समाचार विश्लेषण अनीता चौबे (मो. 9893288371)
28 मई को प्रधानमंत्री नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। इसे कार्यक्रम का तमाम विपक्षी पार्टियों ने बहिष्कार करने का फैसला किया है। विपक्ष का कहना है कि नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री के हाथों नहीं बल्कि राष्ट्रपति को करना चाहिए। हमारी नई संसद बनकर तैयार है। लेकिन फीता काटने पर रार है। 28 मई की तारीख मुकर्रर है। इसी दिन वीर सावरकर का जन्मदिन है जिसे मौजूदा राजनीति ने सबसे विवादास्पद ऐतिहासिक शख्सियत का दर्जा दे दिया है। इसलिए नई संसद की उद्घाटन की तारीख भी विवादों में है। पर विवाद की तह में नरेंद्र मोदी आ गए हैं। कोई कह रहा सेंट्रल विस्टा की जरूरतक्या थी तो कोई पूछ रहा प्रधानमंत्री लोकतंत्र के मंदिर का उद्घाटन कैसे कर सकते हैं? सवाल की अगुआई राहुल गांधी ने की और आज 19 पार्टियां उनके साथ हैं। उल्लेखनीय है कि अब यह लगभग तय हो चुका है कि लोकतंत्र का मंदिर कही जाने वाली संसद के नए भवन के उदटन समारोह से करीब-करीब समूचा विपक्ष गायब रहेगा। 19 विपक्षी दलों ने बुधवार सुबह बाकायदा घोषणा कर दी कि वे रविवार को होने वाले इस समारोह का बहिष्कार करने वाले हैं। कारण यह है कि संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों करना तय किया गया है, जबकि विपक्षी दलों के मुताबिक यह काम राष्ट्रपति के हाथों होना चाहिए। विपक्षी दलों का कहना है कि प्रधानमंत्री सदन का हिस्सा और शासन प्रमुख होने के नाते अक्सर विपक्ष के निशाने पर रहते हैं और उन्हें उस तरह की निर्विवाद हैसियत हासिल नहीं होती, जो संवैधानिक प्रमुख होने के नाते राष्ट्रपति को प्राप्त होती है। लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि इस सुझाव पर विपक्ष को सामान्य स्थिति में कितना जोर देना चाहिए था।क्या इसे इस सीमा तक खींचना जरूरी था कि उस आधार पर समारोह का ही बहिष्कार कर दिया जाए? निश्चित रूप से विपक्ष का यह स्टैंड सहज-स्वाभाविक नहीं कहा जाएगा। यह इस बात का सबूत है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच मतभेदों की खाई बहुत ज्यादा चौड़ी हो चुकी है। दोनों के बीच विश्वास का संकट पैदा हो गया है। यही चिंता की सबसे बड़ी बात है। विपक्षी दलों ने भी अपने संयुक्त बयान में इस बात का संकेत दिया है कि मामला सिर्फ इस एक मुद्दे का नहीं है। सरकार समय-समय पर ऐसे कई कदम उठाती रही है जिन्हें विपक्ष अपने ऊपर हमला या सदन की तौहीन के रूप में देखता रहा है। चाहे बात राहुल गांधी की सांसदी छिनने की हो या तीन कृषि कानूनों को संसद से पारित कराने के ढंग