जल निगम, नगरीय प्रशासन ग्रामीण विकास और लोक निर्माण कन्सलटेंट के भरोसे सरकार करोड़ों का घोटाला

विशेष रिपोर्ट: विजय कुमार दास (मो. 9617565371)
मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार को यकीन है कि, बेरोजगारी दूर करने के लिए उनकी सरकार ने पूरी ईमानदारी के साथ विकास से जुड़े सभी विभागों में, ऐसी व्यवस्था की है कि, बेरोजगारी की समस्या से मध्यप्रदेश को निजात मिल जायेगी। लेकिन मुख्यमंत्री इस बात को लेकर बेखबर है कि, केन्द्र एवं राज्य सरकार की संयुक्त योजनाओं में तथा मध्यप्रदेश की अपनी विकास योजनाओं में जितने भी कन्सलटेंट काम कर रहे है, उन्होंने अपना ऐसा गिरोह बना लिया है जिसे ना तो मुख्य सचिव का डर है और ना ही प्रमुख सचिव का और ना ही जिले के किसी कलेक्टर का, अपनी मनमर्जी से बेरोजगार इंजीनियर, डिजाईनर, ऑर्किटेक्ट, कांट्रेक्टर सबकी नियुक्तियाँ कर लेते है। यदि आप जल निगम, लोक निर्माण विभाग, नगरीय प्रशासन और ग्रामीण विकास विभाग में विकास की योजनाओं को अंजाम देने वाले उन कर्मचारियों के शोषण की तरफ नजर डाले तो पता चलेगा कि, शिवराज सरकार जिस सहायक यंत्री या डिजाईनर और आर्किटेक्ट को तथा टेण्डर की शर्तों के अनुसार वेतन स्वीकृत करते है, उनकी पगार अमूमन आधी अथवा आधी से भी कम कन्सलटेंट के द्वारा दी जाती है। उदाहरण यदि डॉ मनीष तिवारी की नियुक्ति 80 हजार में की गई है तो उसे कन्सलटेंट जिसे केन्द्र सरकार की भाषा में पीएमसी कहा जाता है, वह उस कर्मचारी को 40 हजार देकर मजबूरी से काम कराता है। इसका मतलब यह है कि, पूरे प्रदेश में नगरीय प्रशासन, लोक निर्माण, जल निगम, जल संसाधन और ग्रामीण विकास जहां-जहां पर भी कन्सलटेंट है, संगठित अपराध की तरह अरबों-खरबों के घोटाले को अंजाम दे रहे हैं। आश्चर्य तो तब होता है जब नगर निगम के आयुक्त उपरोक्त कन्सलटेंट से तब डर जाते है, जब वे कहते है कि, हमारा क्या बिगाड़ लोगे, हम तो मुख्य सचिव के साथ बैठते है। इसका आभास मुख्य सचिव को हो या ना हो लेकिन यदि, इन कन्सलटेंटों द्वारा प्रतिमाह लाखों कर्मचारियों को केवल सरकारी धन से आधी-आधी रकम का भुगतान किया जाता है तो यह मान लेने में आश्चर्य नहीं है कि किसी भी संगठित अपराध से भ्रष्टाचार कम नही है, क्योंकि सरकार सीधी भर्ती ना करते हुए इन कन्सलटेंट के भरोसे लोगों को नौकरी करने के अवसर देने का अनुबंध कर देती है और यह कन्सलटेंट परोक्ष रूप से अरबों-खरबों का घोटाला कर रहे हैं। यह जांच का विषय है कि, केन्द्र सरकार का पैसा और राज्य सरकार की गरीब जनता की गाढ़ी कमाई को, कन्सलटेंटों द्वारा विकास के नाम पर लूटा जा रहा हैं। और तो और नगर निगम का कोई आयुक्त तो छोडि़ए प्रमुख सचिवों को भी यह कन्सलटेंट समझा देते है कि, सरकार को उनकी रिपोर्ट पर काम करना होगा, इसी के चलते जब ग्रामीण विकास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव मलय श्रीवास्तव, जल निगम के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय शुक्ला, नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई और आयुक्त भरत यादव तथा लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव सुखवीर सिंह को पता चला कि, कन्सलटेंट नौकरशाहों से भी ऊपर है तो वे उबल पड़े और दोषियों की जांच शुरू कर दी है। सूत्रों के अनुसार एजिस, लॉयन जैसी 25 से अधिक कन्सलटेंट कंपनियां है जिनकी वजह से प्रधानमंत्री आवास की योजनाओं में, भ्रष्टाचार के कारण काम रूका हुआ है। एक नगर निगम में तो एजिस ने ईडब्ल्यूएस और गरीबों के लिए बने मकानों के विक्रय के रूपयों को अपने कंपनी के खाते में ही जमा करा लिया है, जिसकी जांच जोरो पर है, लेकिन अभी तक ऐसे कन्सलटेंट का कुछ बिगड़ा नहीं है क्योंकि, ऐसी एजेन्सियां अपनी पहुंच को ऊपर तक बताते हुए, नगर निगम के आयुक्तों पर भी दबाव बनाते है। और जब तक 2 नंबर की भारी भरकम रकम उपरोक्त कन्सलटेंट वसूल नहीं लेते तब तक ठेकेदार हो या कर्मचारी चैन से अपना काम पूरा नहीं कर सकता, करोड़ों का घोटाला इनके लिए कोई मायने नहीं है, चाहे सरकार डूब जाये। इस विशेष रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह है कि, मध्यप्रदेश में उपरोक्त चार विभागों के साथ-साथ मनरेगा ने भी कोहराम मचा रखा है। सूत्रों का कहना है कि, मनरेगा विभाग में तो घूस की रकम बोरियों में भर-भरकर छोटे-छोटे कर्मचारी भी बहती गंगा में हाथ धोते है। मनरेगा का जिक्र इसलिए आया क्योंकि मस्टर रोल में आधार कार्ड, वोटर आईडी सबका जिक्र होता है और उनके खाते में सीधे रकम भी जाती है, लेकिन चूंकि मौके पर वह व्यक्ति रहता ही नहीं है तो उसकी रकम को खाते से निकलवाकर ये कन्सलटेंट जैसी जमात ने लूट मचा रखा है, और यह लूट सरकार की चारों तरफ से एन्टी इन्कमवेंसी बढ़ाने के लिए, जिम्मेदार हैं। इसलिए जितने भी कन्सलटेंट पूरे मध्यप्रदेश में काम करते है, उनके टर्न ओवर, उनके द्वारा भुगतान किए गये कर्मचारियों की सैलरी शीट और उनके द्वारा विकास में लगाये गये अडंगों की सिरियस इन्क्वायरी की जाए तो, ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेन्स अभियान की जमीनी हकीकत का पता लगाया जा सकता है और मध्यप्रदेश को व्यापम जैसे बड़े घोटाले से उपरोक्त कन्सलटेंटों के गिरोह से बचाया जा सकता हैं।