कौन बनेगा मुख्यमंत्री सवाल बड़ा-मुद्दे गहरे

विशेष रिपोर्ट: विजय कुमार दास (मो. 9617565371)
मध्यप्रदेश में 2023 का विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी भारतीय जनता पार्टी ने आज से ही शुरू कर दी है। और भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यालय को वार रूम घोषित कर दिया है, लेकिन रिमोट कन्ट्रोल पहली बार भारतीय जनता पार्टी में प्रभारी संगठन महामंत्री मुरलीधर राव को सौंप दी गई है। सूत्रों के अनुसार इसी सिलसिले में प्रदेश के गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा कल नई दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर आए, और अपनी 30 मिनिट की मुलाकात को उन्होंने पत्रकारों से 3 मिनिट की मुलाकात बताया, और कहा कि, कोई निर्देश नहीं है। केवल विटो जारी किया गया है, हर हाल में 2023 विधानसभा चुनाव में भाजपा की 200 पार सरकार बनानी है बस, इसी फरमान के साथ सब काम पर जुट गए है। सूत्रों का कहना है कि, डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने कल भोपाल लौटकर सबसे पहले, भाजपा के प्रभारी संगठन महामंत्री मुरलीधर राव से एक लंबी मुलाकात की है, और देर शाम को विधानसभा अध्यक्ष से भी उनकी मुलाकात के राजनैतिक मायने निकाले जा रहे है। लेकिन दूसरी और संघ मुख्यालय द्वारा दूसरी बार मध्यप्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनाव को लेकर वर्तमान भाजपा विधायकों की एक सर्वे रिपोर्ट जो कि अपुष्ट है, वायरल हो रही है, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि, केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए बिना चुनाव जीता जाना संभव नहीं है। क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अपनी स्वयं की स्थिति मजबूत हो तो भी 70 से अधिक भाजपा विधायकों के खिलाफ, (जिसमें कई मंत्री शामिल है)जनता में नाराजगी कायम है। समझा जाता है कि, संघ ने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि, सिंधिया के सामने आने से और उन विधायकों के टिकटों पर, परिवर्तन के मुद्दे को लेकर प्रचार करने से भाजपा के पक्ष में माहौल खड़ा हो सकता है, क्योंकि सिंधिया के दामन में आज तक कोई दाग नहीं है, लेकिन यह सवाल बड़ा है। समझा जाता है कि, जिन मुद्दों को लेकर शिवराज सरकार डिफेन्सिव है, उनमें पुलिस की कार्यप्रणाली को लेकर भोपाल, ग्वालियर जैसे बड़े शहरों में भी फरियादियों की शिकायतों पर गंभीर आरोपों के चलते, एफआईआर नहीं किया जाना परिलक्षित हो रहा है और इसकी वजह से जनता में बेवजह सरकार के खिलाफ एन्टी इन्कमवेंसी ने स्थान बना लिया है। दूसरी तरफ पुलिस सिपाहियों एवं पुलिस कर्मियों के जीवन स्तर में सुधार के दावे कमजोर पड़ चुके है। पुलिस सिपाहियों के मामले में इससे बड़ा कोई उदाहरण नहीं हो सकता कि, उत्तर प्रदेश सरकार सिपाहियों को 8 से 10 हजार रूपये प्रतिवर्ष का भत्ता देती है और मध्यप्रदेश में यही राशि लगभग 800 रूपये है और बजट के अभाव में मध्यप्रदेश के पुलिस महानिदेशक इसका हल नहीं ढूंढ पाते है। लेकिन सिपाही जो आम आदमी के बीच का व्यक्ित होता है। वह सरकार के खिलाफ बात करता है, तो बाद बिगड़ती भी है। भोपाल में तो पुलिस ऐसी है कि, फरियादी के सही शिकायत पर भी आईपीएस अफसर को भी बाबू समझा देता है कि, डीपीओ से सलाह लेलो फिर शिकायत करों। मतलब आईपीएस अधिकारी अपने विवेक का उपयोग ही नहीं करना चाहते। इसका फायदा उठाकर नीचे होता है भ्रष्टाचार और बेकफूट पर आती है शिवराज सरकार। फरियादी गृह मंत्री से 10 बार मिलता है, गृह मंत्री एसपी साहब को बोल भी देते है, लेकिन घूम फिर कर फरियादी को प्रताडि़त होकर डीपीओ को नजराना पेश करना पड़ता है और यही छोटे-छोटे-छोटे संवेदनशील मुद्दे है, जहा बेकफूट पर सरकार आती है। और इसका चिंतन मनन करके संघ जैसी शीर्ष संस्था अपनी सर्वे रिपोर्ट में मुद्दो को शामिल भी करती है, फिर भी चुनावी दृष्टिकोण से हल अधूरे है। और इन्हीं मुद्दों के चलते भाजपा हाई कमान ने मध्यप्रदेश की राजनीति में, प्रशासन में और संगठन की नियंत्रण शैली में, परिवर्तन के संकेत दिए है। और इन्हीं संकेतों में महाराजा सिंधिया का नाम आगे आ गया है, परन्तु सिंधिया के दो मंत्रियों की शिकायत भी बड़ा मुद्दा है। दूसरी तरफ मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने स्वयं की पोषित राजनीति को सर्वश्रेष्ठ स्थापित करने के लिए, अपने ही निवास को 2023 विधानसभा चुनाव के लिए वार रूम घोषित कर दिया है, कमलनाथ को 2024 के लोकसभा चुनाव से अभी कोई मतलब नहीं है। मध्यप्रदेश कांग्रेस संगठन में कमलनाथ ने नई कार्यशैली को अपनाने के लिए, सभी जिलों के अध्यक्षों को रिचार्ज कर दिया है। लेकिन महाकौशल और विंध्य प्रदेश को छोड़कर बाकी मध्यप्रदेश में 15 महीनों के कार्यकाल में कमलनाथ केबीनेट के मंत्रियों पर जो आरोप लगाए है, उन आरोपों से कमलनाथ को छुटकारा नहीं मिला है। विकास के बदले में आइफा जैसे इंवेन्ट को बढ़ावा देने के लिए कमलनाथ की सरकार ने, बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया जाता था यह मुद्दा जनता के सामने अभी भी कायम है और किसानों की कर्जे माफी में आधे अधूरे फैसले में भी कमलनाथ को बैकफूट पर रखा है। युवा स्वाभिमान योजना के नाम पर कमलनाथ सरकार में बेरोजगार युवाओं को 4000 रूपयें देने की घोषणा को अभी भी युवा मजाक समझ रहे है। और मजाक तब बढ़ गया जब 1000 रूपया शिवराज ने लाड़ली बहना को देने की घोषणा कि, इसके तुरंत बाद कमलनाथ ने ऑनन-फानन में 1500 रूपये देने की घोषणा कर दी। लेकिन ओबीसी के नए उभरते चेहरे के रूप में पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने कमलनाथ की ब्रांडिंग में, अहम भूमिका निभाने के लिए, कमर कस ली है, जिसका फायदा कमलनाथ उठा सकते है। लेकिन वल्लभ भवन कमलनाथ सरकार में दलालों का अड्डा बन गया था, यह मुद्दे आज भी गहरे है। इस विशेष रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह है कि, चुनौतियां दोनों तरफ है, और आम आदमी पार्टी के नेता केजरीवाल किसका खेल बिगाडऩे आएंगे यह तो वक्त ही बताएगा।