नई दिल्ली 27 दिसम्बर। फंसे कर्जों (एनपीए) और दबावग्रस्त कर्जों की समस्या से जूझ रहे सरकारी बैंकों को घाटे में चल रही शाखाओं को बंद करने का वित्त मंत्रालय ने सुझाव दिया है। मंत्रालय ने वित्तीय हालात सुधारने के लिए इसे जरूरी कदम बताया है।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक मंत्रालय ने बैंकों से अपनी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय शाखाएं तर्कसंगत बनाने को कहा है। घाटे वाली शाखाओं को चलाते रहने का कोई औचित्य नहीं बनता है। इनसे बैंक के बैलेंस शीट पर दबाव बढ़ता है। हालात सुधारने के लिए बड़ी बचत ही नहीं, इस तरह की छोटी बचत पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) और पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) इस दिशा में पहले ही कदम उठा चुके हैं। संसाधनों के अधिकतम उपयोग और प्रशासनिक लागत में कटौती के लक्ष्य के साथ इंडियन ओवरसीज बैंक भी देश में क्षेत्रीय कार्यालयों की संख्या 59 से घटाकर 49 कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय शाखाओं के संदर्भ में मंत्रालय ने बैंकों से एकीकरण पर विचार करने और कुछ गैर जरूरी शाखाओं को बंद करने को कहा है।
मंत्रालय का कहना है कि बाहर किसी एक देश में कई भारतीय बैंकों के होने की जरूरत नहीं है। वहां पांच-छह बैंकों को मिलकर सब्सिडियरी के रूप में एकल शाखा चलाने पर विचार करना चाहिए। सब्सिडियरी शाखा के अलावा सरकारी बैंक कुछ शाखाओं को बंद करने या बेचने पर भी विचार कर सकते हैं ताकि अधिकतम रिटर्न वाले बाजारों पर फोकस किया जा सके।
इस रणनीति के तहत पीएनबी ब्रिटेन में अपनी सब्सिडियरी पीएनबी इंटरनेशनल में हिस्सेदारी बेचने की संभावना तलाश रही है। बैंक ऑफ बड़ौदा और एसबीआइ भी एकीकरण पर विचार कर रहे हैं। 24 देशों में बैंक ऑफ बड़ौदा की कुल 107 शाखाएं हैं। इनमें से 15 देशों में 59 शाखाओं का संचालन बैंक ऑफ बड़ौदा करता है जबकि अन्य का संचालन उसकी आठ सब्सिडियरी करती हैं। वहीं एसबीआइ 36 देशों में 195 शाखाएं चलाता है।
नोटबंदी के बाद भी दक्षिणी राज्यों में घरेलू जमा सुस्त-
पिछले साल नवंबर में नोटबंदी के बावजूद वित्त वर्ष 2016-17 में दक्षिणी राज्यों में घरेलू डिपॉजिट की वृद्धि दर धीमी रही। रिजर्व बैंक के आंकड़ों में यह तथ्य सामने आया है। आंकड़ों के मुताबिक नोटबंदी के चलते बीते वित्त वर्ष में घरेलू डिपॉजिट में अच्छी खासी तेजी आई थी।