़ी हुई है। यदि राजा-महाराजाओं में ईमानदार जनसेवक अपने आप को गरीबों के अथवा समाज के अंतिम छोर पर खड़े होने वाले चाहे दलित हो या आदिवासी समुदाय के साथ जमीन में बैठकर भोजन करते हैं या पंगत में बैठकर उन्हें अपने पर का एहसास कराने की कोशिश करते है, तो वही जनता राजा- महाराजाओं के ऐसे प्रयासों को कभी -कभी नौटंकी भी समझने लगती हैं। जहां तक सवाल है मध्यप्रदेश में राजा- महाराजाओं की उनकी राजनैतिक शैली का, तो यह रिपोर्ट करने में संकोच नहीं है कि जो भी राजा और महाराजा ईमानदार जनसेवक हैं उन्हें जनता प्यार और स्मान से महाराज या महाराजा बुलाने में अपने आप को गौरवशाली समझती हैं। बता दें कि हमने मध्यप्रदेश में राजनीति के दो राजघरानों की पड़ताल की हैं, जिसमें पहला है ग्वालियर-चंबल के महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया का सिंधिया राजघराना और दूसरा राजघराना है राघवगढ़ के राजा दिग्विजय सिंह का परिवार जिनके बारे में पूरी दुनिया जानती है ये दोनों परिवार एक-दूसरे के अखण्ड विरोधी है, कभी साथ हो नहीं सकते। और यूं कहां जाए कि दोनों राजघरानों की पृष्ठ भूमि में जमीन- आसमान का अंतर है तथा विवादों में खाई पीढिय़ों तक नहीं पटने वाली है। परन्तु सामंतवाद के तमगे में दिग्विजय सिंह राजा के रूप में निश्चित रूप से महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया से काफी ऊपर है, लेकिन दिग्विजय सिंह का राजा बनकर रहना उन्हें जनता से दूर बनाए रखता है, यह वाक्य काफी पड़ताल के बाद लिखा गया है। जबकि दूसरी ओर महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ सामंतवादी शब्द उनकी कार्यशैली को झुठला देता है। हमने ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति और उनके जनता से संबंधों को लेकर एक बड़ी तहकीकात की है, कि आखिर सिंधिया के व्यवहार में ऐसे कौन से गुण है जो उन्हें सामंतवाद कहने की बजाए जननायक के रूप में अपना महाराज कहकर पुकारना ज्यादा पसंद करती है। इस सवाल के उत्तर में जब हमने ग्वालियर-चंबल संभाग में पड़ताल किया तो, पता चला कि कोविड-19 के महामारी के दौर में कोरोना पीडि़त परिवारों के लिए जिस तरह सिंधिया ने 2437 चिंता जतायी, उनके लिए घर पहुंच सरकार की सेवाओं को उपलब्ध कराया उससे पूरे इलाके में आज भी जनता अभिभूत है। यूं कहा जाए कि 90 प्रतिशत मध्यभारत के युवाओं में ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने बीच पाने के लिए उन्हें महाराज कहकर बुलाना ही पसंद आता है। महाराज कहकर सिंधिया को ग्वालियर- चंबल संभाग तो छोडि़ए, मालवा-निमाड़ अंचल में भी इंदौर को मिलाकर 11 जिलें जिसमें धार- झाबुआ, उज्जैन-देवास, मन्दसौर-नीमच, रतलाम-खण्डवा और खरगोन- बुरहानपुर ऐसे क्षेत्र है, जहां श्री सिंधिया को महाराज कहकर पुकारना 68 प्रतिशत लोगों को पसंद आता है। ऐसे इलाके जिसमें महाकौशल और विन्ध्य शामिल है वहां पर भी 52 प्रतिशत युवाओं में ज्योतिरादित्य सिंधिया, महाराज के रूप में पसंद किए जाते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि खांटी आदिवासी 80 विधानसभा क्षेत्रों में ज्योतिरादित्य सिंधिया को पधारो महाराज कहकर वहां पर जनता उन्हें देखते ही खुशी से झूम उठती है। इस विशेष रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह है कि यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी राजनैतिक शैली में आम जनता के बीच में घुल-मिलकर रहने की कोशिशों की बजाए महाराज बने हुए भी राजनीति करते तो जनता का प्यार उनके प्रति सुई के बराबर भी कम नहीं होने वाला है। इसलिए यदि सिंधिया परिवार की साख के साथ महाराज टाइटल उनके विश्वसनीयता और भरोसे का सबसे बड़ा कारण है तो उसे उस समय तो बिल्कुल ही झुठलाया नहीं जा सकता, जब आप मध्यप्रदेश की राजनीति में शिखर पर है और जनता की आँखें महाराज को अपना भविष्य मानने लगी। बस जरूरत यदि किसी सावधानी की है तो यह कि कुछ समर्थक मंत्री बेकाबू होने लगे है, उन्हें नियंत्रित कर लिया जाए वरना इन मंत्रियों के कारण महाराज को कभी-कभी नीचा देखना पड़े तो, चौंकिएगा मत।
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